हरिद्वार: हरिद्वार में गंगा स्नान का अलग ही महत्व है, लेकिन ये महत्व उस वक्त ज्यादा बढ़ जाता है जब कोई विशेष पर्व हो. इन दिनों कुंभ वर्ष भी चल रहा है इसलिए हरिद्वार गंगा स्नान के मायने और भी बढ़ गए है. कुंभ वर्ष के साथ-साथ आज मौनी अमावस्या पर हरिद्वार में श्रद्धालुओं की चहल-पहल ज्यादा नजर आ रही है. मौनी अमावस्या पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु मां गंगा में डुबकी लगाने हरिद्वार पहुंचे. कोरोना के साए में हो रहे इस स्नान को लेकर मेला प्रशासन और जिला प्रशासन ने भी पुख्ता इंतजाम किए हैं. स्नान के दौरान सभी श्रद्धालुओं को कोविड-19 के नियमों का पालन करना अनिवार्य है. इसके साथ ही पुलिस और वॉलिंटियर्स लोगों को मास्क पहनने, हाथ बार-बार धोने और सैनिटाइजर के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं. कुंभ से पहले इस स्नान को कुंभ स्नान के रिहर्सल के तौर पर भी देखा जा रहा है.


क्या है मौनी अमावस्या?


हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता हैं. हिन्दू धर्म मे धार्मिक दृष्टि से इस तिथि को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर पवित्र नदी, जलकुंड में स्नान और दान करने का काफी महत्व होता है. इसीलिए श्रद्धालु हरिद्वार, प्रयागराज समेत अन्य स्थानों पर स्नान कर पुण्य कमाते हैं. ये भी कहा जाता है कि मौनी अमावस्या पर मौन रहकर शिव की आराधना करें तो अच्छे स्वास्थ्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही ये भी मान्यता है कि इस अमावस्या पर स्नान और पूजन से ग्रह दोष दूर होते हैं.


स्नान और दान का महत्व


मौनी अमावस्या पर गंगा में स्नान के साथ-साथ दान पुण्य का भी बड़ा महत्व होता है. प्राचीन मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि माघ मास की अमावस्या पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों में देवताओं का वास होता है. यही वजह है कि इस माह स्नान का महत्व ज्यादा बढ़ जाता है और खासकर मौनी अमावस्या पर मां गंगा में स्नान से सभी दुःख दूर हो जाते हैं. इतना ही नहीं इस दिन दिए गए दान से 100 गुना पुण्य कमाने का मौका भी मिलता है. इसीलिए मौनी अमावस्या के दिन तिल के लड्डू, तिल का तेल गर्म कपड़े दान किए जाते हैं. मौनी अमावस्या का एक महत्व यह भी है कि मां गंगा में स्नान कर लोग मौन रहकर अपने पितरों को याद करते है और सूर्य देव को जल अर्पित कर पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.


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