वैश्विक महामारी कोरोना ने 320 साल की परंपरा पर लगाया ब्रेक, इस बार नहीं उठेंगे ताजिया
कोरोना महामारी के चलते लोगों की जीवन शैली और परंपराओं में बड़े बदलाव कर दिये हैं. इसकी वजह कई धार्मिक आयोजन भी फीके रहे. इस बीच मोहर्रम के ताजिये भी नहीं दिखेंगे. गोरखपुर के ऐतिहासिक इमामबाड़े का शाही जुलूस भी नहीं निकलेगा.
गोरखपुर. वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से इस बार गोरखपुर के इमामबाड़ा इस्टेट की 320 साल से चली आ रही परंपरा पर भी ब्रेक लग गया है. इस बार मोहर्रम के त्योहार पर न तो कोई भी सार्वजनिक आयोजन होंगे और न ही ताजिया ही उठेंगे. डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन और केन्द्र के साथ प्रदेश सरकार के आह्वान पर वैश्विक महामारी से बचने के लिए इस परम्परा पर 320 साल में पहली बार ब्रेक लगा है.
320 साल पुराना इमामबाड़ा
गोरखपुर के मियांबाजार में स्थित इमामबाड़ा बाबा रोशन अली शाह के आस्ताने पर सदियों से रखी सोने-चांदी की ताजिया पर मन्नत को मांगने और पूरा होने के लिए याद में सुहागन औरतें हाथ के कंगन और चूड़ी बांधते हैं. पुरुष धागे और चांदी के पंजे चढ़ाते हैं. देश के कोने-कोने से लोग आते रहे हैं. यहां मोहर्रम में एक माह तक मेला लगता रहा है. लेकिन, इस बार यहां सन्नाटा पसरा हुआ है. पहली मोहर्रम से ही हजारों की तादाद में अक़ीकद मंदों का यहां आना शुरू हो जाता है. लेकिन, कोरोना महामारी की वजह से इस बार सन्नाटा पसरा हुआ है. गोरखपुर जिले में स्थित इमामबाड़ा का निर्माण लगभग 320 वर्ष पहले हुआ.
शाही अंदाज में निकलता था जुलूस
यहां पर मोहर्रम के पर्व के पहले दिन से जुलूस सद्दा, ताजिया, उठना शुरू हो जाता है. यहां शाही अंदाज में इमामबाड़ा स्टेट के द्वारा जुलूस निकलता है. जिसमें हाथी, घोड़ा, बग्गी के साथ-साथ हजारों की तादाद में अक़ीदतमंद जुलूस में शामिल होते हैं. पूरे शहर में लगभग 12 से 13 किलोमीटर की एरिया में भ्रमण करने के बाद पुनः शाही अंदाज में जुलूस इमामबाड़ा स्टेट में आकर खत्म होता है. लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं होगा. आज मोहर्रम का दूसरा दिन है. लेकिन चारो तरफ सन्नाटा पसरा है.
सोने-चांदी के ताजिये
मोहर्रम का पाक महीना 20 अगस्त को चांदरात हुई है. 21 को मोहर्रम का पाक माह शुरू हुआ. आज दूसरा दिन है. इमामबाड़ा के अंदर सन्नाटा पसरा है. सुन्नी समुदाय का इमामबाड़ा, जो गोरखपुर में है, वैसा इमामबाड़ा एशिया में कहीं नहीं है. मियांबाज़ार स्थित मियांसाहब का इमामबाड़ा नाम से प्रचलित इस इमामबाड़ा में सोने-चांदी की ताज़िया है. वैसी ताज़िया कहीं नही हैं. इमामबाड़ा का इतिहास 320 साल पुराना है. यह इमामबाड़ा सामाजिक एकता और अकीदत का केंद्र है. यह गोरखपुर का मरकजी इमामबाड़ा है.
एशिया में सुन्नी सम्प्रदाय के सबसे बड़े इमामबाड़े के रूप में इसकी ख्याति है. यहां सूफी संत सैयद रौशन अली शाह का फैज बंटता है. यहां हर मजहब के मानने वालों की दिली मुरादें पूरी होती हैं. लेकिन, इस बार कोरोना महामारी की वजह से तमाम धार्मिक स्थलों पर रोक लगा दी गई. सार्वजनिक कार्यक्रम के साथ साथ तमाम त्योहारों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. जिसको देखते हुए गोरखपुर का इमामबाड़ा के अंदर भी चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है. कोरोना महामारी ने इस इमामबाड़ा के अंदर भी विराम लगा कर 320 सालों से चली रही परम्परा का रिकॉर्ड तोड़ दिया.
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