बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हुए सरकारी शौचालय निर्माण में खुद अधिकारी अपनी जांच रिपोर्ट में ही फंस गए हैं. जिसके बाद बाराबंकी न्यायालय ने शौचालय निर्माण में हुई धांधली और गबन में अधिकारियों को समन जारी कर कोर्ट में 15 मार्च को तलब किया है. इस प्रकरण में हुई जांच में दो अधिकारियों ने जो जांच रिपोर्ट भेजी वो दोनों एक दूसरे से अलग हैं.


अधिकारियों को भेजा गया समन


राजधानी लखनऊ के नजदीक बाराबंकी जिला ओडीएफ घोषित है, लेकिन आज भी तमाम जगह शौचालय नहीं हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सरकारी धन के बंदरबांट और गबन मामले की सुनवाई करते हुए पुलिस द्वारा भेजी गई फाइनल रिपोर्ट को खारिज कर पूर्व एसपी, सीडीओ, बीडीओ और थानाध्यक्ष समेत छह लोगों को समन जारी कर दिया है. मामले की कोर्ट में पैरवी कर रहे अधिवक्ता शिव कुमार वर्मा ने बताया कि ब्लॉक देवा अंतर्गत अरौरा गांव में हुए शौचालय निर्माण में सरकारी धन का दुरुपयोग हुआ है. जिसमें खण्ड विकास अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी तो शामिल हैं ही, साथ ही जानकारी के बावजूद तत्कालीन सीडीओ मेधा रूपम, एसपी अरविन्द चतुर्वेदी और एसओ प्रकाश चन्द्र शर्मा ने जो रिपोर्ट ग्रामीणों के विरुद्ध शासन को भेजी इसके लिए वह भी बराबर के जिम्मेदार हैं.


ये था पूरा मामला


बाराबंकी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नंद कुमार ने सभी पर कार्रवाई की संस्तुति करते हुए समन जारी किया है और 15 मार्च को कोर्ट में पेश होने को कहा है. दरअसल मामला ब्लॉक देवा के नारायण भारी गांव का है. जहां के रामप्रताप ने जिलाधिकारी डॉ आदर्श सिंह को अपने गांव में हुए शौचालय निर्माण की जांच करवाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था. एक बार नहीं दो बार नहीं बल्कि तीन बार और तीनों जांच रिपोर्ट अलग-अलग निकली. जानकारी के अनुसार, प्रशासन का दावा था कि, 511 शौचालय निर्माण हुए थे लेकिन एसडीएम और सीडीओ की जांच रिपोर्ट अलग है. एसडीएम की रिपोर्ट बता रही है 511 में से 300 शौचालय निर्माण हुआ है, 150 अर्धनिर्मित हैं, 40 का निर्माण ही नहीं हुआ. वहीं, यहां की सीडीओ रही मेधा रूपम ने जांच रिपोर्ट में बताया की सभी शौचालय का निर्माण हो गया है. इन्हीं दोनों रिपोर्ट के आधार पर फरियादी ने पुलिस से कार्रवाई की मांग करते हुए एफआईआर दर्ज करवाने के लिए थाने के चक्कर काटे लेकिन पुलिस ने मामले में कोई सुनवाई नहीं की, गोलमोल करते रहे.


हारकर फरियादी ने ली कोर्ट की शरण


आखिर में फरियादी ने बाराबंकी की कोर्ट में 156 3 के तहत प्रार्थना पत्र दिया और रिपोर्ट के आधार पर थाना देवा में एफआईआर दर्ज करवाई. यहां भी पुलिस ने खानापूर्ति करते हुए रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन लेकिन संबंधित धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं की और उसमें भी फाइनल रिपोर्ट लगा दी. पीड़ित का कहना है कि, देवा ब्लॉक के खंड विकास अधिकारी अनूप कुमार सिंह, महंगी और लग्जरी गाड़ी से चलते हैं, जिसकी कीमत 60 से 70 लाख रुपए बताई जा रही है. फिलहाल मामले का संज्ञान बाराबंकी न्यायालय ने लिया और सभी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए 15 मार्च तक कोर्ट में हाजिर होने के लिए समन जारी किए हैं. अधिवक्ता का कहना है कि मामला फर्जी होने के बावजूद भी जब उप जिलाधिकारी को जांच रिपोर्ट में पता चल गया फिर उन्होंने आरोपियों के विरुद्ध क्यों नहीं एफआईआर दर्ज करवाई, जिससे वह लोग भी दोषी हैं.


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