Bundelkhand Diwari Dance: यूपी (UP) के बुंदेलखंड (Bundelkhand) में दीपावली (Deepawali) का त्योहार बहुत रोमांचक होता है. इस इलाके में ढोलक की थाप पर लाठियों का अचूक वार करते हुए युवाओं की टोलियां युद्ध कला का अनोखा प्रदर्शन करती हैं. लाठियां भांजते युवाओं को देख कर ऐसा लगता है कि मानो वो दिवारी खेलने नहीं, बल्कि युद्ध का मैदान जीतने निकले हों. दीपावली के एक हफ्ता पहले से एक सप्ताह बाद तक बुंदेलखंड इलाके के महोबा जिले सहित बांदा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर जिले के हर कस्बे, गांव और गलियों में नृत्य करते युवाओं की टोलियां घूम-घूम कर दिवारी खेलती हैं.


दरअसल बुंदेलखंड में लठ मार दीपावाली होती है. दीपावली आते ही बुंदेलखंड के हर जिले में इसकी चौपालें गांव से लेकर शहरों तक सज चुकी हैं. यहां प्रत्येक चौपालों पर युवा, वृद्ध और बच्चे अपने-अपने हाथों में लाठी-डंडों से लेकर दिखाई देने लगे हैं, जो लाठियों का अचूक वार करते हुए युद्ध कला को दर्शाने वाले इस नृत्य में दिखाई दे रहे हैं. इस नृत्य में अलग तरह से बज रही ढोलक की थाप खुद ब खुद लोगों को थिरकने के लिए मजबूर कर देती है. बुंदेलखंड की यह परंपरा गांवों से लेकर शहरों तक, सभी जगह देखी जा सकती है.



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गोवर्धन पर्वत से भी संबंध रखता है दिवारी लोक नृत्य
अलग वेशभूषा और मजबूत लाठी जब दिवारी लोक नृत्य खेलने वालों के हाथ आती है, तो यह कला बुंदेली सभ्यता-परंपरा को मजबूत रूप से प्रकट करती है. इस कला को हर बुंदेली सीखना चाहता है, फिर चाहे बच्चे, बूढा हों या फिर जवान, क्योंकि इसमें वीरता समाहित होती है. बुंदेलखंड का दिवारी लोक नृत्य गोवधन पर्वत से भी संबंध रखता है. द्वापर युग में श्री कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊंगली पर उठा कर ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाया था, तब ब्रजवासियों ने खुश हो कर यह दिवारी नृत्य कर श्री कृष्ण की इन्द्र पर विजय का जश्न मनाया था.


दिवारी खेलने को आत्म रक्षा की कला मानते हैं लोग
ब्रज के ग्वालों ने इसे दुश्मन को परास्त करने की सबसे अच्छी कला माना था. इसी कारण इन्द्र को श्री कृष्ण की लीला को देख कर परास्त होना पड़ा. बुंदेलखंड में धनतेरस से लेकर दीपावली की दूज तक गांव-गांव में दिवारी नृत्य खेलते नौजवानों की टोलियां घूमती रहती हैं. दिवारी देखने के लिए हजारों की भीड़ जुटती हैं. दिवारी खेलने वाले लोग इस कला को श्री कृष्ण की ओर से ग्वालों को सिखाई गई आत्म रक्षा की कला मानते हैं. बुंदेलखंड के हर त्योहारों में वीरता और बहादुरी दर्शाने की पुरानी रवायत है, तभी तो रोशनी के पर्व में भी लाठी-डंडों से युद्ध कला को दर्शाते हुए दीपोत्सव मानाने की यह अनूठी परंपरा सिर्फ, इसी इलाके की दीपावली में ही देखने को मिलती है.


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