Dehradun News: देहरादून (Dehradun) शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर मां डाट काली मंदिर है जो देहरादून--सहारनपुर हाईवे पर मौजूद है और यहां हर वक्त माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है क्योंकि मंदिर हाईवे के किनारे ही मौजूद है. इसलिए हर कोई आने जाने वाला मां के दर्शन करके ही आगे बढ़ता है लेकिन जब बात नवरात्रों की हो तो यहां मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है. माना जाता है कि मां डाट काली मंदिर में जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां की आराधना करता है मां डाट काली उनके सभी दुखों को दूर कर देती है. यही वजह है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां डाट काली के दर्शन के लिए आते हैं. खासकर जब नवरात्रों का वक्त हो तो मां को भोग लगाने के लिए और श्रृंगार करने के लिए तमाम श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं.


नवरात्रों में अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते है श्रद्धालु
नवरात्रों के शुरुआत से ही मां डाट काली के मंदिर में तमाम श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. मां के श्रृंगार के लिए सभी चीजें श्रद्धालुओं के हाथों में होती हैं और मां के दर्शन कर श्रद्धालु आगे बढ़ते जाते हैं. जब भीड़ ज्यादा होती है तो श्रद्धालुओं को लाइनों के जरिए मां डाट काली के दर्शन के लिए भेजा जाता है और हर एक श्रद्धालु अपनी बारी का बेसब्री से इंतजार करता है. तमाम श्रद्धालु मां के आंगन में एक चुनरी बांध देते हैं और जब मनोकामना पूर्ण होती है तो उस चुन्नी को खोलने आते हैं. नवरात्र में मां के दरबार में इसी तरह तमाम श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है.


डाट काली मंदिर को मनोकामना सिद्ध पीठ और उत्तराखंड की इष्ट देवी के नाम से भी जाना जाता है. साल भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है यह मंदिर अपने आप में कई विशेषताएं समेटे हुए हैं. मंदिर का निर्माण  महंत सुखबीर गुसैन  ने 1804 में कराया था. कहा जाता है कि अंग्रेजों के दौरान निर्माण हुए इस मंदिर में तब से लेकर अब तक हर वक्त श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं. खासकर जब घर में कोई शुभ कार्य हो या कोई नई चीज खरीदी जाती है तो सबसे पहले माता के दर्शन ही किए जाते हैं. यहां तक कि नवजात बच्चों को भी माता के दर्शन के लिए मंदिर में लाया जाता है.


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मंदिर के महंत रमन प्रसाद गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में सच्चे मन से माता के दर्शन कर पूजा अर्चना करने वाले हर वक्त की मां डाट काली मनोकामना पूरी करती है. खासकर मंगलवार से 11 दिन तक विश्वास पूर्ण किया गया डाट काली चालीसा पाठ से सब मनोरथ पूर्ण होते हैं. मां डाट काली मंदिर के साथ विशेष मान्यता यह भी है कि पिछले लगभग 100 सालों से मंदिर के अंदर एक दिव्य ज्योति 24 घंटे चलती रहती है, साथ ही हर शनिवार-रविवार और  मंगलवार को मंदिर समिति की ओर से बड़े भंडारे का आयोजन किया जाता है. खासकर नवरात्रों में जो श्रद्धालु सिद्ध पीठ में पूजा अर्चना के लिए आते हैं उनके लिए विशेष पूजा पाठ भी कराया जाता है जिन से प्रसन्न होकर मां डाट काली श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना को पूर्ण कर देती हैं.


मंदिर को लेकर यह है मान्यता 
एक मान्यता मां डाट काली मंदिर से यह भी जुड़ी है कि जब अंग्रेजो के दौरान देहरादून से सहारनपुर के लिए हाईवे निर्माण कराया जा रहा था. तब डाट काली मंदिर के पास ही एक सुरंग का निर्माण शुरू हुआ लेकिन काफी लंबे वक्त तक सुरंग में बार-बार पहाड़ से मलबा आने से सुरंग ब्लॉक हो जाती थी. बताया जाता है कि जो इंजीनियर इस सुरंग का निर्माण कर रहा था वह भारतीय ही था और उसके सपने में मां डाट काली आई और उन्होंने कहा कि जहां पर सुरंग का निर्माण कार्य चल रहा है वहीं पर मेरी मूर्ति है और इस मूर्ति की स्थापना सड़क के पास की जाए तो सुरंग में किसी तरह की बाधा नहीं आएगी. उसी भारतीय इंजीनियर ने मां डाट काली की मूर्ति  महंत सुखबीर गुसैन  को दी थी  और उसके बाद मंदिर का निर्माण हुआ और फिर सड़क और सुरंग का निर्माण सकुशल संपन्न हो गया.


डाट काली मंदिर के पास ही उनकी बड़ी बहन भद्रकाली का मंदिर भी है जो देहरादून से सहारनपुर जाते वक्त सुरंग से पहले पड़ता है और सुरंग के बाद मां डाट काली का मंदिर है. कहा जाता है कि जब मां डाट काली के दर्शन कर लिए जाते हैं, तो उसके बाद मां भद्रकाली के दर्शन के बाद ही यात्रा पूर्ण मानी जाती है. इसलिए तमाम श्रद्धालु पहले मां डाट काली के दर्शन करते हैं और उसके बाद भद्रकाली के दर्शन कर अपने घर को लौट जाते हैं. भद्रकाली मंदिर के पुजारी महंत मनीष गोस्वामी ने बताया कि सुरंग के दोनों और दोनों बहनों के मंदिर हैं और जब तक श्रद्धालु दोनों ही माताओं के दर्शन नहीं करते तो यात्रा को पूर्ण नहीं माना जाता. इसलिए तमाम श्रद्धालु मां डाट काली के दर्शन के बाद भद्रकाली के दर्शन के लिए आते हैं.


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