उदित राज ने बसपा के बीजेपीकरण का लगाया आरोप, कहा- आंदोलन को बचाने की चुनौती
Udit Raj on Mayawati: कांग्रेस नेता उदित राज ने प्रेस रिलीज़ जारी कर बसपा के बीजेपीकरण होने के आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि बहुजनों के सामाजिक आंदोलन को बचाने की चुनौती है.

Udit Raj on Mayawati: कांग्रेस नेता उदित राज के मायावती को लेकर दिए गए बयान को लेकर सियासी उबाल आ गया है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने जहां उन्हें दलबदलू नेता बताया तो वहीं आकाश आनंद ने उनकी गिरफ्तारी की मांग की है. इस बीच उदित राज ने प्रेस रिलीज जारी कर बसपा की राजनीति का बीजेपीकरण होने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि अब अंबेडकर और कांशीराम द्वारा शुरू किए गए सामाजिक आंदोलन को बचाने की चुनौती है.
डॉ. उदित राज ने कहा कि 1980 के दशक में कांशीराम ने बहुजन जागृति की शुरुआत की जो 2000 के दशक में चरम पर थी. ये आंदोलन भले ही राजनीति के लिए हुआ लेकिन सोच और आधार सामाजिक न्याय ही रहा. दूसरे राजनैतिक दल राजनीति से ही शुरू करते हैं उससे ही अंत हो जाता है, लेकिन बसपा के साथ ऐसा नहीं रहा. मायावती के दुर्व्यहार, भ्रष्टाचार, लालच और कार्यकर्ताओं से दूरी बनाने के बावजूद बसपा की राजनैतिक ताकत लंबे समय तक टिकी रही. उनकी क्रूरता और निकम्मेपन के बावजूद कार्यकर्ता और वोटर जंग करता रहा. कार्यकर्ताओं के घर बिक गए, उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखायी नहीं हो पायी और बची-खुची ताकत की सौदेबाजी चलती रहती है.
बसपा के कार्यकर्ताओं में निराशा
उदित राज ने कहा आज लाखों फुले, शाहू, अंबेडकर को मानने वाले कार्यकर्ता निराशा के दौर से गुजर रहे हैं. कुछ ने अपने स्तर पर छोटे-छोटे संगठन खड़े कर लिए हैं लेकिन इनकी सोच मरी नहीं है. पूरी तरह से सोच मर जाए और लोग बिखर जायें, उससे पहले दलित, ओबीसी, माइनॉरिटीज एवं आदिवासी संगठनों का परिसंघ (डोमा परिसंघ) मैदान में है और फिर से बहुजन आंदोलन पुनर्जीवित और खड़ा करने में जुटे हैं.
कभी जो दलितों के बुरे हालात होते थे आज उसी दौर से मुस्लिम समाज गुजर रहा है. मुस्लिम समाज अकेले परिस्थिति से नहीं लड़ सकता. दलित भी अकेले सक्षम नहीं है. जब भी मुस्लिम समाज अपनी समस्या को उठाता है उसकी परिणिति सांप्रदायिकता में तब्दील कर दी जाती है. गत 1 दिसंबर 2024 को डोमा परिसंघ की प्रथम रैली दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई, जिसमे वक़्फ़ बोर्ड बचाने की मांग प्रमुखता से उठी.
पूर्व सांसद उदित राज ने कहा डॉ. अंबेडकर और सामाजिक न्याय का सिद्धांत शब्दों और भाषणों तक ज़्यादा सीमित रहा नहीं तो इतनी दुर्गति न होती. डॉ. अंबेडकर पूरे जीवन संघर्ष करते रहे, फिर भी हिंदू धर्म में कोई सुधार नहीं हुआ. तथाकथित अंबेडकरवादी जाति तक तो तोड़ नहीं पाए कम से कम जातिवाद और जातीय संगठन से बाज आओ. कब तक ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के खिलाफ बोलकर लोगों को इकट्ठा करते रहोगे. आज की जरूरत है कि अपने में परिवर्तन करो. मुसलमान के खिलाफ बोलकर हिंदुओं को एकजुट किया जाता है और सवर्ण की आलोचना करके दलितों और पिछड़ों को, इस मार्ग पर चलना छोड़ दो. भगवान गौतम बुद्ध ने कहा था- अत्त दीपो भव. इसका आशय है कि खुद की सोच बदलो. दलित-पिछड़े चाहते हैं कि सवर्ण स्वयं तो बदले लेकिन ये खुद में जात-पांत करते रहें.
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