सुल्ताना डाकू के बारे में कहा जाता है कि जितना ये दिलेर था उतना ही रहम दिल। सुलतान खुद को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप का वंशज मानता था। उसने अपने घोड़े का नाम चेतक रखा था और कुत्ते का नाम राय बहादुर।


सुल्ताना का जन्म मुरादाबाद जिले के हरथला गांव में हुआ था। सुल्ताना 17 साल की उम्र में ही डकैत बन गया। 22 साल की उम्र में सुल्ताना का खौफ इस कदर था कि लोग इसके नाम से ही डर जाते थे। कहा जाता है कि सुल्ताना अपने मुंह में चाकू छिपा सकता था और समय आने पर उसे इस्तेमाल भी कर सकता था।


सुल्ताना के बारे में यह धारणा थी कि वह केवल अमीरों को लूटता था और लूटे हुए माल को गरीबों में बांट देता था। सुल्ताना का खौफ उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब और मध्यप्रदेश में फैला था। सुल्ताना की तलाश में पुलिस को कई बार असफल हुई। कहते हैं कि सुल्ताना डकैती डालने से पहले चिठ्ठी भेजकर अपने आने की सूचना दिया करता था।



सुल्ताना डाकू खासतौर पर अंग्रेजों को ही लूटता था। सुल्ताना का खौफ इस कदर था कि उस जमाने में अंग्रेजों ने इस डकैत को पकड़ने के लिए 300 जवानों की टीम बनाई थी। इसमें 50 घुड़सवारों का दस्ता भी शामिल था।


कहा तो यहां तक जाता है कि सुल्ताना डाकू से एक अंग्रेज महिला प्रेम करने लगी थी। यह बात 1920 के दशक की है। भले ही अंग्रेज महिला का दिल सुल्ताना पर आ गया था लेकिन इस खूंखार डाकू का दिल किसी और के लिए ही धड़कता था।



सुल्ताना के गिरोह में करीब 100 डकैत शामिल थे। उस वक्त अंग्रेजों का एक ठिकाना नैनीताल भी था। इस रास्ते में अंग्रेजों के काफिले को सुल्ताना अपना निशाना बनाता था और नजीबाबाद के जंगलों में छिप जाता था। सुल्ताना ने कई बार माल से लदी रेलगाड़ियों को भी लूटा था।


अंग्रेज अफसर फ्रैडी यंग और शिकारी जेम्स जिम कॉर्बेट ने मिलकर सुल्ताना डाकू को पकड़ था। बाद में यंग सुल्ताना की बहादुरी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने सुल्ताना के बेटे को पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया। 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना और इसके 15 अन्य साथियों के साथ आगरा की जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।



जिम कॉर्बेट ने अपनी प्रसिद्ध किताब 'माई इंडिया' के अध्याय 'सुल्ताना: इण्डियाज रॉबिन हुड' में सुल्ताना के चरित्र का आकलन करते हुए एक जगह लिखा है कि 'एक डाकू के तौर पर सुल्ताना ने किसी निर्धन आदमी से एक कौड़ी भी नहीं लूटी। सभी गरीबों के लिए उसके दिल में एक विशेष जगह थी। जब उससे चंदा मांगा गया उसने कभी इन्कार नहीं किया और छोटे दुकानदारों से उसने जब भी कुछ खरीदा उसने उस सामान का हमेशा दो गुना दाम चुकाया।'


जिम कॉर्बेट के सुल्ताना-संस्मरणों में बार-बार कालाढूंगी, रामनगर और काशीपुर का जिक्र आता है। बताया जाता है कि सुल्ताना ने नजीबाबाद में एक वीरान पड़े किले को अपना गुप्त ठिकाना बना लिया था। नवाब नजीबुद्दौला के द्वारा बनाए गए इस किले के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।



2009 में पेंग्विन इण्डिया से छपी किताब ‘कन्फेशन ऑफ सुल्ताना डाकू’ की शुरुआत में लेखक सुजीत सराफ ने उसे फांसी दिए जाने से ठीक पिछली रात का ज़िक्र किया है। सुल्ताना को एक अंग्रेज अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल सैमुअल पीयर्स के सामने स्वीकारोक्ति करता हुआ दिखाया गया है।


सुल्ताना बताता है कि चूंकि उसका ताल्लुक एक गरीब परिवार से था, उसकी मां और उसके दादा ने उसे नजीबाबाद के किले में भेज दिया जहां मुक्ति फौज यानी साल्वेशन आर्मी का कैंप चलता था। इस कैंप में सुल्ताना और अन्य भांतुओं को धर्मांतरण कर ईसाई बनाने के अनेक प्रयास किए गए लेकिन वह वहां से भाग निकला। यहीं से उसके आपराधिक जीवन शुरआत हुई।



बता दें कि, लखनऊ में गृह विभाग में लाइब्रेरी नुमा एक छोटा सा विभाग है। जिसमें बहुत पुरानी फाइलें संरक्षित हैं। इन फाइलों के ढेर में अंग्रेजों के जमाने की भी तमाम फाइलें हैं। इन्हीं में एक फाइल में जिक्र है मुरादाबाद के हरथला गांव के दुर्दांत डाकू सुल्ताना का।