UP News: दबंगों ने की पिता की हत्या तो बेटे ने उठा लिए हथियार, डाकू बन कईयों को उतारा मौत के घाट
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के शिवकुमार पटेल के पिता राम प्यारे को दबंगों ने पूरे गांव में नग्न घुमाकर हत्या कर दी. शिवकुमार ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए हथियार उठा लिए और डाकू बन गया.
UP Dacoit Dadua: यह तो हकीकत है कि कोई भी पेट के अंदर से चोर या डकैत बन कर नहीं आता है. हालात और वक्त इंसान को मजबूर कर देते है या फिर कोई कारण भी ऐसा होता है जिससे इंसान डकैत बनने के लिए मजबूर हो जाता है. ऐसी ही एक घटना शिवकुमार पटेल के साथ घटित हुई जिसने शिवकुमार पटेल को हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया और उसे डकैत बनना पड़ा.
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के देवकली गांव का रहने वाला शिवकुमार पटेल अपने छोटे भाई बाल कुमार के साथ पिता के सहारे ही जीवन व्यतीत कर रहे था. नजदीक गांव के दबंगो ने शिव कुमार के पिता राम प्यारे को पूरे गांव में नग्न घुमाया और फिर बेरहमी के साथ उनकी हत्या कर दी. उस समय शिवकुमार की उम्र लगभग 22 वर्ष थी.
पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बना डाकू
शिव कुमार के पिता की हत्या के कुछ समय बाद दबंगों ने शिवकुमार को भैंस चोरी के झूठे आरोप में जेल भिजवा दिया. तब उसे विश्वास हो गया था कि उसे पुलिस और न्यायालय से न्याय नहीं मिलेगा इसलिअ वह जेल से भाग गया और यहीं से शिवकुमार की नई जिंदगी शुरू हो गई. जंगलों में और बीहड़ों में रहकर शिव कुमार अपने पिता की मौत के बदले की आग को बुझाने के लिए चम्बल के कुख्यात डकैत राजा रागोली और गया कुर्मी की गैंग में शामिल हो गया. वहां कई सालों तक डकैती के साथ ही तेन्दु पत्ता के कारोबार के गुर सीखता रहा और उनके साथ लूट डकैती की वारदातों को अंजाम देता रहा.
ददुआ ने बनाया अपना गिरोह
1983 में डाकू राजा रागोली की हत्या हो गई और गया कुर्मी ने आत्मसमर्पण कर दिया. उसके बाद गिरोह का संचालन ददुआ और सूरजभान दोनों मिलकर करने लगे. 1984 में सूरजभान की गिरफ्तारी हो गई. सूरजभान की गिरफ्तारी के बाद कुर्मी के इशारे पर शिवकुमार उर्फ ददुआ ने अपना गिरोह बना लिया. ददुआ चर्चा में तब आया जब उसने 20 जून 1986 को रामू का पुरवा गांव में मुखबिरी के शक में 9 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद ददुआ ने 1992 में मडैयन गांव में तीन लोगों की हत्या कर उस गांव को आग के हवाले कर दिया.
पुलिस के चंगुल से निकला तो बनवाया मंदिर
बताया जाता है कि 1992 में ही ददुआ फतेहपुर के नरसिंहपुर कबरहा गांव में पुलिस के चंगुल में फंस गया. बचने की संभावना कम थी लेकिन किस्मत ने साथ दिया और ददुआ के साथियों के मारे जाने के बाद भी ददुआ बच निकला. कहा जाता है कि उसने भगवान से प्रार्थना की थी कि अगर आज बच गया तो यहां मंदिर बनवाऊंगा और उसने उस गांव में मंदिर बनवाया. आज भी यह मंदिर में ददुआ और उसकी पत्नी की मूर्ति लगी हुई है.
ददुआ डकैत का तीन राज्यों उत्तर प्रदेश ,मध्यप्रदेश और राजस्थान में आतंक था. उस पर लगभग 400 मामले दर्ज थे जिसमें 200 अपहरण ,डकैती और 150 हत्या के मामले दर्ज हुए उत्तर प्रदेश की सरकार ने 6 लाख इनाम घोषित किया. इसके आलावा मुख्यमंत्री ने भी ददुआ की सूचना देने वाले को 10 लाख का इनाम देने की घोषणा की थी.
राजनीतिक दलों को ददुआ के साथ से फायदा
ददुआ ने राजनीतिक गुर से खुद को किंगमेकर बनाया और कहा जाता है कि जंगल में बैठकर ही ददुआ लोगों के वोट डलवाता था. बुन्देलखण्ड में कोई भी चुनाव होता तो बिना ददुआ के समर्थन के कोई नहीं जीत सकता था. ददुआ का फायदा उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों ने खूब उठाया. ददुआ के 500 गांव के प्रधान थे जो लगभग 10 लोकसभा की सीटों पर प्रभाव रखते थे. ददुआ खुद नेता नहीं बन सका लेकिन अपने भाई बाल कुमार पटेल को मिर्जापुर सीट से सांसद और अपने बेटे वीर सिंह पटेल को कर्वी से विधायक बनाया. ददुआ की बहू पंचायत अध्यक्ष थी और उसने भतीजे को भी पट्टी से विधायक बना दिया.
आखिर मानिकपुर थाना क्षेत्र के आल्हा गांव के पास 22 जुलाई 2007 को पुलिस और एसटीएफ के साथ एनकाउंटर में 6 लाख का इनामी शिवकुमार उर्फ ददुआ मारा गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने एसटीएफ की टीम को 10 लाख नगद इनाम की घोषणा की थी.
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