नई दिल्ली, एबीपी गंगा। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को छह महीने और बढ़ाये जाने के प्रस्ताव को सोमवार को राज्यसभा से मंजूरी मिल गई। इससे पहले यह प्रस्ताव लोकसभा में पहले ही पास हो चुका है। साथ ही उच्च सदन से निर्विरोध जम्मू-कश्मीर आरक्षण बिल को भी पास कर दिया गया।


इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया। सदन में जम्मू-कश्मीर के हालात पर चर्चा करते हुये उन्होंने कहा कि हम देश भर में लोकसभा और विधानसभा तुनाव एक साथ कराना चाहते हैं,लेकिन आप इसका समर्थन नहीं करते। लोकसभा चुनाव में वहां सिर्फ 6 सीटें होती हैं और प्रत्याशी भी कम होते हैं। हालात ऐसे नहीं थे कि उम्मीदवारों को बिना सुरक्षा दिये चुनाव कराये जाएं। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या ज्यादा होती है, सभी को सुरक्षा देना संभव नहीं हो पाता। अन्य राज्यों में भी चुनाव हो रहे थे, ऐसे में वहां सुरक्षाकर्मियों की जरूरत थी। शाह ने कहा कि सुरक्षा कारणों से ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव न कराने के फैसला किया गया। उन्होंने कहा कि हमारे समय में चुनाव आयोग ही चुनाव कराता है, आपके समय में सरकार ही चुनाव करा देती थी।


93 बार कांग्रेस ने लगाया राष्ट्रपति शासन
अमित शाह ने कहा कि देश में अब तक 132 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया जिसमें 93 बार अकेले कांग्रेस पार्टी ने धारा 356 का इस्तेमाल किया है। हमने तो परिस्थिति की वजह से 356 का प्रयोग किया है लेकिन आपकी सरकार ने तो केरल में सबसे पहली कम्युनिस्ट सरकार गिराकर इसका दुरुपयोग किया था और वह भी नेहरू के समय में हुआ था।


शाह ने कहा कि बिलों की चर्चा कमेटियों में नहीं होती, यह सभी की शिकायत रहती है। इस पर गृह मंत्री ने कहा कि जल्दी की वजह से बिल को यहां लाया जाता है। उन्होंने कहा कि यूपीए-2 के अंदर 180 बिल आए जिसमें से 125 बिल एक भी कमेटी के सामने नहीं गए थे। यूपीए-1 में 248 बिल आए जिसमें से 207 बिल किसी कमेटी के सामने नहीं गए। वहीं एनडीए में 180 बिल आए जिसमें से 124 बिल कमेटियों के पास से होकर आए हैं। रिकॉर्ड हमारा अच्छा है लेकिन जल्दबाजी नहीं होगी तो जरूर इसपर विचार किया जाएगा।