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#ChandraGrahan2020: साल के पहले चंद्र ग्रहण को लेकर न लें टेंशन, नहीं लगेगा सूतक

2020 के पहले चंद्र ग्रहण को लेकर आप टेंशन न लें। इस चंद्र ग्रहण की धार्मिक मान्यता नहीं है। न ही सूतक लगेगा। इसके बारे में विस्तार से बताया है पंडित शशिशेखर त्रिपाठी ने।

नई दिल्ली, पंडित शशिशेखर त्रिपाठी। नये साल के प्रारम्भ होते ही चंद्र ग्रहण की सूचना ने मानों ख़ुशियों पर ग्रहण लगा दिया। क्या यह ग्रहण भारत में दिखने के बाद भी प्रभावी होगा? ग्रहण की तारीख को लेकर क्या है कंफ्यूजन? क्या ग्रहण काल में करना होगा जप तप? वर्ष से पहले चंद्र ग्रहण के विषय पर विस्तार से प्रकाश डाल रहे हैं  एस्ट्रो फ्रेंड पं. शशिशेखर त्रिपाठी।

इस वर्ष 2020 का पहला चंद्र ग्रहण 10/11 जनवरी को पड़ने जा रहा है। अभी 15 दिन पहले ही सूर्य ग्रहण पड़ चुका है। वर्ष 2020 की शुभकामनाएं देना समाप्त नहीं हुआ था कि 10 जनवरी को चंद्र ग्रहण से सभी लोग भयभीत हो गये हैं। आज इस ग्रहण को लेकर विस्तार से बता रहे हैं पंडित शशिशेखर त्रिपाठी।

2020 के पहले चंद्र ग्रहण को लेकर न लें टेंशन

10 जनवरी 2020 यानी संवत 2076 पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मान्द्य चंद्र ग्रहण लगेगा। चंद्र ग्रहण लगने का समय रात्रि में 10 बजकर 38 मिनट होगा। इसका मध्य 10 तारीख की रात्रि 12 बजकर 40 मिनट पर होगा यानी 11 तारीख लग जाएगी और मोक्ष रात्रि 2 बजकर 42 मिनट पर होगा। यह चंद्र ग्रहण करीब 4 घंटे 50 मिनट रहेगा।

यह ग्रहण मिथुन राशि के पुनर्वसु नक्षत्र में पड़ेगा। यह ग्रहण कनाडा, यूएस, ब्राजील, अर्जेंटीना, अंटार्कटिका को छोड़कर भारत सहित पूरे विश्व में पर पड़ेगा। यह तो बात हो गई ग्रहण के समय और क्षेत्र की।

10 या 11 को ग्रहण का भ्रम

जब चन्द्र ग्रहण मध्यरात्रि 12 बजे से पहले प्रारम्भ हो जाता है, लेकिन मध्यरात्रि के बाद समाप्त होता है। यानी दूसरे शब्दों में जब चन्द्र ग्रहण अंग्रेजी कैलेण्डर में दो दिनों को ओवरलैप करता है, तो जिस दिन ग्रहण काल अधिकतम होता है, उस दिन की तारीख चन्द्रग्रहण के लिये दर्शाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में चन्द्रग्रहण की उपच्छाया तथा प्रच्छाया का स्पर्श पिछले दिन अर्थात मध्यरात्रि से पहले हो सकता है।

क्या है मांद्य चंद्र ग्रहण 

यह चंद्र ग्रहण मांद्य चंद्र ग्रहण है। मांद्य का अर्थ है न्यूनतम, यानी मंद होने की क्रिया, इसलिए बिल्कुल भी इस चंद्र ग्रहण को लेकर चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। इस ग्रहण में कुछ हल्की से चंद्रमा की कांति मलीन हो जाएगी। लेकिन चंद्रमा का कोई भी भाग ग्रहण ग्रस्त नहीं होगा। इसमें चंद्रमा का करीब 90 प्रतिशत भाग धूसर छाया में आ जाएगा यानी धूसर का अर्थ है मटमैला जैसा- हल्की सी धूल धूल जैसी। लेकिन इस प्रभाव को भी बहुत कम ही लोग समझ पाएंगे। केवल वही देख पाएंगे जो कुछ उपकरण या बहुत गौर से देखने के लिए जागरूक होंगे।

छाया ग्रह राहु कि नहीं पड़ेगी छाया .. 

इस ग्रहण में चंद्रमा पर छाया नहीं पड़ेगी। राहु एक छाया ग्रह है। धार्मिक मान्यता है कि राहु के ग्रसण काल में चंद्रमा पर छाया के रूप में राहु दिखता है लेकिन इस ग्रहण में छाया नहीं बनेगी। जब छाया ही नहीं पड़ेगी तो राहु के ग्रसने वाली बात भी नहीं होगी। यह ग्रहण केवल उपच्छाया मात्र है।

उपच्छाया ग्रहण

किसी भी ग्रहण की खगोलीय घटना के साथ उसकी धार्मिक मान्यता का भारत में बहुत अधिक महत्व होता है। चंद्र ग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते है जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। लेकिन इस ग्रहण में चंद्रमा पर कोई प्रच्छाया नहीं है। यह केवल उपच्छाया ग्रहण है जोकि खाली आँख से नहीं दिखेगा। इसलिए इसको ग्रहण कहने के बजाए उपच्छाया का समय कहना ज्यादा सही होगा।

नहीं लगेगा सूतक 

किसी भी प्रकार से चंद्र ग्रहण को लेकर भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। किसी को भी अपने नए वर्ष की ख़ुशियों में ग्रहण लगाने की जरूरत नहीं है। मांद्य चंद्र ग्रहण के कारण इसमें सूतक लागू नहीं होगा। न ही सूतक का प्रारम्भ और न ही सूतक का अंत। निर्णयसागर पंचांग में स्पष्ट किया है कि इस ग्रहण में किसी भी प्रकार का यम नियम सूतक आदि मान्य नहीं है।

इस ग्रहण की धार्मिक मान्यता नहीं 

हिन्दू धर्म में चन्द्र ग्रहण एक धार्मिक घटना है जिसका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। जो चन्द्र ग्रहण नग्न आँखों से स्पष्ट दृष्टि गत न हो तो उस चन्द्रग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता है। मात्र उपच्छाया वाले चन्द्रग्रहण ही नग्न आँखों से नहीं दिखते हैं, इसलिये उनका पञ्चाङ्ग में समावेश नहीं होता है। ऐसे ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड यानि कोई पूजा पाठ भी नहीं किया जाता है। सभी परंपरागत पञ्चाङ्ग केवल प्रच्छाया वाले चन्द्रग्रहण को ही सम्मिलित करते हैं।

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