Buland Darwaza: आज भी मजबूती से खड़ा है 420 साल पहले बना 'बुलंद दरवाजा', जानें इसके रोचक तथ्य
Fatehpur Sikri: फतेह सीकरी में ही दुनिया का सबसे बड़ा दरवाजा है, जिसे 'बुलंद दरवाजा' के नाम से जाना जाता है. इसे जीत का प्रतीक भी माना जाता है. दरवाजे का निर्माण सम्राट अकबर ने 1602 में करवाया था.
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Buland Darwaza Fatehpur Sikri: उत्तर प्रदेश का फतेह सीकरी अपनी ऐतीहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है. फतेह सीकरी में ही दुनिया का सबसे बड़ा दरवाजा है, जिसे 'बुलंद दरवाजा' के नाम से जाना जाता है. इसे जीत का प्रतीक भी माना जाता है. इस विशाल दरवाजे का निर्माण मुगल साम्राज्य के दौरान सम्राट अकबर ने साल 1602 में करवाया था. ये स्मारक विश्व का सबसे बड़ा दरवाजा होने के साथ हिन्दू और फारसी स्थापत्य कला का शानदार नमूना है. यहां देश-विदेश से हजारों की संख्या में घुमने आते हैं.
बुलंद दरवाजे का ये है इतिहास
यह एक दिलचस्प वाकया है कि बुलंद दरवाजे का निर्माण सम्राट अकबर ने गुजरात पर जीत प्राप्त करने की याद में 1602 ई. में करवाया था. दरवाजे के प्रवेश द्वार के पूर्वी तोरण पर आज भी फारसी में शिलालेख अंकित मिलते हैं. इसमें 1601 में दक्कन पर सम्राट अकबर की जीत के अभिलेखों से संबंधित हैं. बुलंद दरवाजा 53.63 मीटर ऊंचा और 35 मीटर चौड़ा है, जिसमें 42 सीढ़ियां हैं. दरवाजे को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, इसके साथ ही इसे सफेद संगमरमर से सजाया गया है. दरवाजे के आगे और स्तंभों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं. बुलंद दरवाजा जामा मस्जिद की ओर खुलता है.
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बुलंद दरवाजे के तोरण पर ईसा मसीह से संबंधित बाइबल की कुछ पंक्तियां लिखी गई हैं. बुलंद दरवाजे पर बाइबल की इन पंक्तियों की उपस्थिति को अकबर को धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता है. बुलंद दरवाजे पर बना पारसी शिलालेख अकबर के खुले विचारों को दर्शाता है और इतिहासकारों द्वारा अक्सर ही यह विविध परंपराओं और संस्कृति के उदाहरण के रूप में उपयोग किया जाता है.
बुलंद दरवाजे के रोचक तथ्य
- मुगलकालीन धरोहर बुलंद दरवाजे के निर्माण में 12 वर्षों का समय लगा था.
- बुलंद दरवाजे में लगभग 400 साल पुराने आबनूस से बने विशाल किवाड़ आज भी ज्यों के त्यों लगे हुए हैं.
- इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया था जिसके अंदरूनी भाग पर सफेद और काले संगमरमर की नक्काशी की गई है.
- शेख सलीम की मान्यता के लिए अनेक यात्रियों द्वारा किवाड़ों पर लगवाई हुई घोड़े की नालें दिखाई देती हैं.
- शेख की दरगाह में प्रवेश करने के लिए इसी दरवाजे से होकर जाना पड़ता है.
- 1571 ई. से 1585 ई. तक फतेहपुर सिकरी मुग़ल साम्राज्य की राजधानी थी.
- इसके बाई ओर जामा मस्जिद है और सामने शेख की मजार के पास उनके रिश्तेदारों की कब्रें भी मौजूद हैं.
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