Uttar Pradesh News: भगवान श्रीराम (Lord Shri Ram) के जीवन का वनवास वाला समय सबसे महत्वपूर्ण रहा है. साथ ही भगवान राम का चित्रकूट (Chitrakoot) और अयोध्या से एक अनूठा रिश्ता भी रहा है, जहां अयोध्या में प्रभु राम ने जन्म लिया तो वहीं उन्होंने अपने वनवासकाल के साढ़े 11 वर्ष चित्रकूट में बिताए. इसी दौरान उन्होंने अपने अवतार के उद्देश्यों को पूरा किया. पिता दशरथजी की आज्ञा से वन जाने के बाद श्री राम, सीताजी और लक्ष्मणजी के साथ प्रयाग पहुंचे थे. प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और वे चित्रकूट पहुंचे थे. चित्रकूट वह स्थान है जहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने देवी सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे. रघुकुल की रीति-नीति की मर्यादा और गरिमा की रक्षा में श्रीराम और भरत सफल रहे. श्रीराम को वन से लौटना नहीं था तो भरत भी खाली हाथ कैसे लौटते. भरत ने जब उनसे अयोध्या वापस चलने की प्रार्थना की और वे नहीं गए तो भ्राता भरत ने श्रीराम की खड़ाऊं मांग ली और रामचंद्र जी की चरणपादुकाओं को अयोध्या के सिंहासन पर स्थापित कर दी और खुद नंदीग्राम निवास करने चले गए.
इस रीति को निभाते हुए हैदराबाद के एक रामभक्त श्रीनिवास ने भगवान रामचंद्र की 8 किलो की चांदी की चरणपादुका अपने हाथों से बनाकर चित्रकूट पहुंचे और यहां इस्कॉन मंदिर के महंत समेत संतो की नगरी के आधा दर्जन संत महात्माओं व भक्तों के साथ उन्होंने चित्रकूट के उन सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण व दर्शन किया जहां-जहां प्रभु श्री राम के चरण पड़े थे. यहां भारी मात्रा में भक्तों का हुजूम प्रभु राम के चरणपादुकाओं के दर्शन के लिए पहुंचा और पूजा अर्चना की. भगवान राम के भक्त श्रीनिवास शास्त्री ने कहा कि उन्होंने इस चांदी की चरणपादुका को बनाया है, जिसको वे आंध्र से लेकर पूरे भारत में लेकर दर्शन के लिए जा रहे हैं.
इस्कॉन चित्रकूट के पुजारी अनंत बलदेव महाराज ने कहा कि पूरे देश में प्रमुख तीर्थस्थल हैं जहां से होकर ये चरणपादुकाएं आईं हैं, इनको लेकर चित्रकूट से अयोध्या जायेंगे. इसके बाद रामनवमी की नवमी और दशमी एकादशी को वहां कार्यक्रम होगा, उसके बाद जो बचे हुए तीर्थस्थल हैं वहां जाएंगे और बाद में इसे अयोध्या राम मंदिर में स्थापित किया जाएगा. यह चरण पादुका 8 किलो चांदी से बने हुए हैं इसमें एक किलो सोने का कवर भी किया गया है, जिसको अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में स्थापित किया जायेगा.
भरत मंदिर के पुजारी महंत दिव्य जीवन दास जी महाराज ने कहा कि चित्रकूट के माहात्म्य के साथ-साथ भ्रातत्व का एक बहुत अनूठा उदाहरण है. एक तरफ अयोध्या का राज्य भगवान् भी स्वीकार नहीं करते. भरत जी भगवान से निवेदन करते हैं कि प्रभु आप अयोध्या लौटें तो भगवान नहीं लौटते हैं, अंत में भरत जी निवेदन करते हैं कि आप नहीं लौट रहे हैं तो अपना कोई प्रतीक चिन्ह ही दें जिसके माध्यम से मैं अयोध्या का राज्य चला सकूं और भगवान प्रसन्न होकर अपनी पादुकाएं भरत जी को चित्रकूट में प्रदान करते हैं और भरत जी वह पादुकाएं चित्रकूट से ले जाकर अयोध्या में नंदीग्राम में अयोध्या के बाहर सारा सुख, वैभव को छोड़कर और अयोध्या के राज सिंहासन पर पादुकाओं को रखकर कि यह मानते हुए कि मेरे मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम यही हैं और उनका नित्य पूजन करते हुए उनके जैसा आदेशानुसार प्रतीक मानकर भरत जी ने राजसिंहासन का दास बनकर 14 वर्ष तक अयोध्या का राज्यकार्य चलाया, ये प्रवत्ति देश ही नहीं पूरी दुनिया के लिए प्रतीक है.
महंत दिव्य जीवन दास जी महाराज ने आगे कहा कि, इस प्रकार का सन्देश जनता जनार्दन के लिए सीख प्रदान करता है. यह भाई भाई में किस तरह से प्रेम और स्नेह होना चाहिए परिवार में आपसी सामंजस्य होना चाहिए उसका भी एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है. इसी उद्देश्य को लेकर चित्रकूट से आज भगवान राम की पादुकाएं अयोध्या प्रस्थान कर रही हैं जिससे जगह जगह पर लोगों को वह भगवान राम का आदर्श प्राप्त हो, सभी को एक अनूठा मार्ग प्राप्त हो जिसके माध्यम से जो घर में विघटन है, विद्रोह है भाई भाई में प्रेम है पुनः स्थापित हो. इस यात्रा को आयोजन इसके लिए किया गया है.