Etawah News: इटावा के इन शहीदों का देश कभी नहीं भूलेगा कर्ज...जब अंग्रेजी सैनिकों ने 3 क्रांतिकारियों के सीने कर दिए थे छलनी
Etawah News: इटावा के ताखा ब्लाक के ग्राम नगला ढकाऊ में शहीदों की याद में हर साल मेला लगता है. जहां बौखलाए अंग्रेजी सैनिकों ने 3 क्रांतिकारियों के सीने गोलियों से छलनी कर दिए थे.
Etawah News: इटावा के ताखा ब्लाक के ग्राम नगला ढकाऊ में शहीदों की याद में हर साल मेला लगता है. इसी पावन जमीन पर भारत माता की जय और वंदे मातरम बोलने से बौखलाए अंग्रेजी सैनिकों ने 3 क्रांतिकारियों के सीने गोलियों से छलनी कर दिए थे. यह बात सन 1931 की है, जब महात्मा गांधी के द्वारा आंदोलन की लड़ाई को धार देने के लिए इटावा के गांव में क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया था. अंग्रेजों के जमीदारों को लगान ना देने के चलते इटावा के ग्राम नगला ढकाऊ के गोपाल दास यादव को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल भेज दिया था.
अंग्रेजों के मना करने के बावजूद नारे हुए तेज
कुछ दिनों बाद जब गोपाल दास यादव जेल से छूटकर आए तो ताखा ब्लाक के ग्राम नगला ढकाऊ और आसपास के इलाकों में जश्न मनाया गया. भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारे लगाए जा रहे थे, तभी ग्राम नगला ढकाऊ मैं बनी अंग्रेजों की चौकी से अंग्रेजी फौज के सिपाही गांव में पहुंचते हैं और क्रांतिकारियों को नारेबाजी से रोकते हैं.
लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के मना करने के बाद क्रांतिकारियों के नारे और तेज हो गए. जिससे बौखलाए अंग्रेजी शासकों ने गोली चलाने का हुक्म दे दिया जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा की गई गोलीबारी के चलते तीन क्रांतिकारी गांव में शहीद हो गए थे. क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे ग्राम नगला ढकाऊ के शंकर सिंह यादव नगरिया यादवान के बलवंत सिंह ग्राम मामन हिम्मतपुर के भोपाल सिंह शाक्य अंग्रेजी सेना के सामने सीना तान कर खड़े हो गए थे और जोर-जोर से वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे जिस से बौखलाए अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों के सीने गोलियों से छलनी कर दिए.
महात्मा गांधी ने तीनों क्रांतिकारियों का किया अंतिम संस्कार
घटना की जानकारी मिलने पर महात्मा गांधी बेहद दुखी हुए थे, शहीद क्रांतिकारी शंकर सिंह यादव के नाती रामनरेश सिंह ने बताया कि घटना के बाद उनके बाबा शंकर सिंह यादव और बलवंत सिंह यादव भोपाल सिंह शाक्य तीनों क्रांतिकारियों के शव महात्मा गांधी ने दिल्ली मंगवा कर स्वयं जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर तीनों क्रांतिकारियों का अंतिम संस्कार किया था. देश आजाद होने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सन 1951 में गांव आकर शहीदों की याद में होली के सप्तमी पर शहीदों का मेला लगाने का सुझाव दिया जो आज तक निरंतर जारी है. सन 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घटना वाले स्थान पर शहीद स्मारक बनाने का आदेश दिया था यह स्मारक आज गांव में प्राथमिक विद्यालय के अंदर मौजूद है. तीनों शहीदों के शव महात्मा गांधी ने दिल्ली मंगवा लिए और वही उनका अतिंम संस्कार किया गया था उसके बाद तीनों शहीदों की क्रांति ने अपना पूरा काम कर दिया उनके क्रांति के जोश के चलते ग्रामीणों ने अंग्रेजी शासकों को ताखा से भागने पर मजबूर कर दिया.
ये भी पढ़ें:-