रायबरेली: जहां एक तरफ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना जैसी महामारी को बड़े ही सूझबूझ व कुशल प्रबंधन से मात देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ लोग कोरोना आपदा को अवसर में बदलने से चूक नहीं रहे हैं. ऐसा ही एक मामला रायबरेली जनपद में स्वास्थ्य विभाग व नटवरलाल लक्ष्मी मेडिकल एजेंसी का सामने आया है. जिसमें होम क्वॉरंटीन हो रहे मरीजों को जबरदस्ती एक ही जगह से महंगे दामों पर किट देने का काम किया जा रहा है. इतना ही नहीं किट में नॉट फॉर सेल की सरकारी दवाएं भी धड़ल्ले से बेची जा रही है और स्वास्थ्य विभाग इस बड़े खेल पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है.


स्वास्थ्यकर्मी बताकर बनाया जाता है फर्जी दवाब


कोरोना जैसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति मानसिक तौर पर वैसे ही परेशान होता है और होम क्वॉरंटीन के लिए प्रयास करता है. जैसे ही उसे होम क्वॉरंटीन का पत्र मिलता है और मरीज अपने घर भी नहीं पहुंच पाता है, तत्काल मरीज के पास एक फोन पहुंचता है और फोनकर्ता कहता है मैं स्वास्थ्य विभाग से बोल रहा हूं. तत्काल मधुबन रोड पर लक्ष्मी फार्मा पहुंचकर कोरोना किट ले लीजिए. मरीज को अपने घर पहुंचने में यदि थोड़ी देरी हो जाती है और कोरोना किट लेने कोई नहीं पहुंच पाता तो लक्ष्मी फार्मा का लड़का अपने को स्वास्थ्य कर्मी बताकर मरीज के घर पहुंच जाता है और डरा धमकाकर कोरोना किट लेने के लिए उस पर दबाव बनाता है. वह कहता है यदि तत्काल कोरोना किट नहीं लिया गया तो होम क्वॉरंटीन की परमिशन निरस्त हो जाएगी. चूंकि मामला कोरोना किट व परमिशन का होता है तो मरीज तत्काल महंगे दाम पर कोरोना किट अपने घर ले आता है. लेकिन जैसे ही किट देखता है उसके होश उड़ जाते हैं क्योंकि किट में नॉट फॉर सेल लिखी हुई सरकारी दवाएं भी उपलब्ध होती है.


लक्ष्मी फार्मा कर रहा सरकारी दवाओं की धड़ल्ले से बिक्री


शहर कोतवाली क्षेत्र के मधुबन रोड पर लक्ष्मी फार्मा नाम की एक मेडिकल एजेंसी स्थित है. होम क्वॉरंटीन हो रहे मरीजों के लिए सिर्फ वहीं कोरोना किट मिलती है. कोरोना किट की कीमत मरीजों से 21 सौ रुपये ली जाती है जबकि दो सौ रुपये दवा का अलग से लिया जाता है. किट में एक बकेट में आक्सोमीटर और थर्मामीटर के साथ मास्क, ग्लव्स व सैनिटाइजर भी उपलब्ध होता है. इसके साथ-साथ पैरासिटामोल, क्लोरोक्विन, जिस पर नॉट फॉर सेल लिखा होता है, वह भी प्राइवेट मेडिकल स्टोर से दिया जाता है. किट के नाम पर ₹21 सौ की मरीजों को रसीद दी जाती है जबकि दवा का ₹200 अलग से लिया जाता है और जो दवाएं दी जाती है वह सरकारी होती हैं और उसकी कोई रसीद नहीं दी जाती.


सुनील सिंह ही अकेले नहीं है भुक्तभोगी


कोरोना से पीड़ित रहे अधिवक्ता सुनील सिंह ने बताया जैसे ही मैं घर पहुंचा लक्ष्मी फार्मा से स्वास्थ्य कर्मी के नाम पर एक फोन आया और कोरोना किट लेने के लिए कहा गया. मैंने अपने दामाद को कोरोना किट लेने के लिए भेजा और वहां ₹21सौ की रसीद मिली जबकि ₹200 दवाओं के लिए अलग से लिया गया. सुनील सिंह ही एक मात्र पीड़ित नहीं है जनपद के किसी भी कोने से कोई कोरोना से पीड़ित मरीज पाया गया तो उसे लक्ष्मी फार्मा से ही किट लेनी पड़ी. इस तरह स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत से कोरोना के नाम पर एक बड़ा भ्रष्टाचार किया जा रहा है.


क्या कहते हैं मुख्य चिकित्सा अधिकारी?


मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ वीरेंद्र सिंह ने साफ साफ शब्दों में कहा कि सरकारी दवाएं मेडिकल स्टोर पर हम नहीं देते बल्कि हम उप जिलाधिकारी के डिमांड पर उनके कार्यालय भिजवा देते हैं. जबकि दुकानदार साफ-साफ बयां कर रहा है कि सरकारी दवाएं उसे मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से उपलब्ध होती हैं. इस तरह दोनों के बयानों में विरोधाभास साफ-साफ दिख रहा है और इस विरोधाभास वाले बयान के बाद तस्वीरें भी लगभग साफ हो जाती हैं.


ये भी पढ़ें-

हरिद्वार: कुंभ मेले में मुसीबत बन सकते हैं जंगली हाथी, वन विभाग कर रहा बड़ी तैयारी, बनेंगी खास दीवारें


प्रयागराज: अपराधियों के खिलाफ जारी है कार्रवाई, हिस्ट्रीशीटर छुट्टन गिरी और ऋषि भारतीय के अशियानों पर चला बुलडोजर