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भाईचारे के संदेश के साथ मनाया गया ईद मिलादुन्नबी का त्योहार, जानें क्या है बारावफात

Uttarakhand News: मुस्लिम समुदाय द्वारा ईद मिलादुन्नबी (या ईद-ए-मिलाद) का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है, उनका जीवन इस्लामिक शिक्षाओं का आदर्श है, जो इंसानियत, दया, न्याय और समानता पर आधारित है.

Uttarakhand News: आज दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय द्वारा ईद मिलादुन्नबी (या ईद-ए-मिलाद) का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है, जो पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. इस्लाम धर्म के प्रवर्तक और अंतिम नबी, पैगंबर मोहम्मद साहब ने इंसानियत और धार्मिकता की अद्वितीय मिसाल पेश की. उनका जीवन इस्लामिक शिक्षाओं का आदर्श है, जो इंसानियत, दया, न्याय और समानता पर आधारित है.

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म 12 रबी अल-अव्वल (हिजरी कैलेंडर का तीसरा महीना) को हुआ था. यही तारीख पैगंबर साहब की मृत्यु का दिन भी माना जाता है. इस वजह से इसे बारा वफात के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है "मृत्यु की बारहवीं तारीख." इस मौके पर मुसलमान पैगंबर मोहम्मद के जीवन, उनके संदेश और इस्लाम के प्रति उनके योगदान को याद करते हैं.

पैगंबर मोहम्मद साहब ने किया था इस्लाम प्रचार 
पैगंबर मोहम्मद का जन्म 570 ईस्वी में मक्का (वर्तमान सऊदी अरब) में हुआ था. उनके जीवन का हर पहलू इंसानियत के लिए एक वरदान के रूप में देखा जाता है. मोहम्मद साहब ने एक ऐसे समय में इस्लाम का प्रचार किया जब समाज में अन्याय, असमानता और अज्ञानता का बोलबाला था. उन्होंने सच्चाई, करुणा, भाईचारा और अल्लाह में अटूट विश्वास का संदेश फैलाया.

उनके जीवन के मुख्य उद्देश्य में मानवता के कल्याण और सामाजिक सुधार शामिल थे. वे गरीबों और कमजोरों के हक में आवाज उठाते थे और हर इंसान के साथ समानता और न्याय की बात करते थे. उनका जीवन सादगी और धैर्य का प्रतीक था.

मुस्लिम समाज के लोग निकालते हैं जुलूस
मुस्लिम समुदाय इस दिन को विभिन्न तरीकों से मनाता है. कुछ लोग इस दिन जुलूस निकालते हैं, मस्जिदों में नमाज पढ़ते हैं और पैगंबर मोहम्मद के जीवन से जुड़ी कहानियों का वर्णन करते हैं. इसके अलावा, गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना, खैरात देना और सामूहिक भोज का आयोजन करना भी इस दिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. कुछ क्षेत्रों में पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं के बारे में विशेष व्याख्यान आयोजित किए जाते हैं और धार्मिक प्रवचन दिए जाते हैं. यह दिन इस्लामी संस्कृति और परंपराओं को मनाने का एक अवसर भी है.

 

मुस्लिम समाज के लोगों ने निकाला जुलूस
मुस्लिम समाज के लोगों ने निकाला जुलूस


बारा वफात: क्या है इसकी धार्मिक मान्यता
बारा वफात" का शाब्दिक अर्थ है "मृत्यु की बारहवीं," जो पैगंबर मोहम्मद साहब की वफात (मृत्यु) की तिथि से जुड़ा है. इस दिन को शोक और जश्न दोनों के रूप में मनाया जाता है. कुछ लोग इस दिन को उनकी मृत्यु का शोक मानते हुए याद करते हैं, जबकि कई इसे उनके जन्म के उत्सव के रूप में भी मनाते हैं. बारा वफात के दिन, लोग धार्मिक आयोजनों के जरिए मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को आत्मसात करने का प्रयास करते हैं.

पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का सार इस्लाम के पांच स्तंभों में निहित है, जो इस्लाम के मुख्य सिद्धांत हैं. जिनमें शहादा (विश्वास) यह इस्लाम का सबसे प्रमुख सिद्धांत है, जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि "अल्लाह एक है और मोहम्मद उसके पैगंबर हैं. सलात (नमाज) दिन में पांच बार नमाज अदा करना, जो एक मुस्लिम का कर्तव्य है. जकात (दान)जरूरतमंदों और गरीबों की मदद के लिए दान देना. सौम (रोजा)रमजान के महीने में रोजा रखना. हज (तीर्थ यात्रा)जीवन में कम से कम एक बार मक्का की यात्रा करना.

बारावफात महत्वपूर्ण इस्लामी त्योहार

ईद मिलादुन्नबी या बारा वफात एक महत्वपूर्ण इस्लामी त्योहार है, जो पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं और उनके जीवन के आदर्शों को याद करने का अवसर प्रदान करता है. इस दिन, मुस्लिम समुदाय न सिर्फ उनके जन्म का जश्न मनाता है, बल्कि उनकी मृत्यु को भी एक प्रेरणादायक घटना के रूप में देखता है. मोहम्मद साहब का जीवन सदैव दुनिया को इंसानियत, शांति और भाईचारे का संदेश देता रहेगा. इस्लाम के प्रति उनकी शिक्षाओं और योगदान को मान्यता देते हुए, इस दिन को धार्मिक समर्पण और सामुदायिक एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.

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