नई दिल्ली, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी नीत एनडीए ने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ने हुए प्रचंड बहुमत हासिल किया। इस ऐतिहासिक जीत के साथ ही चारों ओर मोदी-मोदी की गूंज सुनाई दे रही है। चुनावी नतीजों पर गौर करें, तो यही कहा जाएगा कि 2014 में जिसे मोदी लहर कहा जा रहा था, वो 2019 आते-आते मोदी की सुनामी में तब्दील हो गई। इसे मोदी मैजिक ही कहेंगे कि एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी...जिसने देश को पहला प्रधानमंत्री दिया, देश को पहली महिला प्रधानमंत्री दी और देश का सबसे युवा व कम उम्र का प्रधानमंत्री भी इसी पार्टी से निकला...आज वो पार्टी हाशिए पर आ खुड़ी हुई है।
इस केसरिया आंधी के सामने राहुल गांधी से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया, हरीश रावत, डिंपल यादव मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई राजनीतिक दिग्गज टिक न सकें और बुरी तरह हारे। जितनी आज मोदी की जीत की चर्चा हो रही है, उतनी ही सुर्खियां इन नेताओं की हार भी बटोर रही हैं।
वो नेता जिनकी हार ने चौंकाया
राहुल गांधी
इस फेहरिस्त में सबसे पहला नाम खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का आता है। अमेठी, जो की गांधी परिवार की विरासत सीट रही है। उन्हीं अमेठीवासियों ने 2019 में राहुल का 'हाथ' छोड़, 'कमल' को हाथ में थाम लिया। केरल की वायनाड लोकसभा सीट ने तो राहुल की लाज रख ली, लेकिन अमेठी का हाथ से खिसका कांग्रेस की सबसे बड़ी हार मानी जा रही है। केंद्रीय मंत्री और बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने राहुल को 55120 वोटों से हराकर सवर्ण अक्षरों से सियासी पन्नों पर अपना नाम दर्ज कर लिया है। 2014 में भी स्मृति अमेठी में राहुल के खिलाफ मैदान में उतरी थीं, तब वो ये चुनाव जीत तो न सकीं, लेकिन राहुल को कड़ी टक्कर जरूर दी थी। 2014 के चुनाव के बाद से ही स्मृति अमेठी में डटी रहीं और राहुल की अमेठी से गैर मौजूदगी को चुनावी मुद्दा बनाया और अत: में नतीजा सामने है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया
कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार ने भी सभी को चौंका दिया। मध्यप्रदेश की गुना लोकसभा सीट से पहली बार सिंधिया परिवार के किसी सदस्य को हार का मुंह देखना पड़ा। पिछले 62 वर्षों से गुना सीट से सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य नहीं हारा, लेकिन 2019 में मोदी की सुनामी में बीजेपी प्रत्याशी केपी यादव ने वो कर दिखाया...जो पहले नहीं हुआ। इस सीट से केपी यादव 1.25 लाख वोटों से जीते। बता दें कि सिंधिया परिवार 1957 से चुनावी राजनीति में हैं, तब से लेकर गुना सिंधिया परिवार की विरासत सीट रही। साल 2002 से 2019 तक लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना सीट की नुमाइंदगी लोकसभा में करते आए हैं। ये पहला मौका होगा, जब 1957 के बाद सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य संसद नहीं पहुंचेगा।
मल्लिकार्जुन खड़गे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व नेता प्रतिपक्ष रहे मल्लिकार्जुन खड़गे की हार भी उतनी ही चौंकाने वाली रही। लोकसभा चुनाव 2019 के अग्निपथ में कर्नाटक की गुलबर्गा सीट से ताल ठोकने वाले खड़गे को पहली बार हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस का ये ऐसा नेता हैं, जो जब जहां से चुनावी मैदान में उतरा..हमेशा जीता। हालांकि, 2019 में मोदी सुनामी मल्लिकार्जुन खड़गे को भी अपने साथ बहा ले गई। अब तक अजेय रहे खड़गे को उमेश जाधव ने 95,452 वोटों से हराया।
चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, जाधव को 6,20,192 वोट मिले जबकि खड़गे ने 5,24,740 वोट हासिल कर सके।
दिग्विजय सिंह
मध्य प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भी 2019 में चली भगवा आंधी में खुद को हारने से बचा न सके। बीजेपी की परंपरागत भोपाल लोकसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर ने उन्हें करारी शिकस्त दी। उनपर हार पर हैरानी इसलिए हुई, क्योंकि प्रज्ञा ठाकुर राजनीति की नौसिखिया खिलाड़ी थीं, जो पहली बार चुनावी रण में उतरी, लेकिन दिग्विजय सिंह का मजबूत सियासी सफर रहा है। हालांकि, बीजेपी यहां से 1989 से अब तक कोई भी लोकसभा चुनाव नहीं हारी है। प्रज्ञा की जीत के साथ ही, भोपाल में 8वीं बार कमल खिला है।
महबूबा मुफ्ती
जम्मू-कश्मीर की अनंतनाग लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती की हार भी चौंका वाली रही। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और नेशनल कॉन्फ्रेंस उम्मीदवार हसनैन मसूदी ने करारी मात दी। कम मतदान वाले इस मुबाकले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जी ए मीर ने मसूदी को कड़ी चुनौती दी। हालांकि, परिणाम मसूदी के पक्ष में रहा और उन्हें 6676 वोटों के अंतर से कांग्रेस प्रत्याशी को शिकस्त दी। महबूबा का प्रदर्शन तो बेहद निराशाजनक रहा। वे केवल 30 हजार 500 वोट ही हासिल कर सकीं।
हरीश रावत
उत्तराखंड की जिस इकलौती सीट पर राजनीतिक पंडित कांग्रेस की जीत का अनुमान लगा रहे थे, वो भी कांग्रेस के हाथ न लगी। पार्टी के सबसे बड़े नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत की हार भी सुर्खियों में है। देवभूमि की सभी पांचों सीटों पर एक बार फिर से कमल खिला है। राज्य की नैनीताल सीट से हरीश रावत तीन लाख से भी ज्यादा मतों से हारे हैं। रावत के राजनीतिक करियर की ये सबसे बड़ी हार है।
डिंपल यादव
राहुल गांधी की तरह ही सपा नेता पत्नी डिंपल यादव भी अपनी ही विरासत सीट से हार गईं। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सियासी कुनबे की बहू और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी अपनी परंपरागत सीट कन्नौज बुरी तरह से हारीं। यहां से बीजेपी के सुब्रत पाठक ने 5,61, 286 वोट हासिल कर जीत दर्ज की, जबकि डिंपल को 5,49,200 वोटों से संतोष करना पड़ा।
राज बब्बर
उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख राज बब्बर की हार भी चौंकाने वाली रही। यूपी में कांग्रेस केवल रायबरेली सीट ही जीत सकीं। इतनी शर्मनाक हार के बाद राज बब्बर से अपने पद से भी इस्तीफा दे दिया है। बता दें कि फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट कांग्रेस के राज बब्बर को पछाड़ते हुए करीब तीन लाख वोटों से बीजेपी उम्मीदवार
राजकुमार चाहर ने जीत हासिल की।
भूपेन्द्र सिंह हुड्डा
कांग्रेस नेता व हरियाणा के पूर्व मुख्य मंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी भगवा क्रांति के आगे टिक न सकें और सोनीपत से हार का सामना करना पड़ा। हरियाणा की सभी दसों सीटों पर बीजेपी ने जीत का परचम लहराया। हुड्डा को सोनीपत सीट से बीजेपी उम्मीदवार रमेश चंद्र कौशिक ने हराया। चुनाव आयोग के मुताबिक, कौशिक ने 1,64,864 मतों के अंतर से जीत हासिल की है।