लखनऊ, एबीपी गंगा। एशिया के सबसे बड़े मदरसों में से एक दारुल उलुम देवबंद में हमेशा की तरह इस बार भी सियासी चहलकदमी देखने को नहीं मिल रही। देश की राजनीति के कई सितारों ने जहां से राजनीति ककहरा सीखा, उसी देवबंद ने आम चुनाव के बीच राजनीति से दूरी बना ली है। दरअसल, 17वीं लोकसभा के चुनाव में दारुल उलूम देवबंद ने किसी भी दल को वोट देने की अपील नहीं की। दारुल उलूम के चांसलर मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि संस्था ना कोई फतवा जारी करेगी और ना ही किसी भी राजनीतिक दलों को समर्थन देगा। उन्होंने राजनीतिक दलों के नेताओं से भी गुजारिश की है कि वे चुनावों के दौरान संस्थान न आयें।


देवबंद से निकले राजनीति के कई सूरमा
सहारनपुर जिले का छोटा सा कस्बा देवबंद सहारनपुर और मुजफ्फरनगर के बीच में स्थित है। इस्लामी विचारधारा को दुनियाभर में पहुंचाने में योगदान देने वाला दारुल उलूम देवबंद से राजनीति के कई सूरमा निकले हैं। इस संस्था के कई छात्र विधायक या फिर सांसद बने हैं।


- मौलाना बदरुद्दीन अजमल
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष और असम के धुबरी से सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल दारुल उलूम देवबंद के सदस्य भी हैं। वर्तमान में एआईयूडीएफ के लोकसभा में तीन सांसद हैं। मुख्य रूप से इत्र का कारोबार करने वाले बदरुद्दीन देश के रईस राजनेताओं में से एक हैं।


- मौलाना असरारुल हक
दारुल उलूम देवबंद संस्था के ही एक और छात्र मौलाना असरारुल हक बिहार की किशनगंज से दो बार सांसद रहे। कांग्रेस नेता सरारुल का बीते साल दिसंबर में निधन हो गया था। उन्होंने 2009 और 14 में लगातार दो बार कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज की।


- मौलाना असद मदनी
जमीयत उलमा-ए-हिंद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना असद मदनी लगातार तीन बार कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रहे। मदनी 1974 से 1994 तक राज्यसभा सांसद थे। साल 2006 में उनका इंतकाल हो गया। मदनी देवबंद में ही जन्मे थे।


- मौलाना महमूद मदनी
असद मदनी के बेटे महमूद मदनी भी 2006 से 12 तक राज्यसभा सांसद रहे। इनका जन्म भी देवबंद में ही हुआ था। महमूद जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं।


-मौलाना हाफिज सिद्दीकी
दारुल उलूम के एक और छात्र मौलाना हाफिज सिद्दीकी कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं। उन्होंने 1984 में मुरादाबाद सीट पर लोक दल के प्रत्याशी को हराया था।