Chitrakoot News: जब अयोध्या (Ayodhya) नरेश दशरथ ने कैकेई की आज्ञा से राम को चौदह वर्षों के वनवास का आदेश दिया था तब राम अयोध्या छोड़कर वन को चल दिए थी. महर्षि बाल्मीकि की आज्ञा से राम चित्रकूट आए और सीता और लक्ष्मण के साथ उन्होंने साढ़े ग्यारह साल और सात दिन यहां बिताए. चित्रकूट भगवान राम की वह तपोभूमि है जहां उन्होंने अपनी जिन्दगी का सबसे सुखमय वक़्त गुजारा, साधू संतों के दर्शन किए, प्रवचन सुने और यहां के कोल किरातों को मानवता की शिक्षा दी. 


चित्रकूट के लोगों ने भगवान राम का किया था स्वागत
चित्रकूट (Chitrakoot) में राम ने अपनी सहचरी शक्ति स्वरूपा माता सीता का खुद अपने हाथों से शृंगार किया. अपने आराध्य भूत भावन भगवान शिव की आराधना की और पृथ्वी से आसुरी शक्तियों का नाश करने के लिए तप किया. चित्रकूट के लोगों से राम को सबसे ज्यादा स्नेह रहा है. यही वजह है कि वनवास ख़त्म होने पर अयोध्या पंहुचने से पहले राम चित्रकूट आये और सबसे पहले चित्रकूट के लोगों ने भगवान राम के स्वागत में दीपमालिकाएं सजाकर उनका स्वागत किया और जश्न मनाया.


स्वयं प्रभु राम ने रामघाट की मंदाकिनी नदी में स्नान कर कामतानाथ पर्वत के दर्शन किये. कामतानाथ के दर्शन के बाद राम तो अयोध्या लौट गए लेकिन चित्रकूट में साधू संतों और कोल किरात कई दिनों तक राम की विजय और वनवास ख़त्म होने का उत्सव मनाते रहे. यही कारण है कि आज भी अपना घर बार छोड़ लाखों लोग दीपावली मनाने चित्रकूट आते हैं और यहां की पुण्य सलिला मंद गति से बह रही मंदाकिनी नदी की पावन धरा में डुबकी लगा कामदगिरी की परिक्रमा करते है और दीपदान कर मनचाहा वरदान पा अपने जीवन के अधेरे को दूर भगाते हैं.


त्रेता युग से सजाया जा रहा है चित्रकूट
त्रेता युग से चित्रकूट को दीपक जलाकर सजाया जाता रहा है और अभी भी चित्रकूट के रामघाट को दुल्हन की तरह सजाया गया है. दीपो की रोशनी से जगमग मनोहारी दृश्य लोगों को बरबस ही अपनी ओर खीच लेता है. अपनी-अपनी मान्यताओं और कामनाओं को लेकर चित्रकूट पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालु पांच दिवसीय दीपावली मेले के पर्व पर दीपदान कर रहे हैं. जिससे उनकी मनोकामना पूरी हो सके. भगवान् श्री राम रावण को मारकर जब चित्रकूट लौटे तो यहां के कॉल कितारो, साधु संतों ने उनका स्वागत दीपक जलाकर किया था फिर विजय पताका के रूप में चित्रकूट से दीपदान की शुरुआत प्रभु राम ने की थी. इसके बाद अयोध्या वापस आकर दीपावली का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया था.


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