जोशीमठ: बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने से पूर्व यहां पंच पूजाओं का विशेष महत्व है. इस खास पूजा की प्रक्रिया 15 नवम्बर से शुरू हो रही है. ये दिव्य पौराणिक प्रक्रिया बदरीनाथ धाम में विधिवत रूप से अपनाई जाती हैं. विश्व विख्यात भू-बैकुंठ साक्षात मोक्ष के धाम बदरीनाथ के कपाट 19 नवम्बर को दोपहर 3 बजकर 35 मिनट पर शीतकाल के लिए बंद किए जाएंगे.


पंच पूजाएं इस प्रकार हैं


15 नवम्बर 2020 को निर्धारित समय पर श्री गणेश मंदिर के कपाट बंद होंगे.
16 नवम्बर को बदरीनाथ में तप्त कुंड के निकट भगवान आदि केदारेश्वर मंदिर को कपाट विधि विधान मंत्रोच्चार के साथ बंद किए जाएंगे.
17 नवम्बर को खडग पूजा होगी. ये विधान भी अदभुत और धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ विरासत का हिस्सा भी है.
18 नवम्बर को मां लक्ष्मी जी का आह्वान किया जाएगा कि आप आइए और कपाट बंद होने से पूर्व भगवान के साथ विराजिए. लक्ष्मी जी का दिव्य मंदिर बदरीनाथ मंदिर के निकट है. कपाट खुलने पर लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना इसी लक्ष्मी मंदिर में होती है.
19 नवम्बर को सांय 3:35 पर मंत्रोचार, विधि विधान के साथ भगवान बदरी विशाल के कपाट बंद होंगे. कपाट बंद होने पूर्व की धार्मिक, सांस्कृतिक और भगवान से भक्त ही नहीं मानवीय सम्बंध और मान्यताओं के दर्शन भी होते हैं.


पारिवारिक रिश्तों और आदर
जिस दिन कपाट खुले थे. उस दिन पहले लक्ष्मी जी को भगवान के सानिध्य से सम्मान के साथ बाहर लाकर मंदिर में सुशोभित किया गया था और भगवान के निकट उद्धव जी की मूर्ति बिराजी गयी थी. यहां पर भारतीय समाज में पारिवारिक रिश्तों और आदर, मान्यताओं की झलक देखने को मिलती है. जिसमें जेठ के सामने छोटे भाई की बहू नहीं आती और न ही बैठ सकती है.


उद्धव जी लक्ष्मी जी के जेठ हुए
इस परम्परा के अनुसार कपाट खुलने पर जब लक्ष्मी जी मंदिर में कपाट खुलने के दिन सर्वप्रथम भगवान के सानिध्य से मंदिर गईं तब उद्धव जी भगवान के निकट बिराजे. उद्धव श्री कृष्ण के बाल सखा थे पर उम्र में बड़े थे. श्री कृष्ण ही भगवान श्री हरि, विष्णु या भगवान बदरीनाथ हैं, इसलिए "कृष्ण रूप में उद्धव से छोटे मित्र होने के कारण लक्ष्मी जी जो श्री हरि की अर्धांगिनी हैं. उस रूप में उद्धव जी लक्ष्मी जी के जेठ हुए.''


मानवीय रिश्ते के दर्शन होते हैं
जब 19 नवम्बर को कपाट बंद होगें तो पहले उद्धव जी का विग्रह भगवान के सानिध्य से बाहर लाया जाएगा. तब लक्ष्मी जी का विग्रह भगवान के निकट रखा जाएगा. यहां पर एक और अदभुत और मानवीय रिश्ते के दर्शन होते हैं. लक्ष्मी जी का विग्रह पर गोदी में आदर पूर्वक रावल जी लक्ष्मी मंदिर से भगवान के सानिध्य में लाएंगे तो स्त्री रुप धारण कर सखी रूप में लक्ष्मी जी को लाते हैं और भगवान की बायीं ओर बिराजित करते हैं.


पहनाया जाता है ऊन का लबादा
कपाट बंद होने से पूर्व भगवान को ऊन का लबादा पहनाया जाता है और इस ऊन के लबादे पर घी लगाया जाता है. यहां पर भक्त और भगवान की आत्मीयता और लगाव के दर्शन होते हैं. भला भगवान को क्या शीत, क्या गर्मी! पर अब शीतकाल में भगवान बर्फ के बीच रहेंगे , हमारे प्रभु को ठंड न लगे, इस धारणा, आत्मीयता, स्नेह के कारण भगवान को यह ऊन का लबादा जिसे घृत कम्बल कहते हैं पहनाया जाता है. इसे भारत के अंतिम गांव माणा की कन्या बुनकर भगवान को देती हैं. भगवान के प्रति सम्मान यह वस्त्र उपहार और आदर के रूप में देखा जाता है.


शीतकाल में देवता करते हैं पूजा
19 नवम्बर को निश्चित समय पर भगवान बदरीनाथ के कपाट बंद होंगे. मान्यता है कि भगवान के शीतकाल में कपाट बंद होने पर देवता, भगवान का दर्शन-अर्चन करने आते हैं. जिस तरह कपाट खुलने पर मानव भगवान का दर्शन-अर्चन करते हैं. 20 नवम्बर को कुबेर जी महाराज, उद्धव जी का विग्रह लेकर रावल जी की अगुवाई में पांडुकेश्वर भक्त पहुंचेगे और आदि गुरु शंकराचार्य जी ने जिस आसन्न पर बैठ कर ज्योर्तिमठ जोशीमठ में साधना की थी उस आसन्न डोली को जोशीमठ नरसिंह मंदिर में लाया जायेगा.



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