Dussehra 2022: राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव है, जिसे रावण के गांव के रूप में जाना जाता है. कहते हैं कि इसी जगह पर लंकेश का जन्म हुआ था. यही वजह है कि यहां पर न तो दशहरा मनाया जाता है और न ही रावण के पुतले को जलाया जाता है. ऐसा भी कहते हैं कि कई दशक पहले जब इस गांव के लोगों ने रावण के पुतले को जलाया था तो यहां कई लोगों की मौत हो गई थी. जिसके बाद गांव के लोगों ने मंत्रोच्चारण के साथ रावण की पूजा की तब जाकर यहां शांति हुई थी. अब ये बात कितनी सच है, ये तो हम नहीं कह सकते, लेकिन हां इस गांव में दशहरा नहीं मनाया जाता है. रावण जिस शिवलिंग की पूजा करते थे और जिस गुफा से होकर गाजियाबाद के दूधेश्वर नाथ मंदिर जाते थे.


दशहरा के दिन बिसरख में मनाया जाता है मातम


यही नहीं, इस गांव में रावण के बाद कुंभकरण, सूर्पणखा और विभीषण ने भी जन्म लिया था. यही वजह है कि जब पूरे देश में श्री राम की जीत की खुशियां मन रही होती है, तो वहीं इस गांव में रावण की मौत का भी शौक मनाया जाता है. दशहरा के दिन यहां लोग मातम मनाते हैं.


ऐसा कहते हैं कि गांव के लोगों ने यहां दो बार रामलीला का आयोजन किया था और रावण दहन भी यही किया गया था. लेकिन दोनों बार रामलीला के समय किसी न किसी मौत हो गई. इसलिए यहां कभी रावण दहन नहीं होता. अब बिसरख की आत्मा की शांति के लिए हवन किया जाता है. और तो और, नवरात्रि के दौरान शिवलिंग पर बलि पर चढ़ती है.


बिसरख में रावण ने प्राप्त की शिक्षा


ऐसा माना जाता है कि बिसरख रावण के पिता विश्रवा ऋषि का गांव हुआ करता था. उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम बिसरख पड़ा था. विश्व ऋषि यहां रोज पूजा करने के लिए आया करते थे. उनके बेटे रावण का जन्म भी यही हुआ था. इसके अलावा, पूरे देश में बिसरख एक ऐसी जगह है, जहां अष्टभुजीय शिवलिंग स्थित है. यही रावण ने अपनी शिक्षा भी प्राप्त की थी.


रावण ने ही की थी शिवलिंग की स्थापना


ऐसा माना जाता है कि हिंडन नदी के मुहाने पर बने स्थित दुधेश्वर नाथ शिवलिंग को रावण ने ही भक्ति भाव के साथ स्थापित किया था.


गांव का बेटा है रावण


यहां के लोगों का कहना है कि रावण उनके गांव का बेटा है और यहां का देवता भी है. यही वजह है कि ग्रामीणों ने आजतक रामलीला नहीं देखी है. दशहरा के दिन यहां घर में सुबह-शाम पकवान बनाया जाता है, लेकिन न तो गांव में रामलीला होती है और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है.


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