Corruption in Basti: एक ऐसी सड़क आज हम आपको दिखाएंगे जो बनी तो है मगर आपको दिखेगी नहीं. सरकार की फाइलों में एक दो नहीं बल्कि तीन सड़क का निर्माण करवा दिया गया मगर ये सड़क कहां बनी है और कौन इस सड़क पर चल रहा किसी को नहीं पता. क्यों कि सरकारी कार्यालयों में बैठे बाबुओं के पास अलादीन का चिराग जो है, जो सड़क के नाम पर भी खेला कर देते है और उनके ऊपर बैठे अफसर भी उनकी हां में हां मिलाकर इस भ्रष्टाचार में भागीदार बनते हैं.


इस तरह हुआ भ्रष्टाचार


मनरेगा योजना की जब शुरुआत हुई थी तो इसका मकसद था कि, गांवों का सर्वांगीण विकास हो सके लेकिन ये योजना असल में सरकारी धन के लुटेरों का सरकारी अड्डा बन गया. एसी कमरों में बैठे सरकारी अफसरों की फौज ने जनता के सरकारी धन को कौड़ियों सी बना दिया. लूट की एक ऐसी ही इबारत बस्ती जिले के गौर ब्लाक से आई है. जहां रानीपुर ग्राम प्रधान,सेक्रेटरी कौशल पांडेय व ब्लाक के कर्मचारियों की तिकड़ी ने सरकारी धन की डकैती करने की योजना बना ली. रानीपुर गांव के विकास के लिए सरकार ने पैसा भेजा लेकिन इस सरकारी पैसों को यहां के लालची सेक्रेटरी की नज़र लग गई. जिस पैसे से गांव की सड़कों का विकास होना था वह भ्रष्टचार की भेंट चढ़ गया. सवाल यहां उठता है कि, जब सेक्रेटरी स्वयं इंटरलाकिंग ईंट की फैक्ट्री लगाएगा और जिन गांवों में उसकी तैनाती है वहां सप्लाई भी खुद वही देगा और नियम विरुद्ध अवैधानिक ढंग से अपने सगे भाई -भतीजे की फर्म पर भुगतान भी कर देगा तो ऐसे में विकास कार्यों की गुणवत्ता कैसी होगी, ये किसी को बताने की जरूरत नहीं होगी.


नहीं बनी सड़क


दरअसल, रानीपुर गांव में कटया प्राइमरी स्कूल की सड़क कच्ची थी जो कि बरसात में चलने लायक नहीं थी. क्योंकि यहां पर देश के नौनिहाल पढ़ते हैं, इसलिए ये सड़क सरकार ने मनरेगा योजना के तहत पास कर दी, जिसमे इन नौनिहालों के लिए चमचमाती इंटरलॉकिंग सड़क का निर्माण होना था. इससे पहले ये सड़क बनती गांव के सेक्रेटरी कौशल पाण्डे व प्रधान ने सरकारी धन को हड़पने की योजना बना ली. ये सरकारी लुटेरे यहीं नहीं रुके इसी गांव के दूसरे मजरे पर भी इंटरलॉकिंग का निर्माण होना था जो कि बभनान हलुआ मार्ग से दीपचंद के मकान तक रोड बनना था लेकिन ये अदृश्य रोड शायद ही आपको दिख जाए.


कागजों पर पूरा हो गया काम


सरकारी धन की संगठित लूट की योजना इतनी फुल प्रूफ थी कि कौशल किशोर पाण्डेय गौर ब्लाक के जिस भी गांव का सेक्रेटरी बने उन सभी गांवों में अपने ही इंटरलाकिंग ईंट फैक्ट्री का घटिया ईंट इस्तेमाल किया और उसमें ब्लॉक के फरेबी सेक्रटरी कौशल पाण्डे ने अपने परिवार के सगे भतीजे की फर्म पाण्डे ट्रेडर्स पर भुगतान करा लिया. इतना ही नहीं इन सड़कों पर काम हुए बिना ही कागज में FTO भी जारी करा दिया गया, Fto तब बनता है जब कार्य पूर्ण हो जाता है. मतलब कागजी विकास को धरातलीय विकास दिखाकर भ्रष्ट सेक्रेटरी ने अपनी पीठ भी थपथपवा ली. 


सीडीओ ने कहा जांच की बात


कागजी घोड़े के नायाब कारनामे की भनक जब जिले में विकास वाले बड़े अफसर को हुई तो आनन फानन में फरेबी सेक्रेटरी ने काम चालू करा दिया. इस पूरे घटनाक्रम पर जब हमने सीडीओ से बात की तो उन्होंने कहा कि मामला मेरे संज्ञान में है. इसमें जिला स्तरीय टीम बनाकर जांच कराई जा रही है जो भी तथ्य सामने आएगा उसमें कठोर से कठोर कार्रवाई और रिकवरी भी कराई जाएगी.



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