कुछ तो अलग बात थी इस डाकू में, लोगों ने बनाया मंदिर आज भी करते हैं पूजा
चंबल का बीहड़ डकैतों के लिए किसी पनाहगाह की तरह थी। पुलिस के लिए इन बीहड़ों में जाना आसान नहीं था और डाकू यहां एकछत्र राज करते थे। यहां कुछ डाकू तो ऐसे भी हुए जिनकी लोग आज भी पूजा करते हैं और उनके मंदिर भी बने हैं।
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चंबल के बीहड़ और डकैत यह सुनने में ही डरावना लगता है। एक दौर था जब चंबल घाटी में कुख्यात डाकुओं का आंतक फैला था। चंबल में लोग जाने से डरते थे और इलाके के लोगों के मन में हमेशा इस बात का अंदेशा रहता था कि कहीं उनके साथ कुछ अप्रिय वारदात न हो जाए। चंबल ने कई डाकुओं को पनाह दी जिनकी बारे में जानने के लिए लोग आज भी उत्सुक नजर आते हैं।
कहना गलत नहीं होगा कि चंबल का बीहड़ डकैतों के लिए किसी पनाहगाह की तरह थी। पुलिस के लिए इन बीहड़ों में जाना आसान नहीं था और डाकू यहां एकछत्र राज करते थे। यहां कुछ डाकू तो ऐसे भी हुए जिनकी लोग आज भी पूजा करते हैं और उनके मंदिर भी बने हैं। तो चलिए हम आपको एक ऐसे ही डाकू के बारे में बताते हैं जो गरीबों के लिए किसी मसीहा की तरह था।
मंदिर में होती है पूजा डाकू मान सिंह। यह वही नाम है जो 1939 से 1955 तक चंबल में दहशत का दूसरा नाम था। मान सिंह पर लूट के 112 तथा हत्या के 185 मामले दर्ज थे। वर्ष 1950 में कुख्यात डकैत मान सिंह के नाम से लोग थर्रा उठते थे। डाकू मान सिंह ने ही चिट्टी भेजकर फिरौती मांगने की परंपरा शुरू की थी। 1971 में डाकू मान सिंह के नाम से फिल्म भी बनी। डाकू मान सिंह का पैतृक गांव खेड़ा राठौर (तहसील बाह, आगरा) में मंदिर है। इस मंदिर में रोज पूजा अर्चना होती है। यह मंदिर वर्ष 1984 में बना था।
ऐसे बने डाकू मान सिंह के डाकू बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। मान सिंह के पास गांव में जमीन थी और वो किसानी करते थे। 1930 का दशक था और गांव के साहूकारों ने जमीन पर कब्जे को लेकर लड़ाई शुरू कर दी। उनके बेटे की हत्या कर दी गई और फिर यहीं से शुरू हुआ था उनके बागी बनने का सफर। मान सिंह ने कानूनी लड़ाई भी जारी रखी लेकिन जब परिवार में 11 महिलाएं विधवा हो गईं तो उन्होंने बीहड़ का रूख किया और देखते ही देखते आतंक का दूसरा नाम बन गए। मान सिंह के गिरोह में 17 डाकू थे। मान सिंह ने 16 साल तक तक चंबल के बीहड़ों में एकछत्र राज किया।
महिलाओं का करते थे सम्मान डाकू मान सिंह के बारे में अनेक तरह की कहानियां प्रचलित हैं। कहते हैं कि किसी गरीब पर अत्याचार हो रहा होता तो मान सिंह उसकी ढाल बन जाते थे। वो गांवों में जाकर पंचायत करते थे। उनका फैसला सबको मंजूर होता था। मान सिंह ने गरीब लड़कियों के विवाह का खर्च उठाया। रास्ते में कोई महिला मिल जाती तो उसकी सुरक्षा भी करते थे। उनके दल में किसी डाकू का यह साहस नहीं होता था कि किसी महिला को गलत निगाह से देख ले। डाकू होते हुए भी मान सिंह ने कभी भी किसी गरीब को नहीं सताया। शायद इसीलिए कई लोग आज भी मान सिंह को डाकू नहीं बल्कि बागी मानते हैं।
बब्बर सिंह थापा ने किया एनकाउंटर डाकू मान सिंह की मौत पुलिस के साथ मुठभेड़ के दौरान हुई। लेकिन पुलिस को यह सफलता कैसे मिली, इसके पीछे एक कहानी है। कहते हैं कि डाकू मान सिंह का गिरोह मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गांव लाउन में था। रात में पूरे दल को दूध के साथ मिलाकर कुछ दे दिया। सभी डाकू अर्ध बेहोशी की हालत पहुंच गए। पुलिस आ गई और सभी का सफाया हो गया। जिन्होंने दूध नहीं पिया वो बच निकले थे। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार 1955 में मध्य प्रदेश के भिंड में मेजर बब्बर सिंह थापा ने डाकू मान सिंह का एनकाउंटर किया था।
मान सिंह जैसा कोई नहीं मान सिंह ने अपनी मौत से पहले गैंग की कमान लोकमन दीक्षित उर्फ डाकू लुक्का को सौंप दी थी। आज भी लोग इस बात पर विश्वास करते हैं कि मान सिंह जैसा बागी फिर चंबल में कभी नहीं हुआ। एक डाकू में कुछ तो बात रही होगी कि जिस पुत्र की नृशंस हत्या की वजह से मान सिंह डकैत बने उसका बेटा आगे चल कर सीमा सुरक्षा बल में आईजी बन कर सेवानिवृत हुआ।
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