प्रयागराज: अयोध्या में पांच अगस्त को प्रस्तावित राम मंदिर के भूमि पूजन से विवादों का साया खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े जूना के इकलौते दलित महामंडलेश्वर स्वामी कन्हैया प्रभु नंदन गिरि ने भूमि पूजन में खुद को नहीं बुलाए जाने पर नाराजागी जताते हुए इसे दलितों की उपेक्षा करार दिया है.


स्वामी कन्हैया प्रभु नंदन गिरि ने कहा है कि पहले मंदिर निर्माण के लिए गठित ट्रस्ट में किसी दलित को जगह नहीं दी गई और उसके बाद अब भूमि पूजन समारोह में भी इस समुदाय की उपेक्षा की जा रही है. उनका कहना है कि भगवान राम ने हमेशा पिछड़ों और उपेक्षितों की मदद कर उनका उद्धार किया, लेकिन राम के नाम पर सत्ता में बैठे लोग दलित समुदाय के साथ भेदभाव कर रहे हैं.


स्वामी कन्हैया प्रभु नंदन गिरि की नाराजगीका महत्व इसलिए भी ज्यादा हो जाता है, क्योंकि वो सभी 13 अखाड़ों के इकलौते दलित महामंडलेश्वर हैं. कन्हैया गिरि की इस नाराजगी को लेकर अखाड़ों के आपसी कोआर्डिनेशन वाली साधु-संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद बैकफुट पर है.


अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि सन्यासी जीवन में आने के बाद संत की कोई जाति नहीं रह जाती, इसलिए कन्हैया गिरि का खुद को दलित बताया जाना गलत है. उनके मुताबिक सन्यासी की कोई जाति नहीं होती और जाति बताने वाला कभी सन्यासी नहीं हो सकता. महामंडलेश्वर कन्हैया गिरि की नाराजगी सार्वजनिक होने के बाद यह मामला सियासी रंग भी ले सकता है.



अखाड़ों में आम तौर पर सामान्य वर्ग के संत ही महामंडलेश्वर बनाए जाते हैं. आजमगढ़ जिले के रहने वाले धर्म और ज्योतिष के विद्वान कन्हैया प्रभु नंदन गिरि को पिछले साल प्रयागराज में हुए कुंभ मेले में महामंडलेश्वर की पदवी दी गई थी. अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले वह पहले ऐसे दलित संत थे, जिन्हे किसी अखाड़े ने महामंडलेश्वर की पदवी दी हो. कन्हैया प्रभु नंदन गिरि को उम्मीद थी कि सामाजिक समरसता का संदेश देने के लिए केंद्र सरकार उन्हें राम मंदिर ट्रस्ट में जरूर जगह देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ट्रस्ट में किसी दलित को जगह नहीं मिलने पर पहले ही काफी कोहराम मच चुका है.


पांच अगस्त को होने वाले भूमि पूजन समारोह में जिन 200 खास मेहमानों को बुलाए जाने की संभावना है, उनमें दलित महामंडलेश्वर का नाम नहीं है. स्वामी कन्हैया गिरि को अभी तक कोई न्यौता भी नहीं मिला है. इससे वह न सिर्फ नाराज हैं, बल्कि उन्होंने आयोजन को लेकर गंभीर सवाल भी उठाए हैं. उन्होंने खुद के बहाने समूचे दलित समुदाय की उपेक्षा और अनदेखी का आरोप लगाया है. इससे पहले द्वारिका पीठ के शंकराचार्य भूमि पूजन के मुहूर्त पर सवाल उठा चुके हैं.


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