लखनऊः उत्तर प्रदेश में 53 जिलों में 3 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए वोट डाले जाएंगे, लेकिन नामांकन और नाम वापसी के बाद कुल 22 ऐसे जिले हैं, जहां पर अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचन हुआ है. इनमें 21 जिलों में बीजेपी के अध्यक्ष चुने गए तो वहीं 1 जिले में समाजवादी पार्टी को जीत मिली.


वहीं 4 जिलों में तो नाम वापसी के दिन खेल हो गया और एसपी के उम्मीदवारों ने अपना पर्चा ही वापस ले लिया. 21 जिलों में जहां बीजेपी के जिला अध्यक्ष निर्विरोध चुने गए हैं वहां तो सरकार के मंत्रियों ने राहत की सांस ली है लेकिन कई ऐसे जिले हैं जहां पर मंत्रियों की सांस अटकी हुई है क्योंकि 2022 के चुनाव के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जीत को भी एक बड़ा पैमाना पार्टी ने तय किया है.


26 जून को जब जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन का दिन था, तब कुल 17 जगहों पर केवल बीजेपी के ही उम्मीदवार पर्चा भरने के बाद बचे थे और 29 तारीख को जब नाम वापसी की तारीख थी तब 4 जिलों में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया और यहां भी बीजेपी के जिला पंचायत अध्यक्ष पद के उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत गए. 


वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने चला सियासी दांव


इनमें से एक जिला शाहजहांपुर भी है. जहां से आने वाले कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना को इसका रणनीतिकार माना जा रहा है. दरअसल, जब लखनऊ में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मौजूद थे तो सारे मंत्री वहां पर गए थे. उस वक्त वित्त मंत्री सुरेश खन्ना लखनऊ छोड़कर शाहजहांपुर में मौजूद थे. वहां उन्होंने जो सियासी दांव चला उसने समाजवादी पार्टी को चारों खाने चित कर दिया.


नाम वापसी के अंतिम मौके पर समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार बीजेपी में शामिल हो गई और वहां भी बीजेपी के निर्विरोध निर्वाचन का रास्ता खुल गया. अब कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना कह रहे हैं कि बहुत लोग पीएम मोदी और सीएम योगी की नीतियों से प्रभावित होकर बीजेपी ज्वॉइन कर रहे हैं तो इसमें गलत ही क्या है. उनका कहना है कि दूसरे दलों को तो कैंडिडेट मिल ही नहीं रहे हैं और जो मिल भी रहे हैं उनकी भी आस्था बीजेपी के साथ है. 


बीजेपी नेताओं की बढ़ी परेशानी


हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी जिलों में बीजेपी के लिए राह इतनी आसान है. कई जिले ऐसे हैं जहां पर प्रभारी मंत्रियों की सांसें अटकी हुई हैं. उन्नाव में बीजेपी के बागी अरुण सिंह ने ही पार्टी की मुश्किल बढ़ा रखी है और वह शकुन सिंह के खिलाफ अपनी ताल ठोक रहे हैं. इसी तरह बलिया में भी बीजेपी सरकार के दो-दो मंत्री उपेंद्र तिवारी और आनंद स्वरूप शुक्ला परेशान हैं और इस कोशिश में जुटे हैं कि बीजेपी का जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया जाए, क्योंकि 2022 के चुनाव में पार्टी ने टिकट देने की जो सीमा तय की है उसमें इसे भी शामिल किया है.


बता दें कि 2015 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब भी पंचायत के चुनाव हुए थे और तब लगभग 36 सीटों पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए थे और अब बीजेपी इसका हवाला देते हुए कह रही है कि बीजेपी ने लोकतांत्रिक परंपराओं का निर्वहन किया है. कहीं पर शासन प्रशासन ने कोई दबाव नहीं बनाया है. असल मुकाबला 3 जुलाई को होगा जब 53 जिलों में वोट डाले जाएंगे क्योंकि इनमें से ज्यादातर जिलों में सत्ताधारी बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बीच ही मुकाबला है. 


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