आगरा के इस गांव में जहरीले नागों के साथ खेलते हैं बच्चे, अब बज रही है शिक्षा की बीन
आगरा मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर गांव सोरन का पूरा अपने आप में खास है. इस गांव के हर घर में सांप घूमते हुए मिल जाएंगे. खास बात ये है कि अब यहा भी बच्चे शिक्षा ले रहे हैं.
आगरा, नितिन उपाध्याय: आगरा के शमसाबाद ब्लॉक का गांव सोरन का पुरा अपने आप में एक बड़ी खूबी रखता है. यहां के लोगों और सांपों का बाप और बेटे का रिश्ता है. इस गांव के बच्चों के लिए जहरीले सांप किसी खिलौने से ज्यादा नहीं हैं, क्योंकि बच्चे यहां खिलौनों से नहीं बल्कि सांपों से खेलते हैं. खास बात ये है कि ये सांप भी यहां इंसानों के बीच इस तरह से रहते हैं जैसे वो इनके ही परिवार का हिस्सा हों. लेकिन अब सपेरों के गांव में शिक्षा की बीन भी बज रही है, अब एक हाथ में बच्चों के हाथ में सांप है दूसरे हाथ में किताब.
आगरा मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर गांव सोरन का पूरा अपने आप में खास है. इस गांव के हर घर में सांप घूमते हुए मिल जाएंगे. सांप यहां घरों में इस तरह से रहते हैं जैसे किसी ग्रामीण ने अपने घरों में गाय और भैंस जैसे पालतू जानवर पाल रखे हों. दरसअल, सोरन का पुरा गांव में सपेरे रहते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी इस गांव के लोग सांपों का करतब दिखाकर अपनी रोजी रोटी का इंतजाम करते रहे हैं. गांव में जहरीले सांपों को देखकर अच्छे खासे हिम्मत वाले शख्स की हवा टाइट हो जाए, लेकिन इस गांव के बच्चों के लिए ये जहरीले सांप किसी खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं है.
राजस्थान के धौलपुर जिले से सटे इस गांव के बुज़ुर्ग सोरन नाथ कहते हैं कि हमारे लिए सांपों से रिश्ता बाप-बेटे का रिश्ता है. इन्हीं की वजह से हमारा पेट भरता है लेकिन सांपो के करतब दिखाकर केवल पेट की आग ही बुझ पाती है. इससे ज्यादा हम हर सुख सुविधा के लिए पूरी तरह महरूम हैं लेकिन अब हम बच्चों की पढ़ाई भी ज्यादा ध्यान दे रहे हैं ताकि हमारे नाती पोते मुफलिसी की जिंदगी न काटें.
गांव में रहने वाले राधेनाथ सपेरा का कहना है कि हम लोग पढ़े लिखे नहीं हैं और न ही हमारे पास खेती है इसलिए सांपों का खेल करतब दिखाकर दो वक्त की रोजी रोटी का जुगाड़ करते हैं. अलग-अलग प्रजाति के जहरीले सांपों के साथ रहना हमारे लिए सामान्य बात है. खास बात ये है कि इस गांव के सपरे बीन के साथ मृदंग और अन्य वाद्य यंत्रों को खुद तैयार करते हैं. ये सपेरे गांव-गांव जाकर सांपों का करतब दिखाते हैं जिससे इनके घर का खर्च चलता है.
अब गांव में पवन और उसका भाई ही पढ़ पाया है. पवन ने बीएससी की पढ़ाई की है और अब वही गांव में शिक्षा की रोशनी जला रहा है. सभी सपेरे चाहते हैं कि बदलते वक्त में महंगाई की मार में अपने बच्चों को पढ़ाकर डॉक्टर और इंजीनियर बनाएं ताकि इंज्जत से जिंदगी जिया जा सके.
पीढ़ी दर पीढ़ी सांपों का करतब दिखाते इन सपेरों के गांव में विकास की रोशनी नहीं पहुंची है, एक तरफ आज भी इन लोगों को जाति प्रमाणपत्र नहीं जारी किए जा रहे हैं, जिससे ये सरकारी सुख सुविधाओं से वंचित हैं तो वहीं, आए दिन इन सपेरों पर वन विभाग की कार्रवाई से इनके रोजी रोटी पर संकट बना हुआ है. लेकिन फिर भी सपेरों के गांव में अब शिक्षा की बज रही है बीन.
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