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Electoral Ink: उंगली से क्यों नहीं छूटती है चुनावी स्याही का रंग? क्या आप जानते हैं इंक के एक बूंद की कीमत?
नए मतदाताओं के मन में अक्सर ये उत्सुकता बनी रहती है कि आखिर उंगली पर लगी स्याही का रंग क्यों नहीं मिटकता है और क्या इस स्याही को पानी या साबुन से छुटाया जा सकता है.
देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहा है. मतदाताओं को अक्सर इस बात की उत्सुकता होती है कि उंगली पर स्याही क्यों लगाई जाती है और क्या इसे आसानी से मिटाया जा सकता है?
क्यों लगाई जाती है चुनावी स्याही
- वोटिंग के वक्त चुनावी स्याही इसलिए लगाया जाता है जिससे कोई मतदाता दोबारा वोट न करे. ये चुनावी स्याही वोटिंग में होने वाली धोखाधड़ी से बचाने का काम करता है.
कहां बनती है चुनावी स्याही
- भारत में ये स्याही सिर्फ एक कंपनी बनाती है जिसका नाम मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड है. शुरुआत में केवल लोकसभा और विधानसभा चुनावों के वक्त ही इस स्याही का प्रयोग किया जाता था लेकिन बाद में नगर निकाय और सहकारी समितियों के चुनाव में भी इसका प्रयोग होने लगा.
- नीले कलर की इस स्याही को 1962 के चुनाव के साथ प्रयोग में लाया जाने लगा. भारत के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने इस स्याही को चुनाव में शामिल करने का सुझाव दिया था.
कितनी है चुनावी स्याही की कीमत
- पिछले 62 सालों से इस स्याही का प्रयोग हर चुनाव के वक्त किया जा रहा है. अगर इस स्याही की कीमत की बात की जाए तो एक बोतल स्याही की कीमत तकरीबन 127 रुपये होती है और एक बोतल में तकरीबन 10 एमएल स्याही होती है. एक लीटर चुनावी स्याही की कीमत 12,700 रुपये है.
आखिर क्यों नहीं मिटती है स्याही
- चुनावी स्याही बनाने में सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग होता है. इसलिए एक बार लग जाने पर ये आसानी से नहीं मिटती है. ये स्याही कम से कम 72 घंटे तक नहीं उंगली से छूटती है. इसके अलावा पानी के संपर्क में आने पर ये काले रंग का होता है और लंबे समय तक रहता है.
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प्रोफेसर वीरेन्द्र चौहानप्रवक्ता, हरियाणा बीजेपी
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