UP News: इटावा (Etawah) में चंबल नदी (Chambal River) किनारे गांव खेड़ा के कक्षा नौ की छात्रा को कुमारी शालू मवेशियों को लेकर नदी किनारे पानी पिलाने गई थी. उसके साथ पिता जगपत सिंह और छोटी चचेरी बहन भी थी. जहां पर शालू ने अपने पिता के साथ मवेशियों को पानी पिला दिया. लेकिन जब खुद पानी पीने के लिए नदी किनारे पहुंची तो पहले से पानी के भीतर छिपे हुए मगरमच्छ को नहीं देख पाई. जैसे ही शालू नदी की ओर बैठती है वैसे ही मगरमच्छ ने शालू पर हमला कर दिया. पलक झपकते ही शालू को नदी में खींच ले गया.
पिता का प्रयास भी असफल
अपने ही सामने अपनी बिटिया को मौत के मुंह में जाते देख जगपत सिंह कुछ समझ ही नहीं सके. बिटिया को बचाने के लिए जैसे ही दौड़े, वैसे ही खूंखार मगरमच्छ ने अपनी भारी भरकम पूंछ से पिता पर हमला कर बिटिया को पानी मे खींच लिया. पिता के हाथ केवल बिटिया के सर पर बंधा गमछा ही आ सका. इस बीच जगपत सिंह की भतीजी इस पूरे घटना को देख बेसुध होकर गिर पड़ी. कुछ देर बाद जगपत सिंह ने अपने आप को संभालते हुए गांव की ओर दौड़ लगा दी. पूरी घटना की जानकारी गांव वालों और प्रधान को दी.
एसडीआरएफ ने भी किया प्रयास
वो गांव वालों के साथ आकर एक बार फिर से नदी किनारे आकर बिटिया को ढूंढने की कोशिश करने लगे. थोड़ी देर में सेंचुरी की टीम मोटर बोट के साथ घटनास्थल पर पहुंच गई. शालू को ढूंढने के लिए घंटो ग्रामीणों के साथ मिलकर सेंचुरी की टीम ने प्रयास किया. लेकिन विशालकाय चंबल नदी में जहां सैकड़ों की संख्या में मगरमच्छ से रह रहे हैं, वहां पर शालू को ढूंढना नामुमकिन था. फिर भी 1 दिन बीत जाने के बाद भी एसडीआरएफ की टीम मोटर बोट के साथ मौके पर पहुंची. सेंचुरी की टीम के साथ नदी में जाल लगाकर शालू के शव को ढूंढने की कोशिश की गई लेकिन अभी तक किसी तरह की कोशिश पूरी नहीं हो सकी है.
ग्रामीणों को किया जाता है आगाह
किसान ने बताया कि गांव से सटी हुई चंबल नदी में वैसे तो सैकड़ों की संख्या में मगरमच्छ हैं, लेकिन गांव की तलहटी पर जहां पर ग्रामीणों और उनके जानवर पानी पीने जाते हैं, वहां कभी इस तरह का हमला नहीं हुआ. गांव के आगे पीछे तो कई मगरमच्छ बराबर देखे जाते हैं. वहां पर गांव वाले जाते नहीं है लेकिन जिस तरह दिन-ब-दिन मगरमच्छों की संख्या बढ़ रही है. उससे अब गांव वालों के लिए खतरा पैदा हो गया है. वहीं सेंचुरी की टीम बराबर ग्रामीणों को अप्रैल माह से लेकर जून के माह तक नदी किनारे ना जाने की हिदायत देते रहते हैं. निगरानी समिति बनाकर गांव-गांव जाकर लोगों को जंगल और चंबल नदी में ना जाने के लिए कहा जाता है.
एक माह में दूसरी मौत
दर्शन अप्रैल माह में चंबल नदी में घड़ियाल और मगरमच्छ अंडों को देते हैं. उन्हें नदी किनारे बालू में छुपा कर रख देते हैं. जून माह में जब अंडों से बच्चे निकल कर पानी में चले जाते हैं, तब तक मगरमच्छ और घड़ियाल अपने अंडों की रखवाली के लिए नदी किनारे विचरण करते रहते हैं. ऐसे में खतरे का अंदेशा होता देख मगरमच्छ हिंसक होकर हमला कर देते हैं. पिछले एक माह में चंबल नदी किनारे शालू को मिला कर दो बच्चे मौत के मुंह में समा चुके हैं. फरवरी माह में चंबल सेंचुरी की टीम ने घड़ियाल और मगरमच्छों की गणना की थी. जहां इटावा जनपद के इलाके में बहने वाली चंबल नदी में 1200 घड़ियाल और 700 मगरमच्छ देखे गए थे.
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