सवालः मतदान हो चुका है, क्या इस बार भी उत्तराखंड़ 2014 को दोहराएगा ?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः निश्चित रूप से उत्तराखंड में जो अभी-अभी मतदान संपन्न हुआ है लोकसभा का, वो भारतीय जनता पार्टी के फेवर में होगा और उत्तराखंड की जनता भारतीय जनता पार्टी को अपनी पार्टी, नरेंद्र भाई मोदी के नेतृत्व को अपना मान चुकी है और जिस तरह से प्रधानमंत्री जी ने चाहे देश के गरीबों से जुड़े हुए विषय रहे होंगे। देश की सुरक्षा से जुड़े हुए निर्णय रहे होंगे, जिस साहस के साथ और समय पर निर्णय लिए गए हैं। उत्तराखंड उनका, मैं ये कह सकता हूं कि दीवाना हो गया है और उत्तराखंड की जो लोकसभा की पांचों सीटें हैं, वो भारतीय जनता पार्टी जीतेगी और 2014 दोहराया जाएगा।
सवालः रावल साहब इस बार आपके लिए भी एक चुनौती थी क्योंकि प्रदेश में आप नेतृत्व कर रहे हैं सरकार का, तो कहीं न कहीं आपकी सरकार के कार्यकाल का और केंद्र सरकार के कार्यकाल का यानी दोनों सरकार के कार्यकाल का कहीं न कहीं जो नतीजे आएंगे, उसमें उसकी रिफ्लेक्शन साफ दिखाई देगी?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः नहीं, ठीक है, आपका जो सवाल है और जब राज्य में और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकारें हैं तो स्वाभाविक रूप से जो जनअपेक्षाएं होती हैं वो अधिक भी होती हैं और उनकी आकांक्षाएं भी बड़ी होती हैं और दो साल उत्तराखंड की सरकार का हुआ है 18 मार्च को और दो साल में हमने ये कोशिश की कि एक ईमानदार सरकार इस राज्य में चले जो भ्रष्टाचार का तमगा उत्तराखंड पर पिछले समय में लगा है, उससे मुक्त हो उत्तराखंड और लोगों में ये संदेश जाना चाहिए कि ये सरकार भ्रष्टाचार से मुक्ता है और ये सरकार विकास के प्रति जवाबदेह सरकार है। हमने इन दो वर्षों में ईमानदारी से उसका प्रयास किया। उत्तराखंड की जनता ने जब भी ऐसा मौका मिला कि जब हमें जनता के बीच में जाना पड़ा, चाहे उपचुनाव रहा हो विधानसभा का या स्थानीय निकाय के चुनाव रहे होंगे। या जो अन्य जो त्रिस्तरीय उपचुनाव हुए उत्तराखंड की जनता ने उत्तराखंड की सरकार यानि जो जिसको मैं मुखिया के नाते देख रहा हूं, उस पर अपनी मुहर लगाई है कि सरकार ठीक काम कर रही है। इसी तरह से केंद्र सरकार की जो भी कल्याणकारी योजनाएं हैं या यहां पर जो अवस्थापना सुविधाओं का जिस तेजी से विकास हुआ है वो अभूतपूर्व है। कोई सोच भी नहीं सकता कि पहाड़ों में रेल जाएगी। उत्तराखंड में ऑल वैदर रोड बनेगी, हमारे जो दूरस्थ क्षेत्र हैं, वहां तक सस्ती हवाई सेवा शुरू होगी, ये कल्पना नहीं की जा सकती थी, आज अकल्पनीय कार्य पूरे हुए हैं।
सवालः ठीक है आपका कहना है कि खूब विकास यहां हुआ, लेकिन बड़ा अहम सवाल रावत साहब 18 साल में पांच सरकारें देख ली उत्तराखंड ने पर एक बड़ा सवाल ये रहा कि नौकरशाही पर सरकारों की पकड़ आज तक ढीली रही, इस बार क्या आपको लगता है कि आप इस बात को तोड़ रहे हैं, तोड़ने वाले हैं या तोड़ चुके हैं ?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः उत्तराखंड की जो नौकरशाही है, बड़ी चीज ये होती है कि जब हम ट्रांसफर पोस्टिंग को धंधा बना देते हैं, उद्योग के रूप में उसको स्थापित कर लेते हैं। व्यक्ति की बजाए हम व्यक्तिगत रूप से उसको देखते हैं कि मेरे हितों के लिए ये अधिकारी काम करने वाला है या नहीं करने वाला है। स्टेट के लिए नीतिगत जो निर्णय लेने होते हैं, अदिकारी उन कामों को करने वाला है या कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने वाला है। तो तब ब्यूरोक्रेसी या नौकरशाही बेलगाम हो जाती है। उत्तराखंड में हमने बड़ी ईमानदारी से इस चीज को बदला है। आज उत्तराखंड में ये जो ट्रांसफर-पोस्टिंग का उद्योग था, वो पूरी तरह बंद है, हमने 100% बंद किया है उसको और उसके कारण ये हैं कि हमारी जो ब्यूरोक्रेसी है, यहां पर चाहें आप कानून व्यवस्था देखिए यहां पर जो कार्यकाल रहा है, दो सालों का कार्यकाल हम देख रहे हैं। डेवलपमेंट के वर्क हम देखें, हेल्थ में हम देखें, एजुकेशन में हम देखें तो तमाम चेंज आए हैं। कानून व्यवस्था में देश के दस थानों में दो थाने उत्तराखंड के टॉप टेन में आए। अगले वर्ष एक थाना टॉप टेन में आया। तो मैं समझता हूं कि ये ब्यूरोक्रेसी पर जो नियंत्रण है, उसी का ये परिणाम है। साथ ही हमने कुछ ऐसे सुधार किए हैं कि हमने एक थाना विविध विकास निधि हमने थानों के लिए दिया है। उसके कारण क्या होता है, कि एक कंपल्सिव करप्शन जो होता था, चोरी हो गई, कोई मर्डर हो गया, मर्डरर यहां से कलकत्ता भाग गए या दूसरे देश के किसी कोने में भाग गए अब पुलिस के पास ऐसा कोई फंड नहीं होता कि वो बाइएयर वहां पर जा पाए, उनके पास ऐसा कोई फंड नहीं होता कि वो चार टीमें यहां भेजे, वहां भेजे तो फिर वो इधर-उधर से या फिर उन्हीं से जो प्रभावित हुआ दुर्घटना के कारण उन्हीं से सुविधा मांगते हैं, हमको गाड़ी दे दीजिए, सुविधा दे दीजिए तो हमने आज उस चीज से मुक्त किया। और हर थाने को हमने एक बजट दिया है। उसका ये परिणाम रहा है कि थाने की जो कार्यपद्धति है, पुलिस की जो कार्यपद्धति है, उसमें बदलाव आया और कंपल्सिव करप्शन जो था वो आज काफी हद तक हम ये कह सकते हैं कि कम हुआ।
सवालः मुख्यमंत्री जी, एक बड़ा कदम आपने उठाया, इन्वेस्टर मीट आपने की और कहीं न कहीं आफका ये लक्ष्य था कि प्रधानमंत्री भी कहते हैं कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम कभी नहीं आती। तो निवेश लाकर आप इस मिथ को तोड़ें। तो क्या ये निवेश सचमुच धरातल पर उतरा या कागजों तक सिमट कर रह गया MOU के जरिए। क्या कहना है आपका?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः देखिए हमने 7-8 अक्टूबर, 2018 को ये समिट किया था। माननीय प्रधानमंत्री जी उसके उद्घाटन में आए थे। 1 लाख 24 हजार करोड़ से ज्यादा के एमओयू उसमें साइन हुए। इस समिट की जो विशेषता थी कि अभी तक जो भी इन्वेस्टमेंट आता था वो मैदानी हिस्से में आता था या मैदानी क्षेत्रों में आता था। इसमें 40 हजार करोड़ रुपया जो हमारी पर्वतीय क्षेत्र हैं, जो दूरस्थ क्षेत्र हैं, वहां के लिए भी एमओयू साइन हुए। तीसरी बात इसकी ये है कि अक्टूबर के बाद साढ़े चार महीनों में साढ़े तेरह हजार करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट ग्राउंड पर आ गया है, जो इस समय चालू हो रहा है। जबकि 18 या 17 सालों में आप देखिए हमारी स्टेट में कुल मिलाकर 40 हजार करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट आया है, वो भी तब जब तमाम तरह की रियायतें थी 2003 में तो एक विशेष पैकेज अटल जी ने उत्तराखंड को दिया था। आज तो कोई भी आकर्षण उत्तराखंड में नहीं था कि कोई विशेष छूट दे रहे हैं लेकिन उसके बावजूद इन पांच-साढ़े पांच महीनों में अभी तक साढ़े 13 हजार करोड़ रुपया ये ग्राउंड पर आ गया है। यानि कि जितना टोटल आया 18 सालों में उत्तराखंड में उसका वन थर्ड (1/3) इन पांच साढ़े पांच महीनों में आया है। इसमें पर्वतीय क्षेत्रों में भी हमारी कुछ नई शुरुआत हुई हैं। जिससे वहां पर रोजगार जनरेट होगा। हमारे सोलर में, हमारे पास वहां पर लगभग हजार बारह सौ करोड़ का इन्वेस्टमेंट आया है, जो कि पीरूल एक पहाड़ में एक पौधा होता है, उसको चीड़ का बोलते हैं, पाइन ट्री बोलते हैं तो पाइन की पत्तियों से बिजली बनाने का काम, पाइन की पत्तियों से तारकोल निकलता है, डीजल निकलता है और उससे दवाइयों में इस्तेमाल होने वाला ऑयल निकलता है। वो सारा काम हमारे राज्य में शुरू हुआ है। तो ये समिट हमारा हुआ तो एक तरह जो परिकल्पना थी राज्य निर्माण के समय की पर्वतीय क्षेत्रों में भी विकास होना चाहिए। उत्तर प्रदेश से लखनऊ से दूरस्थ क्षेत्रों में निगाह नहीं जाती है, आज उसको हम काफी हद तक, ये कहना चाहिए कि शासन-प्रशासन और उद्योग की निगाह वहां तक पहुंची है और वहां पर नए उद्योग लगे हैं।
सवालः एक अलहदा सवाल मुख्यमंत्री जी, क्योंकि आपका एक लंबा अनुभव रहा संगठन का, एक कुशल संगठनकर्ता के रूप में आपकी पहचान है, भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर भी। लेकिन अभी जो विधानसभा चुनाव उत्तराखंड में हुए थे, उससे पहले आपने बहुत से कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करवाया। क्या वो तमाम कांग्रेस के नेता, भारतीय जनता पार्टी के आचार विचार में ढल गए क्योंकि आपके संगठन में और कांग्रेस के संगठन में बहुत अंतर है ?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः देखिए हम ये कह सकते हैं कि उन लोगों में बहुत बड़ा चेंज आया है। और अधिसंख्य लोग काफी समरस हुए हैं, कुछ समरस होने की प्रक्रिया में हैं, मुझे लगता है कि जो कोने रह जाते हैं ना, कोने घिस जाएंगे और सब ठीक हो जाएंगे।
सवालः तो क्या जल्द ही वो भी आपकी पार्टी के रंग में रंग जाएंगे या यूं कहा जाए कि वो किसी रंग में ढलने के लिए ही नहीं बने हैं?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः देखिए अब, ऐसा नहीं है मैंने देखा है कि जब हम बात कर लेते हैं तो समझ भी जाते हैं। समझ जाते हैं और उनको हम समझाते हैं कि थोड़ा सा ठीक है, अब आप लोग जैसे वातावरण में रहे हैं, उससे थोड़ा यहां का वातावरण अलग है। अब ये तो गंगा है, गंगा में आए हैं तो सबको गंगामय हो जाना चाहिए।
सवालः पलायन को लेकर जब से उत्तराखंड बना चर्चाए होती रहीं, सेमिनार होते रहे लेकिन किस तरह से पलायन को रोका जाए, इसको लेकर जो ठोस कदम था वो नहीं उठाया गया वो गंभीरता सिर्फ चर्चाओं में दिखी अमल में नहीं लाई गई, आपकी सरकार आने के बाद कितना परिवर्तन?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः देखिए, पलायन के कारण को जानने के लिए हमने पहले ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग बनाया। भारत सरकार के जो बहुत सीनियर अधिकारी रहे, जो उत्तराखंड के रहने वाले थे, जिनका बचपन यहीं पर बीता, बाद में उन्होंने हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में अपनी सेवाएं दी। मेरा आशय ये है कि जिनको पर्वतीय क्षेत्रों में काम करने का बहुत अच्छा अनुभव था, उनको उस आयोग का अध्यक्ष बनाया। पूरा अध्ययन हमने पलायन के कारणों का किया। तीन चीजें जो समझ में आई कि, एक, शिक्षा व्यवस्था ठीक होनी चाहिए, दूसरी बात कि स्वास्थ्य की व्यवस्था होनी चाहिए तीसरी बात की रोजगार होना चाहिए। और इस तरह से हम देखें तो शिक्षा की दृष्टि से हमने पूरे राज्य में एनसीईआरटी की पुस्तकों को लागू किया है यानि पूरे राज्य में एक जैसी शिक्षा दे रहे हैं। ताकि समान अवसर मिले लोगों और जो ज्ञान है वो भी समान रूप से मिले। दूसरी बात स्वास्थ्य की दृष्टि से हमने पहले एक साल में, जितने डॉक्टर हमारे थे, इन 17-18 सालों में, करीब उतने ही डॉक्टरों की हमने भर्ती करी। हमने जो तकनीक का सहारा लिया स्वास्थ्य में, टेलीमेडिशियन, टेली रेडियोलॉडी, टेली कॉर्डियोलॉजी भी हमने शुरू की और टेली पैथोलॉजी हम शुरू कर रहे हैं। उसका जो डॉक्टर्स की जो कमी है, दूरस्थ क्षेत्रों में जो डॉक्टर अपॉइंटमेंट तो ले लेते हैं कई बार लेकिन ज्वाइन नहीं करते, ज्वाइन कर लेते हैं तो वहां पर रहते नहीं है, और विशेषकर जो रेडियोलॉजिस्ट हैं, उसकी एक बड़ी कमी राज्य में है। क्योंकि एक सुनिश्चित वेतन उनको मिलता है, जबकि प्राइवेट में बहुत अच्छी हैंडसम इनकम होती है। और आज देश के एक तिहाई ई- हॉस्पिटल उत्तराखंड में हैं और आज हमने जो बच्चे हैं और बुजुर्ग हैं, वरिष्ठ नागरिक हैं, हमने उनको ओपीडी फ्री किया है। उससे बड़ी जो योजना हमने उत्तराखंड को दी है, वो है भारत सरकार की आयुष्मान भारत योजना। जिसमें देश के दस करोड़ परिवार कवर हुए और उत्तराखंड के भी लगभग 5 लाख 37 हजार परिवारों को स्वास्थ्य सुरक्षा का कवच भारत सरकार द्वारा दिया गया। पूरे उत्तराखंड के हर परिवार को हमने उसमें स्वास्थ्य का सुरक्षा कवच दिया पांच लाख का। इनके अलावा जो परिवार हैं, उन सबको भी कवर किया और उसका नाम दिया अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना। अभी तक 25 दिसंबर को जब हमने ये योजना लॉन्च की थी, अभी तक हमारे 26 हजार से भी ज्यादा लोगों ने लाभ लिया है। आज हमने लोगों को ये आशवस्त कर दिया है, कि कभी आपको ऐसी कोई जरूरत पड़े तो पांच लाख तक आपको कोई समस्या नहीं है। और रोजगार की दृ्ष्टि से जो तीसरा पक्ष है, हमने एक ग्रोथ सेंटर की परिकल्पना की, हमारे जो दूरस्थ क्षेत्र हैं, हर न्याय पंचायत में एक ग्रोथ सेंटर हो, उस ग्रोथ सेंटर में एक तो जो नैचुरल प्रोडक्ट है, जंगलों से जो उपलब्ध हो रहै है, क्योंकि उत्तरांखड में 70 फीसदी फॉरेस्ट एरिया है, तो जंगलों से हमें जो मिल सकता है, उसकी मार्केटिंग करना। दूसरा जो परंपरागत रूप से हम अपने खेतों में कर रहे हैं, बाय डिफॉल्ट उत्तराखंड ये ऑर्गैनिक है, जो विशेषकर जो हमारा पहाड़ी क्षेत्र है, वो ऑर्गैनिक है तो वो प्रोडक्ट, उनको प्रोसेस करना, उनको पैकेजिंग करना, ब्रांडिंग करना, उसकी मार्केटिंग करना, उनको मार्केट लिंकेज देना और साथ ही जो हमारी लोकल नीड्स हैं। जैसे ग्राम लाइट करके हमने एक शुरू किया एक एलईडी लैंप्स का, गांव में हमने महिलाओं को प्रशिक्षित किया कि आप एलईडी लैंप्स बनाइए और उसको हमने जो लोकल जो डिमांड है, उसको पूरा करने के लिए, साज सज्जा के लिए, बड़ी डिमांड उसकी आज है। तीसरी, हमारे यहां जैसे 625 मंदिर हैं, जिनमें लगभग 4 करोड़ तीर्थ यात्री हर साल आते हैं। हमने देवभोग प्रसाद करके जो अपनी लोकल जो हमारे अनाज हैं, लोकल जो हमारे प्रोडक्ट हैं, उनसे हमने प्रसाद बनाने का प्रशिक्षण दिया।
सवालः शौर्य धाम भी काफी दिनों से चर्चा में है, तो ये किस तरह से जमीन पर उतरेगा क्योंकि चुनावी दिनों में भी खासा विवाद इस पर हुआ?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः हां, ऐसा है उत्तराखंड में हमारे लगभग 16 परसेंट लोग सेना में और अर्धसैनिक बलों में हैं। देश में आजादी के बाद जो भी संघर्ष हुए देश की एकता और अखंडता के लिए या आतंकवादी जो भी घटनाएं हुई हैं, संसद पर हमला हुआ होगा या जो अक्षरधाम पर हुआ होगा। ऑपरेशन श्रीलंका हुआ होगा। तमाम जो, या अभी पुलवामा हुआ है, उससे पहले उरी हुआ है, इन तमाम में अगर देखें देश का तो 6 प्रतिशत शहादत उत्तराखंड से हुई है। या हम ऐसे कहें कि 6 प्रतिशत लोग हमारे हैं, जिन्होंने देश के लिए बलिदान दिया। और प्रधानमंत्री जी भी यहां पर जब आए थे, तो उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड में चार धाम नहीं उत्तराखंड में पांचवां धाम है, वो है सैन्य धाम। और हम लोगों ने अपने बजट में ये प्रोविजन किया कि हम एक ऐसा उन शहीदों की याद में एक ऐसा स्मारक हम बनाना चाहते हैं जो जीवंत हो। खाली हम लोग केवल कोई स्ट्रक्चर खड़ा नहीं करेंगे। बल्कि वो जीवंत होगा। और उसको हमने, प्रधानमंत्री जी ने जैसा कहा कि पंचम धाम है तो हमने भी ये विचार किया कि निश्चित रूप से हमको अपने सैनिकों के सम्मान के लिए, जिन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दिया है, तो उसको हम इस ढंग का स्वरूप देंगे कि वो पंचम धाम के रूप में वो स्थापित हो।
सवालः मुख्यमंत्री जी आखिर में दो बड़े अहम सवाल आपसे, एक बड़ा व्यक्तिगत सवाल, गुस्सा बहुत कम आता है यानि आप मिस्टर कूल हैं राजनीति के, आखिरकार इसकी वजह क्या है, क्योंकि तनाव तो बहुत रहता है सियासत में और दबाव भी बहुत रहता है ?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः देखिए दबाव, तो रहता है राजनीति में लेकिन एक तो दबाव में आना नहीं चाहिए और दबाव में कोई काम करना नहीं चाहिए। अगर दबाव में करते हैं आप तो कहीं न कहीं गलत होने की संभावना होती है और दबाव में न आओ आप तो इसके लिए बहुत कूल रहें, तनाव से मुक्त रहें। मेरा ये मानना है कि तनाव से कुछ नहीं होता है, उससे नुकसान होता है, फायदा नहीं होता है और इसीलिए तनाव से बचना चाहिए।
सवालः लेकिन मुख्यमंत्री जी, कुछ लोग जैसे ही लोकसभा का चुनाव खत्म हुआ कुछ लोग तनाव में हैं आपके मंत्रिमंडल के सहयोगी तो क्या ये माना जाए कि जैसे ही नतीजे आएंगे लोकसभा के, उसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत भी सहयोगियों का मूल्यांकन करेंगे, उनका या तो तनाव कम करेंगे या तनाव बढ़ाएंगे ?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः नहीं मेरा ये मानना है कि हमारी हर समय एक कोशिश रहनी चाहिए कि तनाव कम किया जाए। दूसरे का भी, अगर मैं अपना तनाव कम करता हूं या तनाव में नहीं रहता हूं तो मेरा ये भी दायित्व है कि सामने वाले का भी तनाव कम हो और इसीलिए मेरी तो हमेशा यही कोशिश रहेगी कि ऐसे मौके आते हैं तो तनाव को कम किया जाए।
सवालः यानि कुछ लोगों को तनाव कम होने वाला है, यानि तैयार रहना चाहिए?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः नहीं, मेरा तो शुरू से ये कोशिश है, मैंने तो हमेशा से ये कोशिश की है कि तनाव न हो।
सवालः मुख्यमंत्री जी, एक आखिरी सवाल, क्योंकि ABP गंगा ख़बरों की दुनिया में एक नई शुरुआत है, उत्तराखंड की तो कहीं न कहीं जो गंगोत्री है, तो कहीं न कहीं हम ये चाह रहे है कि कोई न कोई ख़बर तो जरूर निकले, तो हम ये जानना चाह रहे हैं कि क्या लोकसभा चुनाव के बाद मंत्रिमंडल का फेरबदल करेंगे ?
त्रिवेंद्र सिंह रावतः देखिए हम लोग राजनीति कर रहे हैं, तो राजनीति में समय का बड़ा महत्व होता है, लोग न पंडित जी पास जाते हैं, मुहूर्त निकालते हैं और इसीलिए ये सब चीजें जो भी करना होता है। वो ऐसी परिस्थितियां हो तब इस तरह के निर्णय लिए जाते हैं, मैं समझता हूं कि ऐसी कोई परिस्थिति उत्तराखंड में नहीं है। उत्तराखंड हमारा शांतिप्रिय राज्य है। यहां के लोग बहुत ही सकारात्मक हैं। यहां के लोग सृजन में विश्वास रखते हैं। तो ऐसी कोई स्थिति उत्तराखंड में नहीं आने वाली कि इस तर ह से विचार करें। फिलहाल, ऐसा कोई विचार नहीं है हां हम ये जरूर चाहते हैं कि विभागों का पुनर्गठन हो। तो उनको हम चाहते हैं कि विभागों की संख्या कम होनी चाहिए।