लखनऊ: क्या आप सोच सकते हैं कि सरकार का कोई ऐसा विभाग भी होगा जहां सरकारी अधिकारी और कर्मचारी से ज्यादा माफियाओं की चलती हो, जिनके एक इशारे पर फाइलों के आदेश बदल जाते हों. फाइलों में लगे दस्तावेज गायब कर दिए जाते हों और भू-माफिया कानूनी दस्तावेज में फरार, वांटेड चल रहे हों लेकिन उनका ठिकाना वही सरकारी दफ्तर बन गया हो. हम आपको इसी सरकारी विभाग में फैले माफिया राज के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके ऊपर जिम्मेदारी तो शहर के विकास की थी लेकिन इस महकमे के भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों ने माफियाओं के साथ मिलकर अपना ही विकास ज्यादा किया और महकमे को डुबो कर रख दिया.


फाइल चेक करता हुआ नजर आया भू-माफिया
पड़ताल में एक शख्स फाइल चेक करता हुआ नजर आया. इस शख्स का नीम दिलीप सिंह बाफिला है, वो दिलीप सिंह बाफिला जो लखनऊ प्रशासन का घोषित भू-माफिया है, जिसने एलडीए से लेकर ग्राम समाज की जमीनों को कब्जा कर अपनी तिजोरी भर रखी है और सीतापुर हाईवे पर हिमालयन इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग का मालिक भी है. दिलीप सिंह बाफिला लखनऊ विकास प्राधिकरण के मुख्यालय में एक तहसीलदार के कमरे में बैठकर गोपनीय फाइलें उलट-पलट करता हुआ नजर आया. जिन फाइलों के पर गोपनीय लिखा होता है, जिन फाइलों को अनाधिकृत व्यक्ति के द्वारा देखना भी अपराध होता है, दिलीप सिंह बाफिला उन फाइलों का मुआयना बड़ी आसानी से कर लेता है.


दर्ज हैं दर्जनों मुकदमे
दिलीप सिंह बाफिला पर अकेले लखनऊ के 6 थानों गोमतीनगर, चिनहट, हजरतगंज, विभूति खंड, मडियांव और गोसाईगंज में दो दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. दिलीप सिंह बाफिला को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है और ये लखनऊ प्रशासन का घोषित भू-माफिया भी है. फइलों की उलट-पलट से ये तो आप समझ ही गए होंगे कि लखनऊ विकास प्राधिकरण में आखिर विकास किसका हो रहा है? लखनऊ शहर का? लखनऊ विकास प्राधिकरण का? या फिर दिलीप सिंह बाफिला जैसे भू माफियाओं का?


119 चिन्हित भू-माफिया हैं
दिलीप सिंह बाफिला तो एक चेहरा भर है जो बीते सप्ताह एलडीए वीसी अभिषेक प्रकाश की छापेमारी में सामने आ गया. लेकिन, असल में ऐसे एक दो नहीं पूरे 119 चिन्हित भू-माफिया हैं जिन्होंने एलडीए की जमीनों पर कब्जा कर रखा है. 2 माह पहले ही तैयार हुई जिला प्रशासन के द्वारा भू-माफियाओं की सूची में एलडीए के 119 भू-माफिया चिन्हित हुए. इनमे बरेली जेल में बंद माफिया डॉन ओम प्रकाश श्रीवास्तव, बबलू, दिलीप सिंह बाफिला, ताराचंद बिष्ट, राम सिंह, बनवारी यादव, अजय यादव, सलीम सोहराब, लल्लू यादव, जयकार मिश्रा, सूर्यभान मिश्रा, फुरकान अहमद अब्बासी, राजेंद्र सिंह दुआ, राजू बाबू रस्तोगी, एहसान उर्फ जीशान सुफियान उर्फ छोटू, राशिद बेग, रवि निगम, सरदार बृजेंद्र सिंह के का नाम भी हैं.


लखनऊ को अपने इलाकों में बांट रखा है
ये वो नाम हैं जिन्होंने पूरे लखनऊ को अपने इलाकों में बांट रखा है. हर आदमी ने अपने इलाके में बेशकीमती जमीनों पर कब्जा कर रखा है और अरबपति हो चुके है. इतना ही नहीं तमाम किसान संगठन के नाम पर भी भू-माफिया पैदा हो गए जिन्होंने अपने अपने इलाके में बिल्डरों और आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है. वो फिर चाहे गोमती इलाके में सक्रिय किसान यूनियन के नाम वाला सावित्री गुट हो, आशियाना में राजू गुप्ता का गुट या फिर भानु सिंह गुट. कई बार तो इन गुटों के पदाधिकारियों में पैसों के बंटवारे को लेकर सिर फुटव्वल भी हो चुकी है, लेकिन एलडीए के जिम्मेदार अफसर इन विभाग जनित भू माफियाओं पर शिकंजा कसने में नाकाम साबित हो रहे हैं. यही वजह है कि आज आम आदमी की जुबान पर एलडीए, लखनऊ विकास प्राधिकरण न होकर लेनदेन प्राधिकरण, लखनऊ डुबाओ प्राधिकरण बन गया है. हालांकि, लखनऊ विकास प्राधिकरण की कुर्सी संभाल रहे डीएम अभिषेक प्रकाश का दावा है कि कार्रवाई की जा रही है.


भू-माफिया और अफसर करोड़पति हो रहे हैं
लेकिन, ये कार्रवाई सरकारी दस्तावेजों में एक पन्ने भर की है. अब तक की गई कार्रवाई में मोहनलालगंज मलिहाबाद से लेकर सदर तहसील में भू-माफियाओं पर 36 एफआईआर दर्ज करवाई गईं और इनके कब्जे से 549 करोड़ 17 लाख की कीमत की जमीन मुक्त भी कराई गई. मुक्त कराई गई इस जमीन की कीमत से आप अंदाजा लगा लीजिए कि राजधानी लखनऊ में 36 भू-माफियाओं के कब्जे में 500 करोड़ से ज्यादा की बेशकीमती जमीन थी, यहां तो फिर 119 भू-माफियाओं के कब्जे में कितने अरब की जमीन होगी. इसी जमीन के कब्जे से भू-माफिया और अफसर करोड़पति हो रहे हैं.


23000 फाइलें गायब हैं
भू-माफियाओं की लखनऊ विकास प्राधिकरण में पैठ का ही नतीजा है कि प्राधिकरण के स्कैनिंग को गई एक दो नहीं पूरी 23000 फाइलें गायब हैं. इसके साथ ही कीमती भूखंडों को रिटायर हो चुके कर्मचारियों के नाम पर भू-माफियाओं की मिलीभगत से किया गया ट्रांसफर भी एलडीए के भ्रष्टाचार का नमूना है. एलडीए के बाबू की लॉगिन आईडी बदल कर किया गया फाइलों से करोड़ों का खेल भी जांच के दायरे में है.


बेबस नजर आ रहे हैं अधिकारी
जिस लखनऊ विकास प्राधिकरण में एक आम आदमी को रहने भर की जमीन का एक टुकड़ा हासिल करने में एड़ियां घिस जाती हैं, जिसकी कागजी खानापूर्ति में ही आदमी एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर चक्कर काटता हुआ चक्करघिन्नी बन जाता है, उसी प्राधिकरण के भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों की मिलीभगत से दिलीप सिंह बाफिला, ताराचंद बिष्ट, राम सिंह, बनवारी यादव जैसे भू-माफिया अरबपति हो गए और प्राधिकरण की कीमती जमीन पर कब्जा कर बैठ गए. ऐसे भू-माफियाओं पर शिकंजा कसने में बेबस नजर आ रहे वीसी एलडीए और डीएम अभिषेक प्रकाश भू-माफियाओं पर कार्रवाई न कर पाने की बेबसी के सवाल को ही गलत बताते हैं.



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