Uttar Pradesh News: बीहड़ के सबसे खूंखार डकैत रहे दस्यु सम्राट ददुआ के दाहिने हाथ दस्यु राधे पटेल उर्फ सूबेदार के नाम से सरकारें हिल जाती थी. उसके नाम से हर शख्स सिहर उठता था. दस्यु राधे वो नाम है जिसपर लूट, हत्या, सामूहिक नरसंहार समेत सैकड़ों से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. ये केस उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तक दर्ज हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली रिहाई के बाद बीते 10 जनवरी को वह रगौली जेल चित्रकूट से बाहर निकला था. जेल से निकलते वक्त भी राधे ने कई राज से पर्दा उठाया था, लेकिन एक बार फिर डकैत राधे की रिहाई के बाद जब एसटीएफ अलर्ट मोड़ पर आई तो फिर से डकैत राधे ने एबीपी गंगा के कैमरे के सामने कई बड़े राज से पर्दा उठाया है. 


बागी जीवन के बाद आम जिंदगी बिताने वाले डकैत राधे उर्फ सूबेदार के एक इशारे पर सरकार बनती और बिगड़ती थी. ददुआ गैंग के फरमान से उत्तर प्रदेश के चित्रकूट, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़ और मध्य प्रदेश के सतना, रीवा, पन्ना, छतरपुर आदि में ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक और सांसद तक बनते रहे हैं. दस्यु ददुआ गैंग की हनक का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वर्ष 2005 में ददुआ ने अपने पुत्र वीर सिंह पटेल को सपा के टिकट से चित्रकूट जिले से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया था. बीजेपी और बसपा उसके पुत्र के खिलाफ नामांकन तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी. 


इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में ददुआ गैंग ने सपा प्रत्याशी रहे श्यामाचरण गुप्ता का खुलाकर प्रचार किया और चुनाव जिताने में अहम भूमिका निभाई. राजनीतिक दलों के संरक्षण की वजह से पाठा के तराई क्षेत्र में हमेशा बैलेट पर बुलेट भारी रही है. उस दौरान गैंग का बसपा के पक्ष में किया गया फरमान "वोट पड़ेगा हाथी पर, नहीं गोली चलेगी छाती पर" खासा चर्चित रहा. दशकों तक पाठा की धरती में राज और सियासत पर हुकुम का इक्का चलाने वाले दस्यु ददुआ की याद पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा के चुनावों में जरूर आती है. जब उसके आतंक और फरमान से बुंदेलखंड के सियासत की हवा रुख बदलती थी. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने शासनकाल में 5 सितम्बर 1998 को इस जिले का नाम बदलकर चित्रकूट कर दिया था. 


इसी जिले में रैपुरा थाना क्षेत्र के देवकली ग्राम में बुन्देलखंड ही नहीं बल्कि प्रदेश के सर्वाधिक कुख्यात दस्यु सरगना डाकू शिवकुमार उर्फ ददुआ का घर है, जो कि पुलिस के साये में लम्बे अरसे तक आबाद रहा. 132 घरों के गांव में 500 वोट कुर्मी, 20 यादव, 90 ब्राम्हण, 30 हरिजन, 15 कुम्हार, 8 नाई, 6 आरख, 5 दर्जी और 3 परिवार बनियों के हैं. जाति से कुर्मी रामप्यारे इस गांव में 100 बीघे के किसान थे. शिवकुमार और बाल कुमार रामप्यारे के दो पुत्र थे व तीन पुत्रियां थीं. सबसे बड़ी संतान होने के नाते शिवकुमार पर उसके पिता रामप्यारे व मां कृष्णा का दुलार कुछ ज्यादा ही था. प्यार से उसे ददुआ कहकर पुकारते थे. यही वजह थी कि उसे स्कूल जाने के लिए मां-बाप की डांट- का सामना नहीं करना पड़ा. बचपन से ही उसकी संगत गांव के आवारा प्रवृत्ति के लड़कों से थी.


दस्यु राधे पटेल उर्फ सूबेदार ने क्या बताया
दस्यु राधे ने जेल से निकलने के तकरीबन डेढ़ महीने बाद एबीपी गंगा के कैमरे में कई बड़े राज से पर्दा उठाते हुए कहा कि, तत्कालीन सामाजिक स्थितियों के कारण वह बगावत पर उतर आया था, ऐसे में वह ददुआ के उभरते हुए गिरोह में जाकर शामिल हुआ था, जिसके बाद उसकी वफादारी के चलते ददुआ ने दूसरे नंबर का दर्जा देते हुए उसकी हैसियत को बढ़ा दिया था. उसका गैंग और पुलिस का कई बार सामना हुआ और मुठभेड़ भी हुई, जंगल में हम लोग कैंप लगाकर महीना या 15 दिन एक जगह पर रहा करते थे, राशन पानी शहर और गांव से पर्याप्त मिल जाय करता था. जो लोग हमारे मददगार थे वो सब भेज दिया करते थे. हमारी हर जाति समुदाय के लोग मदद कर दिया करते थे. दस्यु ददुआ ने कभी किसी का शोषण और हत्या नहीं की. अगर ऐसा होता तो इतने प्रधान और जनप्रतिनिधि हमारे इशारे पर बन गए, जनता क्यों वोट देती. आज तक ऐसी कोई एफआईआर नहीं हुई जिसपर हमने राजनीति के लिए किसी की हत्या की हो. 


कैसे हुआ था डकैत ददुआ का खात्मा
दस्यु राधे ने बताया कि, हमारी पुलिस से कई बार मुठभेड़ हुई और कई बार सामना हुआ, लेकिन भगवान की ऐसी कृपा रही कि हम लोग बच जाते थे और पुलिस को भी बचाने का प्रयास करते थे. उसने कहा कि शासन प्रशासन से भिड़ना ठीक नहीं है इसलिए हम लोग सिर्फ अपना बचाव करते थे. ददुआ के खात्मे को लेकर राधे ने कहा कि कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन ददुआ का खात्मा कुछ गद्दारों की वजह हुआ था. उसने बताया कि जब ददुआ का खात्मा हुआ तो हम लोग बहुत दूर नहा रहे थे, कुछ लोग हमसे पूछकर ददुआ के पास गए थे कि हम लोग मिलने जा रहे हैं, जिसमें कुछ लोग गैंग के बाहर के थे. ददुआ एनकाउंटर एक सोची समझी साजिश थी और जो आदमी ददुआ के पास गया था उसने ही सबकुछ करवाया था. वो आदमी बैग में बम लेकर गया था और थोड़ी देर बाद दूर जाकर रिमोट दबा दिया जिससे बम फट गया और ददुआ की मौत हो गई. हम लोग काफी दूर थे, इसलिए बच गए. 


अपराध की दुनिया में नहीं रखेंगे कदम-राधे
राधे की रिहाई के बाद एसटीएफ और जिला पुलिस के अलर्ट मोड में आने के सवाल पर राधे ने कहा कि अब ऐसा कुछ नहीं हैं. हम अब आम जिंदगी गुजार रहे हैं और उस दुनिया में दोबारा कदम नहीं रखेंगे. जो लोग अब जेल से बाहर आ गए हैं वे अब कभी इस दलदल में दोबारा जाने की बात नहीं सोचेंगे. किन परिस्तिथियों से हम लोग बाहर आये हैं और किस तरह जंगल और जेल में कष्ट काटे अब वहां कौन जाएगा. अब हम जो ऐसा करेंगे उनका सपोर्ट नहीं कर सकते. मैं तो सबसे अपील करता हूं कि उस दुनिया में अब भूलकर भी न जाएं. हम अभी फिलहाल घरेलू जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं. एक वर्ष बाद देखा जायेगा कि वो राजनीति करेंगे या ऐसे ही परिवार के बीच जिंदगी व्यतीत करेंगे, इसके बारे में बाद में सोचा जायेगा. 


चित्रकूट में एसटीएफ का रुख हुआ सख्त
वहीं कई दशकों तक पाठा की धरती पर इन डकैतों का जो आतंक रहा है उसके खात्मे के बाद यहां एक बार फिर डकैत सिर न उठा सकें इसे लेकर एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश की टीम ने चित्रकूट में डेरा डाल दिया है. एडीजी एसटीएफ अमिताभ यश ने चित्रकूट में दशकों तक आतंक का पर्याय रहे दुर्दांत डकैत दस्यु ददुआ, दस्यु ठोकिया व दस्यु गौरी यादव समेत 1 दर्जन से ज्यादा डकैतों को मुठभेड़ में मार गिराया था, जिसके बाद एक वक्त ऐसा आया जब चित्रकूट की धरती दस्युमुक्त हो गई थी, लेकिन दस्यु ददुआ के दाहिने हाथ रहे दस्यु राधे पटेल के 15 वर्ष बाद जेल से रिहा होने के बाद एसटीएफ का रुख चित्रकूट को लेकर बेहद सख्त हो गया है.


एसटीएफ के एडीजी ने इसपर क्या कहा
इसे लेकर चित्रकूट पहुंचे एडीजी ने कहा कि पुलिस का काम हमेशा सतर्क रहना है. ऐसा कई बार हुआ है कि डकैत खत्म हुए हैं और उसके बाद  फिर पनपे हैं. इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि पुलिस को सतर्क रखा जाए और लगातार इस इलाके पर नजर रखी जाए कि कोई नया गैंग पैदा हो रहा है या नहीं. जो डकैत पहले जेल में थे वे छूट रहे हैं, कुछ के मुकदमे समाप्त हो गए हैं, कुछ जमानत पर बाहर आ रहे हैं, उनपर भी नजर रखना आवश्यक है. इस इलाके में शांति व्यवस्था बनाये रखना इस दौरे का मकसद है. दस्यु राधे भी जेल से वापस बाहर आया है तो ऐसे में इस तरह के हर अपराधी पर नजर रखनी आवश्यक है.


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