अमेठी, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव में हार के बाद बुधवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपने पहले दौरे पर अमेठी पहुंचे। राहुल गौरीगंज के चौक स्थित कांग्रेसी नेता स्व. डॉ गंगा प्रसाद गुप्ता के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने उनके आवास पहुंचे। परिजनों से मुलाकात के बाद राहुल का काफिला निर्मला शैक्षिक संस्थान पहुंचा। यहां राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की।


नहीं छोड़ेंगे अमेठी
बैठक में शामिल कार्यकर्ताओं के मुताबिक, राहुल गांधी ने कहा कि वह अमेठी नहीं छोड़ेंगे। वह लगातार यहां आते रहेंगे। इसके साथ ही प्रियंका वाड्रा भी यहां आएंगी। राहुल ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वो हार से निराशा न हों। क्षेत्र में जाकर पार्टी को मजबूत करें। राहुल ने आगे कहा कि अब वह वायनाड से सांसद हैं, इसलिए ज्यादा समय उनको वहां देना होगा। फिर भी यहां के कार्यकर्तओं को जब उनकी जरूरत होगी तो वह हर समय खड़े रहेंगे। उधर, बैठक में प्रवेश न मिलने पर नाराज कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गेट के बाहर जिलाध्यक्ष योगेंद्र मिश्र के खिलाफ नारेबाजी की।


अमेठी पहुंचने से पहले पोस्टर वॉर
राहुल के अमेठी दौरे से ठीक पहले अमेठी में पोस्टर वॉर शुरू हो गया था। अमेठी में जगह-जगह पोस्टर लगाए गए, जिसमें संजय गांधी अस्पताल को लेकर राहुल गांधी से जवाब मांगा गया है। पोस्टर में लिखा है- 'न्याय दो न्याय दो, मेरे परिवार को न्याय दो. दोषियों को सजा दो...इस अस्पताल में जिंदगी बचाई नहीं गंवाई जाती है।' पोस्टर अमेठी में चर्चा का विषय बने रहे।



2002 में राजनीति में सक्रिय हुए
बता दें, राहुल गांधी अमेठी में सोनिया गांधी के सांसद रहते हुए 2002 में राजनीति में सक्रिय हुए। 2004, 2009 व 2014 के आम चुनाव में राहुल गांधी को अमेठी की जनता ने अपना रहनुमा चुना पर दूसरे चुनावों में कांग्रेस को करारी शिकस्त भी मिली। लेकिन, कांग्रेस ने कभी भी सियासी जख्मों से सबक लेकर आगे बढऩे की कोशिश नहीं की। 2017 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर पार्टी के प्रत्याशी नहीं जीते।


स्मृति ने दी राहुल को टक्कर
अमेठी में राहुल गांधी को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के पहले किसी योद्धा ने कोई खास चुनौती नहीं दी। राहुल ने दो चुनावों में रिकॉर्ड मतों के अंतर से जीत दर्ज की। आम चुनाव 2014 के पहले के तीन चुनाव में तो बस कहने को ही अमेठी में चुनावी मैदान सजता था। लेकिन, स्मृति पहले राहुल को कड़ी चुनौती दी और फिर पांच साल मेहनत कर अमेठी की सरताज बन गईं।