देहरादून, एबीपी गंगा। गरीबों का आशियाना देहरादून के काठबंगला में नौ सालों से अधर में लटका हुआ है. ये आशियाना बताता है कि उत्तराखंड की सरकारें ग़रीबों के लिए कितनी गम्भीर रही हैं. नदी किनारे बसे लोगों के लिए छत की उम्मीद बने देहरादून के काठ बंगला की इमारतों की उदासीनता जिम्मेदारों की पोल खोलने के लिए काफी है.


दरअसल, आज से ठीक नौ साल पहले यानि कि साल 2011 का वक्त था. योजना का नाम था JNURM. इस योजना के तहत रिस्पना नदी के किनारे बसे लोगों के लिए फ्लैट्स बनाने का काम शुरू हुआ. करीब 6 करोड़ रूपये इस प्रोजेक्ट के लिए स्वीकृत हुए और काम यूपी निर्माण निगम को दे दिया गया. प्रोजेक्ट का शिलान्यास त्तकालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूड़ी ने किया. इस प्रोजेक्ट के तहत 148 फ्लैटस बनाये जाने थे. जिन्हें रिस्पना नदी के किनारे बसे लोगों को दिया जाना था. लेकिन 9 साल में यूपी निर्माण निगम 80 प्रतिशत पैसा खर्च करने के बाद फ्लैट्स को अधर में छोड़ दिया गया. ताज्जुब इस बात का है कि ना ही इस पर नगर निगम ने कुछ ज़हमत उठाने की सोची और ना ही सरकार ने.


फिर उठी मांग, पैसे की डिमांड
हालांकि, अब एक बार फिर ग़रीबों के आशियाने को बनाने की बात की जा रही है. नगर निगम ने बीते साल दिसम्बर में शासन को पत्र लिखकर प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 8 करोड़ रूपये की डिमांड की है. वहीं इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की ज़िम्मेदारी एमडीडीए को सौंपने की बात की जा रही है. नगर आयुक्त कहते हैं कि एमडीडीए द्वारा इसे बनाया जाएगा और प्रधानमंत्री आवास विकास के तहत फ्लैट्स जनता को सौंपे जाएंगे. लेकिन सवाल तो बनता है कि आखिर आम जनता का पैसा जो अभी तक बर्बाद किया गया. क्या यूपी र्निमाण निगम पर कोई कार्रवाई हो सकेगी ?.


रिस्पना नदी को ऋषिपर्णा बनाने को लेकर वर्तमान भाजपा की सरकार भले ही अपनी बातों से गम्भीर दिखाई देती हों लेकिन सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर इन अधूरे पड़े प्रोजेक्टस पर क्यों किसी की नज़र नहीं गई ?. अब एक बार फिर भूतिया बने इन आशियानों में ग़रीबों के बसने की उम्मीद जगी है लेकिन देखना होगा कि कब तक इसपर काम हो सकेगा ?.


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