उत्तराखंड (Uttarakhand) के सीएम पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) ने उपचुनाव (Bypolls) में भारी वोटों से जीत हासिल की है. उन्होंने चंपावत विधानसभा सीट से ये जीत अपनी प्रतिद्वंदी निर्मला गहतोड़ी को 54,212 मतों से शिकस्त देकर हासिल की है. ये बात दिलचस्प है कि धामी ने सीएम रहते हुए उप चुनाव में जीत हासिल की है, लेकिन भारत के इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जब कई नेता मुख्यमंत्री रहते उपचुनाव हार गए हैं. आइए अभी बात करते हैं उन सीएम के बारे में जिन्होंने उप चुनाव में हार का सामना किया.
पूर्व CM शिबू सोरेन को जब हार का सामना करना पड़ा
पहले बात करते हैं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की. साल 2009 में शिबू सोरेन झारखंड के सीएम थे, पद पर बने रहने के लिए उन्हें उपचुनाव का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्हें हार झेलनी पड़ी और इस तरह उन्हें सीएम की कुर्सी भी गंवानी पड़ी. याद रहे कि इस वक्त झारखंड शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं.
शिबू सोरेन तामार विधानसभा सीट से हार गए थे. उस वक्त उनकी टक्कर झारखंड पार्टी के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण पातर से थी. सिबू सोरेन अपने प्रतिद्वंदी गोपाल कृष्ण पातर से लगभग 8,000 वोटों से हार गए थे. इसके बाद विपक्षी दलों ने लगातार उनके तत्काल इस्तीफे की मांग की. जिस पर शिबू सोरेन ने कहा था कि मैं अपनी हार स्वाकीर करता हूं और उन्होंने कुछ ही दिनों के बाद इस्तीफा दे दिया.
त्रिभुवन नारायण सिंह ने भरे सदन में दिया था इस्तीफा
ऐसा ही एक नाम त्रिभुवन नारायण सिंह का है जिन्हें उपचुनाव हारने के बाद भरे सदन में अपने इस्तीफे की घोषणा करनी पड़ी थी. त्रिभुवन नारायण सिंह ने 18 अक्तूबर 1970 को यूपी में जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो वो विधानसभा के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. उन्हें 6 महीने में किसी सदन का चुनाव लड़कर सदस्य बनना था. ऐसे में उपचुनाव लड़ने के लिए त्रिभुवन नारायण सिंह के लिए गोरखपुर जिले की मानीराम विधानसभा सीट चुनी गई. हिंदू महासभा के नेता और गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ वहां से विधायक चुने गए थे. उपचुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने त्रिभुवन सिंह के खिलाफ रामकृष्ण द्विवेदी को मैदान में उतारा.
त्रिभुवन नारायण सिंह ने इस उपचुनाव को लेकर कोई प्रचार नहीं किया. जो उनकी कमजोरी साबित हुआ. वहीं दूसरी और इंदिरा गांधी ने जोरदार भाषण दिया. जिसका असर ये हुआ कि त्रिभुवन नारायण सिंह 16 हजार वोट के अंतर से चुनाव हार गए. जिसके बाद 3 अप्रैल 1971 को त्रिभुवन नारायण सिंह को भरे सदन में अपने इस्तीफे की घोषणा करनी पड़ी.
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