Wali Shah Data Mazar: भारत अलग-अलग संस्कृतियों और मान्यताओं का देश है. यहां पर कई धर्मों को मानने वाले लोग मिलजुल कर रहते हैं लेकिन आज हम चित्रकूट की एक ऐसी मजार की कहानी बताने जा रहे हैं जहां हिन्दू और मुसलमान दोनों ही सिर झुकाते हैं. हिन्दू जहां खिचड़ी चढ़ाते हैं तो वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग चादर और सिन्नी चढ़ाकर आपसी सदभावना का संदेश देते हैं. इस मजार के पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. 

 

मकर संक्रांति पर लगता है मेला

चित्रकूट में हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता का प्रतीक वलीशाह दाता की मजार पर हर साल मकर संक्रांति से तीन दिन के मेले की शुरुआत होती है. यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर पहुंचते हैं. हिन्दू इस मजार पर खिचड़ी चढ़ाते हैं और मुसलमान चादर और सिन्नी चढाते हैं. इस मेले में हर साल भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं.

 

मजार से जुड़ी हैं बेहद दिलचस्प कहानी

कहते हैं कि करीब 422 साल पहले साईपुर गाँव के पहाड के उत्तर दिशा में धासा मऊ नाम का गांव था. गांव के कुछ दूर बागे नदी बहती थी. इस गांव में एक बार एक सन्त वलीशाह दाता आए और वो यहीं नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे. उनके आशीर्वाद से यहां लोगों की बीमारियां ठीक होने लगी. संत के ज्ञान की बातें और उपदेश से लोगों में भक्ति भावना बढ़ने लगी, जिससे लोग उन्होंने चमत्कारी पुरूष मानने लगे. धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ने लगी. 

 

संत के श्राप से नदी में समा गई पूरी बारात

एक बार सन्त अपने बगीचे में बैठे थे और ध्यान कर रहे थे. तभी वहाँ से राजा छत्रसाल अपने बेटे की बारात लेकर गुजर रहे थे. बारात आराम करने के लिए कुछ देर के लिए नदी किनारे रुक गई और राजा छत्रसाल परसेटा गांव की नर्तकी को लेने चले गये. उसी समय कुछ सैनिक वलीशाह दाता के बगीचे में आए और उनके शिष्यों से फूल मांगने लगे. जिस पर शिष्यों ने कहा कि सन्त की पूजा के बाद फूल मिलेंगे इस पर राजा के सैनिक नाराज हो गये और जबर्दस्ती फूल तोडने लगे. उन्होंने बगीचे को नष्ट कर दिया. जिसके बाद संत ने नाराज होकर श्राप दे दिया. जिसके बाद पूरी बारात नदी में समा गई.

 

राजा छत्रसाल ने बनवाई है मजार

बाद में जब राजा वापस लौटे तो एक चरवाहे में उन्हें पूरा कहानी सुनाई. ये सुनकर राजा संत के पास पहुंचे और उन्होंने संत के चरणों में गिरकर माफी मांगी, जिसके बाद संत की कृपा से पूरी बारात नदी से बाहर निकल आई. कहते हैं संत ने पहाड़ के ऊपर ही समाधि ले ली थी, जिसके बाद राजा छत्रसाल ने मजार बनाई. तभी से ये हिन्दू-मुस्लिम एकता और आस्था का प्रतीक बन गई. 

 

हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है ये मजार

हर साल मकर संक्रांति पर इस मजार पर तीन दिन का मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग अपनी मन्नतें मांगने के लिए आते हैं. आस्था हैं कि यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता, सभी की मुरादें पूरी होती हैं. इस साल भी इस मजार पर मकर संक्रांति से मेला शुरू हो गया है. कोरोना को देखते हुए प्रशासन ने यहां गाइडलाइंस जारी की हैं. मेला कमेटी की ओर से दो टीमें बनाई गई हैं जो समय समय पर हर स्थान में जाकर कोविड-19 की जानकारी देते रहेंगे ताकि ऐसी भयानक बीमारी से अपना बचाव हो सके. 

 

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