साल 2001... तारीख 15 जुलाई समय 12:30 बजे....पूर्वांचल एक बड़ा माफिया अपने काफिले के साथ मुहम्मदाबाद से मऊ जा रहा था...नाम था मुख्तार अंसारी....मुख्तार का लाव-लश्कर उसरी चट्टी के पास पहुंचा ही था कि तभी स्वचालित असलहों से ताबड़तोड़ फायरिंग होनी लगी....ये गोलियां पूर्वांचल का एक और डॉन बृजेश सिंह अपने साथियों के साथ मिलकर बरसा रहा था...


ये घटना को यूपी की क्राइम हिस्ट्री में उसरी चट्टीकांड नाम से दर्ज हो गया...इस हमले में मुख्तार अंसारी तो बच गया लेकिन उसके एक गनर की मौत हो गई...इसके साथ जवाबी फायरिंग में एक शूटर भी मारा गया...


ये पूर्वांचल की पहली घटना नहीं थी...यूपी का ये इलाका तो पहले ही 'रक्तांचल' बन चुका था...चट्टीकांड तो ऐसी तमाम घटनाओं में से एक थी. बाहुबली मुख्तार ने इस मामले में बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह सहित 15 अज्ञात हमलावरों के खिलाफ मामला दर्ज कराया. घटना के बाद बृजेश सिंह फरार हो गया.


90 के दशक में मुख्तार और बृजेश की दुश्मनी ने पूर्वांचल को खून से लाल कर दिया था. मु्ख्तार जहां अपने दुश्मनों को खुलेआम चुनौती देता था तो बृजेश सिंह शातिर से दिमाग से निपटाने में यकीन रखता था. वर्चस्व की लड़ाई में कई लोगों का खून बहा और मौतें हुई.


लेकिन चट्टीकांड क्यों हुआ इसके पीछे भी एक हत्या वजह बनी. इससे पहले की घटनाओं में एक दूसरे के गुर्गे मारे गए थे. लेकिन चट्टी कांड में पहली बार दोनों माफिया आमने-सामने थे...


दरअसल मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह के बीच तगड़ा याराना था और दोनों ही उस समय अंडरवर्ल्ड में अपनी पैठ बना रहे थे. लेकिन साल 1991 में वाराणसी के पिंडारा से विधायक रहे अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या कर दी गई. 


इस हत्याकांड में मुख्तार अंसारी और उसके गैंग का नाम आया. कहा जाता है कि बृजेश ने मुख्तार को अवधेश को लेकर एक बार हिदायत भी दी थी...लेकिन अवधेश के मर्डर ने बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच खाई खींच दी.


एक लाश क्या गिरी पूर्वांचल को रक्तांचल में बदलने की जमीन तैयार हो चुकी थी. दोनों के बीच दुश्मनी बढ़ती जा रही थी. लेकिन ताकत मुख्तार की बढ़ती जा रही थी और साल 1996 में वह पहली बार विधायक बन गया.


मुख्तार अंसारी ने अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल किया और बृजेश सिंह के पीछे पुलिस पड़ गई. कोई रास्ता न देख बृजेश सिंह ने मुख्तार को ही निपटाने का प्लान बना डाला. और ऊसर चट्टीकांड उसी का नतीजा था.


साल 2001 में हुई इस घटना के बाद बृजेश सिंह यूपी से फरार हो गया. बृजेश सिंह पर यूपी पुलिस ने 5 लाख इनाम भी रखा था.  साल 2008 में वह भुवनेश्वर से पकड़ लिया गया. जहां वह नाम और भेष बदलकर रहता था.  बीते 12 सालों से वह वाराणसी की जेल में बंद था.


गुरुवार को बृजेश सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है और उसे जेल रिह कर दिया गया है. हालांकि उसकी जमानत का राज्य सरकार और मुख्तार अंसारी की ओर से वकील उपेन्द्र उपाध्याय ने विरोध किया. दलील दी कि बृजेश पर  41 आपराधिक मुकदमे हैं. उसे जेल से रिहा करना उचित नहीं है.  


लेकिन अब वक्त बदल गया है. पूर्वांचल में जिस मुख्तार अंसारी की वजह से बृजेश को यूपी छोड़ना था....अब वह खुद सलाखों के पीछे हैं...


 


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