मूक-बधिर अनीता और उसके चार बच्चों के लिये मसीहा बनीं डीएम मैडम
यूपी के बस्ती में मूक बधिर अनीता पति की मौत के बाद लाचार और बेसहारा हो गई थी. यही नहीं, उस पर चार बच्चों के पालने की जिम्मेदारी थी. इस बीच डीएम को खबर लगी तो अनीता के परिवार को हरसंभव मदद का भरोसा मिला.
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बस्ती: बस्ती के दुबौलिया ब्लॉक के धर्मूपुर गांव में झोपड़ी में रहने वाले टांसी की बस इतनी इच्छा रहती थी कि मूक-बधिर पत्नी और चारों मासूम बच्चे कभी भूखे पेट न सोएं. इसलिए हादसे में एक आंख की रोशनी जाने लगी पर टांसी दिन-रात खटता रहा. इस बीच कोरोना ने झपट्टा मारा तो उससे भी जंग जीत ली पर उसके बाद जो अचानक तबीयत खराब हुई तो फिर कभी चारपाई से उठा ही नहीं. ऐसे में डीएम मैडम की संवेदना से अनीता के सूने जीवन में सुकून लौटने की उम्मीद जगी है.
बेसहारा अनीता पर चार बच्चों की जिम्मेदारी
पति का साथ छूटा तो जन्म से गूंगी-बहरी पत्नी अनीता बेसहारा हो गई. चार बच्चों की जिम्मेदारी कंधे पर आ पड़ी. एक-दो दिन तक गाहे-बगाहे लोगों ने मदद की. फिर वह दाने-दाने को मोहताज हो गई. चूल्हे की आग बुझ गई लेकिन सवाल यह था कि, पेट की आग कैसे बुझे. दर्द कहे भी तो किससे और कैसे? इसी बीच किसी माध्यम से डीएम सौम्या अग्रवाल को अनीता की बदहाली की जानकारी हुई. उन्होंने तत्काल मातहतों को दौड़ाया. नतीजा यह कि जिन सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए कागजी कोरम पूरा करने में महीनों लग जाता है, वह प्रक्रिया महज कुछ ही घंटों में शुरू कर दी गई. तहसीलदार के नेतृत्व में धर्मूपुर गांव पहुंचे सचिव ग्राम पंचायत, ग्राम प्रधान, राजस्व निरीक्षक और लेखपाल ने घर जाकर अनीता और उसके बच्चों से मुलाकात की. इसके साथ ही पीएम ग्रामीण आवास योजना, विधवा पेंशन, किसान सम्मान निधि, पारिवारिक लाभ योजना सहित कई अन्य योजनाओं का लाभ इस गरीब परिवार को दिलाने की कोशिशें तेज हो गई हैं.
14 मई को पति की हो गई मौत
अनीता का पति टांसी गांव पर ही मजदूरी कर परिवार का पेट पालता था. कोरोना को हराने के बाद 2 अप्रैल को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र दुबौलिया में उसने टीका लगवाया. इसी बीच अचानक तबीयत खराब हुई. माली हालत ठीक नहीं होने से इधर-उधर से दवा लाकर खाता रहा लेकिन राहत नहीं मिली, और 14 मई को सांसें थम गईं. पड़ोसी रामआधार और विन्द्रावती ने बताया कि दो वर्ष पूर्व टांसी को मजदूरी करते वक्त आंख में चोट लग गई थी, आपरेशन हुआ था लेकिन रोशनी कम हो गई थी.
बेहद गरीब है अनीता
अनीता सिर्फ इशारों की भाषा ही समझती है. सबसे बड़ी बेटी रोशनी (13) गांव के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा पांच में पढ़ती है. चांदनी (9) कक्षा चार, गुड्डु (6) कक्षा एक में पढ़ता है. सबसे छोटा बेटा अमरेश तीन साल का है. मिट्टी की दीवार पर टिकी फूस की झोपड़ी में रोशनी खाना बनाती है. बरसात में यह झोपड़ी झरना बन जाती है. दीवार में दरार पड़ चुकी है. पड़ोसी राजकपूर बताते हैं कि, दो वर्ष पूर्व टांसी को पीएम ग्रामीण आवास मिला था. दीवार खड़ी हो गई लेकिन आंख में चोट लगने के कारण पैसा इलाज में खर्च हो गया. तबसे छत नहीं लग पाई.
डीएम सौम्या अग्रवाल ने बताया कि अनिता की माली हालत की जानकारी होने पर तत्काल उस तक मदद पहुंचाई जा रही है और अनिता जिस भी सरकारी योजना की पात्र होगी उसे उसका लाभ दिया जायेगा.
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