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उत्तराखंड को उसके त्याग का दोहरा नुकसान हो रहा है : त्रिवेन्द्र सिंह रावत

उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के आदेशों के कारण विकास कार्यों में बाधा के रूप में और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से आर्थिक नुकसान के रूप में दोहरी मार झेलनी पड़ी है।

मसूरी, भाषा। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा है कि हिमालयी राज्यों को पर्यावरण संरक्षण करने का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है, खासकर उत्तराखंड को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के आदेशों के कारण विकास कार्यों में बाधा के रूप में और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से आर्थिक नुकसान के रूप में दोहरी मार झेलनी पड़ी है।

रावत ने ‘पीटीआई भाषा’ को बताया, ‘‘एक तरफ हिमालय क्षेत्र के राज्य पर्यावरण संरक्षण कर प्राकृतिक संपदा को क्षरण से बचा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमने विकास कार्यों की पूरी योजना बना कर रखी है, लेकिन एनजीटी के कारण हम कुछ कर नहीं सकते।’’

उन्होंने कहा कि विकास कार्यों की बाधायें रोजगार को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। वहीं उत्तराखंड को विनिर्माण राज्य होने के कारण जीएसटी से नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘इस नुकसान की भरपाई के लिये ही हिमालय क्षेत्र के राज्यों ने केन्द्र सरकार से ‘ग्रीन बोनस’ की मांग की है।

रावत ने स्पष्ट किया कि जीएसटी की मौजूदा व्यवस्था में उपभोक्ता वस्तुओं का विनिर्माण करने वाले राज्यों की बजाय उन राज्यों को जीएसटी का लाभ होता है जो उपभोक्ता वस्तुओं का विनिर्माण नहीं करते हैं, बल्कि ये राज्य इन वस्तुओं के उपभोक्ता हैं।

उल्लेखनीय है कि गत रविवार को उत्तराखंड सरकार की मेजबानी में जम्मू कश्मीर सहित हिमालय क्षेत्र के 11 राज्यों के मसूरी में आयोजित पहले सम्मेलन में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समक्ष ‘ग्रीन बोनस’ देने और हिमालयी राज्यों के लिये केन्द्र सरकार में पृथक मंत्रालय बनाने की मांग पेश की गयी ताकि इन राज्यों को जीएसटी से राजस्व की हानि और विकासकार्यों के बाधित होने से हो रहे नुकसान की भरपाई की जा सके।

जीएसटी से नुकसान के बारे में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया ‘‘उत्तराखंड को जीएसटी से नुकसान की भरपाई, केन्द्र सरकार हालांकि 2021 तक करेगी लेकिन इसके बाद क्या होगा ? इसलिये हमने यह मांग भी की है कि 15वें वित्त आयोग के 2024 तक के कार्यकाल तक जीएसटी से राज्यों को हो रहे राजस्व के नुकसान की पूर्ति केंद्र सरकार करे।’’

इससे सिर्फ उत्तराखंड को नुकसान क्यों हो रहा है? इस सवाल पर उन्होंने दलील दी कि हिमालय क्षेत्र के अन्य राज्यों में उपभोक्ता वस्तुओं का विनिर्माण नहीं होने के कारण ये राज्य उपभोक्ता राज्य की श्रेणी में आते हैं। जबकि उत्तराखंड उपभोक्ता वस्तुओं का विनिर्माण भी करता है। इसलिये उपभोक्ता के लाभ की ओर उन्मुख जीएसटी व्यवस्था से उत्तराखंड को ज्यादा नुकसान है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर हमारी अर्थव्यवस्था भी उपभोक्ता आधारित होती तो जीएसटी हमारे लिये भी लाभप्रद होता।’’

ग्रीन बोनस की मांग के औचित्य के सवाल पर रावत ने कहा, ‘‘हमने (हिमालयी राज्यों) जंगल बचाये, नदियां बचायीं। नतीजतन उत्तराखंड में 71.3 प्रतिशत वन क्षेत्र है लेकिन अगर हमें पानी का एक नल भी लगाना पड़ता है तो इसके लिये हमें अनुमति लेनी पड़ती है। इससे विकास की तमाम परियोजनायें रुक गयी हैं। एक छोटी सी सड़क बनाने में हमें वर्षों लग जाते हैं। विकास की तमाम योजनायें बनाने के बावजूद हम एनजीटी के कारण कोई काम नहीं कर सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘एक तरह से हमारे त्याग का हमको नुकसान हो रहा है। इसका सीधा असर रोजगार पर पड़ रहा है। यह समस्या सिर्फ उत्तराखंड की नहीं बल्कि सभी हिमालयी राज्यों की है। मेघालय में 86 प्रतिशत वन क्षेत्र है। हम देश को पर्यावरणीय सेवायें दे रहे हैं और बदले में हमें नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस तथ्य को सम्मेलन में वित्त आयोग, नीति आयोग और वित्त मंत्री ने भी स्वीकार किया।’’

इन समस्याओं के बीच सरकार की प्राथमिकताओं के सवाल पर रावत ने कहा कि ‘‘हमने फिलहाल सेवा क्षेत्र पर पूरा जोर दिया है। इसमें पर्यटन, खासकर नये पर्यटक स्थल विकसित करने पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके लिये 13 नये पर्यटक स्थलों को विकसित करने पर सरकार तेजी से काम कर रही है। ये स्थल एडवेंचर टूरिज्म जैसी किसी खास थीम पर आधारित होंगे।’’

उन्होंने कहा कि अभी ज्यादातर लोग बतौर धार्मिक पर्यटक उत्तराखंड आते हैं। अधिक व्यय करने की क्षमता वाले पर्यटकों को लुभाने के लिये पर्यटन के नये आयाम खोजे जा रहे हैं ताकि राजस्व और रोजगार को बढ़ावा मिले। सरकार ने इसके मद्देनजर ‘एडवेंचर टूरिज्म’ के लिये अलग विभाग बनाने का फैसला किया है। यह विशुद्ध रूप से पर्वतारोहण जैसी एडवेंचर गतिविधियों के लिये समर्पित होगा।

रावत ने बताया कि इसके अलावा राज्य की सभी 670 ग्राम पंचायतों में ‘‘ग्रोथ सेंटर’’ खोलने का भी अहम फैसला किया गया है जिससे स्थानीय लोगों के लिये उनके पारंपरिक कारोबार को व्यवस्थित रूप देकर आय, रोजगार और राजस्व को बढ़ावा दिया जा सके। इसमें कृषि एवं वन उपज को पैकेजिंग आदि के माध्यम से बाजार उपलध करा कर प्रोत्साहित किया जायेगा। इस तरह के 58 ग्रोथ सेंटर स्वीकृत हो गये हैं और 40 प्रस्तावित हैं।

हिमालयी राज्यों के लिये केन्द्र सरकार में पृथक मंत्रालय की मांग को जायज ठहराते हुये रावत ने कहा कि इसका मकसद हिमालयी राज्यों के महत्व को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अहमियत दिलाना है। इसमें इन राज्यों के साथ राष्ट्रीय हित भी निहित हैं।

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