25 जून 1975... आजाद भारत के इतिहास का सबसे काला दिन... ये वो दिन था जब देश में इमरजेंसी का एलान कर दिया गया था। 28 साल के हिंदुस्तान की तारीख का वो पन्ना जिसे शायद ही कोई याद रखना चाहेगा। भ्रष्टाचार में लिप्त केंद्र सरकार और जनता पर जबरन थोपे जा रहे फैसलों के खिलाफ जयप्रकाश नारायण दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली कर रहे थे। 25 जून की शाम रामलीला मैदान में जे पी ने लाखों लोगों के सामने झंडा बुलंद किया था। जेपी मंच पर रामाधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां पढ़कर सुना रहे थे।


उठते हैं तूफान, बवंडर भी उठते हैं..
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है..
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनती आती है..


उधर जयप्रकाश नारायण आंदोलन कर रहे थे तो इधर एक सफदरजंग में बैठी इंदिरा को अपनी कुर्सी हिलती दिखाई दे रही थी। सत्ता की लालसा लिए इंदिरा ने वो कदम उठाया जिसके बारे में किसी ने भी सोचा नहीं था। 25 जून की रात इंदिरा ने देश में इमरजेंसी लगा दी।


जून की दोपहरी में दिल्ली गर्मी में तप रही थी। तापमान ही नहीं ये दिन सियासी लिहाज से भी बेहद गर्म था। रामलीला मैदान में 73 साल के जेपी लोगों को संबोधित कर रहे थे। इसी रैली में वो सेना और पुलिस को नसीहत देते हुए उनसे हुकुमत के गलत फैसलों में साथ ना देने के लिए कहते हैं। जेपी ने उसी मंच पर लोक संघर्ष समिति बना दी.. मोरारजी देसाई को उसका चेयरमैन बना दिया.. नाना जी देशमुख महासचिव, अशोक मेहता कोशाध्यक्ष बनाए गए, वहीं, रामलीला मैदान से कुछ ही दूर अपने दफ्तर पर बैठी इंदिरा को जेपी की गिरफ्तारी का मौका मिल गया था। जेपी ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता दोहराई... सिंहासन खाली करो की जनता आती है। इलादाबाद हाईकोर्ट के फैसले से बौखलाई इंदिरा को लगने लगा कि जेपी उनकी सियासी जमीन को खिसकाना चाहते हैं।


आपातकाल को याद करते हुए एक इंटरव्यू में लाल कृष्ण आडवाणी बताते हैं ‘उस वक्त हम दिल्ली में थे और हम सुनते थे कि कुछ हो सकता है... उस वक्त अंदाज़ा नहीं था कि क्या होगा, लेकिन आपातकाल की जैसी खबर चलाई गई। हम अपेक्षा करते थे आपातकाल की जानकारी टीवी पर कोई न्यूज़ रीडर बोलेगा, लेकिन न्यूज़ रीडर की जगह स्वयं इंदिरा गांधी की आवाज़ सुनाई दी.. तब उन्होंने इतना ही कहा की राष्ट्रपति नेआंतरिक आपातकाल लागू किया है।'


कहा जाता है कि जेपी की रैली से पहले ही आपातकाल की पटकथा लिख दी गई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजि सचिव आरके धवन के कमरे में हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ओम महता, और दिल्ली के एसपी सीआईडी इकट्ठा हुए। दिल्ली के उपराज्यपाल किशनचंद ने शाम के वक्त मुख्य सचिव जेके कोहली, भवानी मल और डीआईजी भिंडर के साथ एक बैठक की इस बैठक के बाद मुख्य सचिव तिहाड़ जेल पहुंचे.. उन्होंने जेल सुपरिटेंडेंट को बताया कि तड़के तक जेल में 200 कैदियों की जगह बनानी होगी। रामलीला मैदान में जेपी की रैली चल रही थी तो इधर इंदिरा गांधी राष्ट्रपति भवन पहुंच गई।


उन्होंने जेल सुपरिटेंडेंट को बता दिया कि सुबह तड़के तक दो सौ कैदियों तक की जेल में जगह बनाकर रखी जाए.. उधर जेपी की रैली खत्म नहीं हुई की इधर प्रधानमत्री इंदिरा गांधी सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंचीं… घंटों मीटिंग के बाद राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। ‘मैं भारत का राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद, संविधान की धारा 352 की उपधारा के अनुसार प्राप्त शक्तियों का उपयोग करते हुए घोषणा करता हूं की आंतरिक उपग्रहों के खतरों से भारत की सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है और मैं अपनी इस घोषणा के जरिए देश में आपात स्थिति की घोषणा कर रहा हूं।‘


25 जून की आधी रात को आपातकाल के ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर के बाद देश इंदिरा गांधी और संजय गांधी का बंधक बन गया था। 26 जून की सुबह छह बजे कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई गई। कुछ ही देर चली बैठक में गृह सचिव खुराना ने आपातकाल का घोषणापत्र कैबिनेट को सुनाया। रात डेढ़ बजे जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया था। उनके साथ इंदिरा की नीतियों का विरोध कर रहे कई और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।


अगले दिन की सुबह इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो पर देशवासियों को आपातकाल की जानकारी दी। मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा के तहत हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।