Chitrakoot News: भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट (Chitrakoot) में वैसे तो सभी दिनों आस्था का केंद्र बना रहता है लेकिन नवरात्र के दिनों में श्रद्धालुओं की कुछ विशेष ही आस्था रहती है. नौ दिनों तक चलने वाले नौरात्र में देवी मंदिरों में अच्छी खासी भीड़ देखने को मिलती है लेकिन शहर में एक ऐसा मंदिर है जो त्रेता युग से आस्था का केंद्र बना हुआ है. झारखंडी माता मंदिर में ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित देवी मां अपने ऊपर किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं करने देती है. अगर कोई गलती से भी निर्माण करवाता है तो देवी मां उस निर्माण को उजाड़ कर रख देती है लेकिन देवी मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है. शायद यही कारण है कि देवी मां का मंदिर एकांत में होने के बाद भी इस मंदिर में देवी मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिलती है.
मंदिर को लेकर यह है मान्यता
यह मंदिर शहर के एकांत तरौहा मुहल्ले में स्थापित है. जिसे झारखंडी माता के भी नाम से जाना जाता है. इस स्थान के बारे में लोगों का कहना है कि जब भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ जब वनवास के लिए चित्रकूट आए थे तो उनसे मिलने के लिए जनक जी भी चित्रकूट आये थे और इसी स्थान से जनक जी ने भगवान श्रीराम और माता सीता से मिलने के लिए सभी राजाओं और देवी देवताओं को आमंत्रित किया था जिसमे जनक जी ने झारखंडी माता जी को भी आमंत्रित किया था. जिसके बाद झारखंडी माता बिहार से पाताल के नीचे आकर यहां प्रकट हुई थी और उनसे मिलने के बाद जब सभी लोग वापस जाने लगे तो माता झारखंडी देवी ने यहां से जाने से मना कर दिया और कहा कि भगवान श्रीराम यहां सब दिन बसते है इसलिए वह उनके दर्शन के लिए अपना एक स्थान यहां भी बनाएंगी जिससे सब दिन भगवान श्रीराम के उनके दर्शन होते रहे. तभी से इस स्थान को माता झारखंडी के रूप जाना जाता है और इनके दर्शन के लिए लोग दूर दराज से आते है नौरात्र कि दिनों में यहां श्रद्धालुओ का तांता लगा रहता है.
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हर मनोकामना होती है पूरी
इस स्थान की एक और सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां की देवी मां अपनी प्रतिमा के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई छत जैसे पक्का निर्माण या छाया नहीं बनाने देती है. कई बार लोगों ने मंदिर की छत बनाने के प्रयास भी किया लेकिन रात में अपने आप छत गिर जाती है. मंदिर के पुजारी संतो देवी का कहना है कि उनके पुरखों से झारखंडी माता की पूजा करते हुए चले आ रहे है. यह स्थान कितना पुराना है कोई बता नहीं सकता. इस स्थान को तरौहा गांव के लोग अपने कुल देवी के रूप में पूजते है जो भी भक्त अपनी मनोकामनाओं उनके दर पर लाता है तो देवी मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं को पूरा करती है. साथ ही निसंतान महिलाओं को संतान देती हैं और जो आंखों से दिव्यांग रहता है उसे आंखें देती है.
कई लोगों की ऐसे ही मनोकामनाएं पूरी हुई हैं इसलिए जो भी श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर देवी मां के दर पर आता है तो देवी मां उनकी सारी मनोकामनाओं को पूरा करती है. इसलिए यहां श्रद्धालुओं का रेला लगा रहता है देवी मां अपने ऊपर किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं करवाने देती हैं. कई बार जिन श्रद्धालुओं की देवी मां ने मनोकामनाएं पूरी की है उन श्रद्धालुओं ने देवी मां के ऊपर टीन शेड या छत डलवाने का प्रयास किया तो देवी मां ने रात में टीन शेड को हवा में उड़ा दिया. अपने ऊपर किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं करने दिया. उनसे पूछने के बाद उनसे लाख मिन्नतें करने के बाद सिर्फ उनके ऊपर एक टीन शेड डलवा पाए है लेकिन अभी भी छत या मंदिर का निर्माण नहीं करवाने देती है . इसीलिए इस स्थान पर लोगों की मनोकामनाएं पूरी होने पर यह स्थान आस्था का केंद्र बना हुआ है. नवरात्र के दिनों में यहां अच्छी खासी भीड़ देखने को मिलती है.
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