नई दिल्ली, एबीपी गंगा। 11 दिसंबर, 2019 ...वो दिन जब नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA) को संसद से मंजूरी मिली और इसके अगले दिन यानी 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बिल पर हस्ताक्षर कर दिए। जिसके बाद इस बिल ने कानूनी रूप ले लिया। तब से लेकर अबतक नागरिकता संशोधन कानून पर देश के कोने-कोने में बवाल मचा हुआ है। दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ महिलाओं का प्रदर्शन तो देश से लेकर विदेशी मीडिया तक में छाया रहा। 15 दिसंबर से शाहीन बाग में मुस्लिम महिलाओं का सीएए के खिलाफ धरना प्रदर्शन जारी है, जो सुप्रीम कोर्ट के दखल और उनके वार्ताकार के समझाने-बुझाने के बाद भी खत्म नहीं हुआ है।
देखते ही देखते लखनऊ के घंटाघर, प्रयागराज के मंसूर पार्क, सहारनपुर, मुरादाबाद समेत कई जगहों पर छोटे-छोटे शाहीन बाग बन गए जहां मुस्लिम महिलाएं Boycott CAA, Say No To NRC की तख्तियां लेकर धरने पर बैठ गईं। पुलिस भी उनको हटाने में कामयाब नहीं हो सकी। इस प्रदर्शन को संविधान की लड़ाई से जोड़कर आगे बढ़ाया गया। इसे शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन का नाम दिया गया। आजादी का जिक्र किया गया, लेकिन ये शांतिपूर्ण प्रदर्शन कब हिंसा में बदल गया, इसका अंदाजा किसी को नहीं लगा। हाथ में तिरंगा लेकर प्रदर्शन करने वालों के हाथ में कब बंदूक आ गई, ये भी पता नहीं चला। देश में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दो गुट बन गए हैं, एक खिलाफ, तो एक इसका समर्थक। इन दो गुटों की बीच की खाई अब इस कदर गहरी हो गई है कि ये कानून को हाथ में लेने से भी नहीं हिचकिचा रहे हैं।
राम भगत गोपाल शर्मा: जामिया फायरिंग
इसकी पहली झलक देखने को मिली थी जामिया में, जब एक नाबालिग बंदूक लहराते हुए पुलिस को चुनौती देता दिखा। एक बंदूक उनके सामने तनी थी, जो सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। महज 19 साल के इस लड़के का नाम राम भगत गोपाल शर्मा था, जो ग्रेटर नोएडा के जेवर का रहने वाला था। 30 जनवरी को दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से राजघाट तक निकलने वाले मार्च से पहले इस सनकी लड़के ने भीड़ पर बंदूक चला दी। इस फायरिंग में शादाब आलम नाम का युवक गोली लगने से घायल हो गया। इस दौरान वो भारत मां की जय, दिल्ली पुलिस जिंदाबाद और वंदे मातरम का नारा भी लगाता दिखा। ये भी कहता नजर आया कि तुमको आजादी चाहिए, तो ये लो आजादी। ये सबकुछ हुआ दिल्ली पुलिस के नजरों के सामने।
कपिल गुर्जर: शाहीन बाग फायरिंग
इसके घटना के दो दिन बाद एक फरवरी को शाहीन बाग में एक और युवक हाथ में बंदूक लहराते दिखाई दिया। हवा में दो राउंड गोलियां दाग दी। इस युवक का नाम कपिल गुर्जर था। जिसको बाद में हिरासत में भी ले लिया गया। ये फायरिंग सीएए और एनआरसी विरोधियों का अड्डा बना शाहीन बाग से महज कुछ कदम की दूरी पर की गई। इस घटना के बाद शाहीन बाग में धरने को हटाने की मांग को लेकर धरना शुरू हो गया। शाहीन बाग खाली करो, दिल्ली बंधक नहीं बनेगी के नारे लगने लगे। जिसे कंट्रोल किया गया, ताकि किसी तरह की हिंसा न हो। लेकिन न ही शाहीन बाग के इलाके से गुजरने वालों का गुस्सा थमा और न ही शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों का प्रदर्शन।
शाहरुख: जाफराबाद फायरिंग
अब जो प्रदर्शन संविधान और अहिंसा के नाम पर शुरू हुआ, हिंसा में तब्दील हो गया है। जिसका जीता-जागता उदाहण दिल्ली में सोमवार को देखने को भी मिला। सीएए विरोधी और सीएए समर्थकों के बीच का गुस्से ने खूनी संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी और रातों-रात दिल्ली सुलग उठी। दोनों पक्षों ने मौजपुर-ब्रह्मपुरी इलाकों में एक-दूसरे पर जमकर पत्थरबाजी हुई। दिल्ली में हुई इस हिंसा में एक हेड कांस्टेबल समेत पांच लोगों की जान चली गई। 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। कई घायलों की हालत गंभीर बनी हुई है। इस दौरान भी एक शख्स सुर्खियों में छाया रहा, इसके भी हाथ में बंदूक थी, नाम था शाहरुख।
सोमवार को जाफराबाद से एक वीडियो सामने आया, जिसमें लाल टीशर्ट पहने एक युवक पुलिस पर बंदूक ताने दिखाई दे रहा था। उसने कई राउंड हवा में फायरिंग की। इसके बाद हिंसा बेकाबू हो गई। देर शाम इस शख्स की पहचान हुई, तो पता चला, ये शहादरा का रहने वाला शाहरुख है। पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया है और अब उससे पूछताछ की जा रही है। दरअसल, सोमवार को सीएए समर्थक और विरोधी आमने-सामने आ गए थे। ये लाल टी-शर्ट वाला लड़का एंटी-सीएए ग्रुप का बताया जा रहा है। फिलहाल देश की राजधानी को हिंसा की आग में जलाने वालों में शामिल इस शख्स से भी सख्ती से पूछताछ की जा रही है।
गृहमंत्री ने बुलाई सर्वदलीय बैठक
इस बीच गृहमंत्रालय ने ट्रंप की यात्रा के दौरान देश की छवि खराब करने की कोशिश करने का शक जताया है। हिंसा के बाद से लगातार दिल्ली पुलिस के अधिकारी गृह मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के संपर्क में हैं। इस बीच अमित शाह ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एलजी शामिल होंगे। फिलहाल, सवाल यहीं उठता है कि आखिर इस हिंसा के पीछे का जिम्मेदार कौन है। क्या शाहीन बाग के प्रदर्शन ने लोगों के सब्र का बांध तोड़ दिया है। विपक्षी दलों के कड़वे बोल और सत्ता पक्ष के नुमाइदों की फिसरती जुबान आज देश के इन हालातों के लिए जिम्मेदार है।
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