उत्तर प्रदेशः सिर्फ दारा और सुधाकर सिंह ही नहीं, इन 3 नेताओं की अग्निपरीक्षा भी है घोसी का उपचुनाव
सपा से बीजेपी में आए दारा सिंह चौहान के साथ-साथ यहां तीन नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई है. जानकारों का कहना है कि घोसी का उपचुनाव इन तीनों नेताओं का सियासी कद तय करेगा.
मऊ जिले के घोसी सीट पर हो रहे उपचुनाव ने उत्तर प्रदेश की सियासी तपिश बढ़ा दी है. सपा से बीजेपी में आए दारा सिंह चौहान के साथ-साथ यहां तीन नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई है. जानकारों का कहना है कि घोसी का उपचुनाव इन तीनों नेताओं का सियासी कद तय करेगा.
इसलिए पार्टी से ज्यादा इन तीनों नेताओं ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. सपा ने सुधाकर सिंह तो बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है. बीएसपी और कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारने की घोषणा की है.
5 सितंबर को घोसी में मतदान होगा, जबकि 8 सितंबर को मतगणना होगी. 2022 में सपा के सिंबल पर दारा सिंह चौहान ने यहां जीत दर्ज की थी. उन्होंने बीजेपी के विजय राजभर को करीब 22 हजार वोटों से हराया था. दलित-मुस्लिम बहुल यह सीट कभी लेफ्ट पार्टियों का गढ़ हुआ करता था.
कहानी 3 नेताओं की, जिनकी घोसी में अग्निपरीक्षा है...
1. अरविंद शर्मा- ब्यूरोक्रेसी से राजनीति में आए मंत्री अरविंद शर्मा का घोसी गृह क्षेत्र है. शर्मा योगी कैबिनेट में सबसे पावरफुल मंत्री हैं. उनके पास बिजली और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग हैं. 2022 में शर्मा के घोसी से चुनाव लड़ने की भी अटकलें थीं.
घोसी सीट पर करीब 43 हजार सवर्ण वोटर हैं, जिसमें 15 हजार से अधिक क्षत्रिय, 20 हजार से अधिक भूमिहार, 8 हजार से ज्यादा ब्राह्मण हैं. सवर्ण वोटर्स करीबी मुकाबले में काफी अहम रोल अदा करते हैं.
यहां सपा ने सवर्ण समुदाय से आने वाले सुधाकर सिंह को प्रत्याशी बना दिया है. सिंह 2012 में भी यहां से विधायक रह चुके हैं. सिंह अगर सवर्ण मतदाताओं का वोट सपा में शिफ्ट करा लेते हैं, तो बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
शर्मा के पास बिजली विभाग भी है, जिसकी कटौती पूरे यूपी में सुर्खियां बटोर रही हैं. सपा इसे उपचुनाव में बड़ा मुद्दा बना रही है. सपा नेताओं का कहना है कि मंत्री अपने जिले में ही बिजली नहीं दे पा रहे हैं.
जानकारों का कहना है कि यह मुद्दा अगर हिट हुआ तो सत्तापक्ष की परेशानी बढ़ सकती है, जिसका ठीकरा अरविंद शर्मा पर फूट सकता है.
2. ओम प्रकाश राजभर- सुहेलदेव समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर पिछले कई दिनों से घोसी में डटे हुए हैं. घोसी में ही उन्होंने अखिलेश को सैफई भेज देने का बयान दिया था. राजभर हाल ही में अखिलेश यादव से नाता तोड़कर एनडीए में शामिल हुए हैं.
घोसी में दलित, और मुसलमानों के बाद राजभर सबसे अधिक हैं. 2019 के उपचुनाव में बीजेपी ने राजभर समुदाय से आने वाले विजय राजभर को टिकट दिया था, जिन्होंने सपा के सुधाकर सिंह को हराया था.
घोसी में करीब 55 हजार राजभर वोटर्स हैं, जो जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं. सुभासपा राजभर को केंद्र में रखकर राजनीति करती रही है. पार्टी का दावा रहा है कि 2022 में घोसी सीट पर सपा की जीत में उसकी अहम भूमिका रही है.
जानकारों का कहना है कि ओम प्रकाश अगर राजभर वोट बीजेपी में शिफ्ट करा लेते हैं, तो सरकार में उन्हें बड़ी भूमिका मिल सकती है. राजभर मतदाता अगर शिफ्ट नहीं हुए, तो राजभर मोलभाव की स्थिति में शायद ही रहें.
घोसी चुनाव से पहले ही राजभर के मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी, लेकिन बीजेपी ने इसे चुनाव तक के लिए टाल दिया.
ओम प्रकाश राजभर ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत कांशीराम के साथ की थी. मायावती से अदावत के बाद वे अपना दल में शामिल हो गए. यहां भी सोनलाल पटेल के साथ उनकी ज्यादा नहीं जमी, जिसके बाद उन्होंने सुभासपा का गठन कर लिया.
यूपी विधानसभा में वर्तमान में राजभर की पार्टी सुभासपा के पास 6 विधायक हैं.
3. राम अचल राजभर- पूर्वांचल के कद्दावर नेता और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर की भी घोसी सीट पर बड़ी अग्निपरीक्षा है. ओम प्रकाश राजभर के एनडीए में जाने के बाद अखिलेश ने राम अचल को आगे किया है.
बेंगलुरु की मीटिंग में भी अखिलेश राम अचल को साथ लेकर गए थे. राम अचल को सपा का स्टार प्रचारक भी बनाया गया है.
राम अचल को संगठन का नेता माना जाता है. बीएसपी में रहते हुए उन्होंने राजभर समुदाय को जोड़ने का काम किया था. पूर्वांचल में राजभर वोटरों की संख्या करीब 6 फीसदी है.
अखिलेश भी उन्हें साथ लेकर यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि राजभर समुदाय के मेहनती और समर्पित नेता उनके साथ हैं. राम अचल अगर घोसी में राजभर वोट सपा में शिफ्ट कराने में सफल हो जाते हैं, तो उनका सियासी कद बढ़ सकता है.
राम अचल राजभर बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. पूर्वांचल के गाजीपुर, अंबेडकरनगर, बलिया, मऊ में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है.
मुख्तार अंसारी परिवार पर भी सबकी नजर
मऊ में मुख्तार अंसारी परिवार का सियासी दबदबा रहा है. घोसी सीट पर 80 हजार के करीब मुस्लिम वोटर्स हैं. 2017 में घोसी से मुख्तार के बेटे अब्बास ने बीएसपी के सिंबल पर चुनाव लड़ा था. अब्बास को उस चुनाव में 81 हजार वोट मिले थे.
मऊ से सुभासपा विधायक अब्बास अभी जेल में बंद हैं. अंसारी परिवार की ओर से अभी तक घोसी को लेकर कोई बयान नहीं जारी किया गया है. हाल ही में उनके चाचा अफजाल की संसद सदस्यता रद्द हो गई है. वे गाजीपुर सीट से सांसद थे.
जानकारों का कहना है घोसी के चुनाव में अंसारी परिवार का समर्थन जिसे मिलेगा, उसका पलड़ा भारी हो जाएगा.
अब घोसी विधानसभा सीट की कहानी...
मऊ जिले के घोसी सीट पर शुरुआत में कम्युनिष्ट पार्टी का दबदबा रहा है. झारखंडे राय लगातार तीन बार विधायकी जीते थे. उसके बाद यह सीट कभी कांग्रेस तो कभी जनता पार्टी के खाते में आई. बीजेपी के टिकट पर पहली बार 1996 में फागू चौहान विधायक चुने गए.
चौहान इसके बाद 2012 तक लगातार इस सीट से विधायक रहे. 2012 में सपा की आंधी में सुधाकर सिंह ने फागू चौहान को हरा दिया. हालांकि, अगले चुनाव में उन्होंने इस सीट पर वापसी कर ली. इस सीट पर सबसे अधिक समय तक विधायक रहने का रिकॉर्ड फागू चौहान के नाम ही है.
2019 में चौहान राज्यपाल बनाकर बिहार भेज दिए गए, जिसके बाद इस सीट पर उप चुनाव की घोषणा की गई. सपा ने सुधाकर सिंह को उम्माीदवार बनाया, लेकिन सिंह को तकनीक वजह से सपा का सिंबल नहीं मिल पाया.
निर्दलीय लड़े सिंह बीजेपी के विजय राजभर से चुनाव हार गए. 2022 में दारा सिंह के सपा में आने के बाद सिंह का पत्ता कट गया. दारा सिंह ने बीजेपी के सीटिंग विधायक विजय राजभर को 22 हजार वोटों से चुनाव हराया.