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मुख्तार अंसारी के मुकदमों को लेकर गंभीर नहीं है यूपी का सरकारी अमला, वजह बताएगी ये Exclusive रिपोर्ट

सरकारी अमला योगी राज में भी मनमानी और लापरवाही बरतते हुए खेल करने से बाज नहीं आ रहा है. कानूनी दांवपेंच अपनी जगह हैं, लेकिन जो काम सरकारी अमले को करना चाहिए, मुख्तार के मामले में वह भी कहीं होता हुआ नजर नहीं आ रहा है.

प्रयागराज: पूर्वांचल के माफिया डॉन और बीएसपी के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को लेकर यूपी का सरकारी अमला इन दिनों बड़े-बड़े दावे कर रहा है. इनमें कोई दावा कानूनी है तो कोई सियासी और कोई तो महज किताबी. सरकार मुख्तार को पंजाब की रोपड़ जेल से निकालकर यूपी ला पाएगी या नहीं, यह अब देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट को तय करना है. बेशक कानूनी पेचीदगियों के चलते सरकार के हाथ बंधे हुए हैं. सरकार की नीयत पर भी लोगों को शक नहीं है, लेकिन सरकारी अमला योगी राज में भी मनमानी और लापरवाही बरतते हुए खेल करने से कतई बाज नहीं आ रहा है. कानूनी दांवपेंच अपनी जगह हैं, लेकिन जो काम सरकारी अमले को करना चाहिए, मुख्तार के मामले में वह भी कहीं होता हुआ नजर नहीं आ रहा है.

तलबी रिपोर्ट तक नहीं दाखिल हुई मुख्तार को सज़ा दिलाने को लेकर यूपी का सरकारी अमला कितना गंभीर और संजीदा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभियोजन यानी सरकारी वकीलों ने अभी तक इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में मुख्तार की तलबी रिपोर्ट तक नहीं दाखिल की है. यानी मुख्तार को पंजाब से यूपी की जेल लाने के लिए सबसे ज़रूरी कानूनी औपचारिकता अभी तक पूरी ही नहीं की गई है. सरकारी अमले की लापरवाही या सुस्ती का यह हाल तब है, जब उसे अच्छे से पता है कि इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में मुख्तार के खिलाफ जो दस मुक़दमे चल रहे हैं, कानूनी कसौटी पर परखे जाने पर वह बहुत मजबूत नहीं नज़र आते. ज़्यादातर मुकदमों में मुख्तार का बाइज़्ज़त बरी होना तकरीबन तय है.

नहीं है ठोस जवाब ऐसे में सवाल यह उठता है कि कहीं सरकारी अमला जानबूझकर लीपापोती करने में तो नहीं जुटा हुआ है. कहीं वह मुख्तार को जेल से बाइज़्ज़त रिहा होते देखने के बजाय उसे कानूनी पेचीदगियों में तो उलझाकर नहीं रखे रहना चाहता है. इस मामले में सरकारी वकीलों से लेकर सूबे के क़ानून मंत्री तक के पास कोई ठोस जवाब नहीं है. यह अलग बात है कि मुख्तार को लेकर दावावीरों में एक दूसरे को पीछे छोड़ने में कोई कमी नहीं है.

क़ानून के जानकारों के मुताबिक़ तलबी रिपोर्ट वह होती है, जिसमे अभियोजन यानी सरकारी पक्ष कोर्ट से इस बात की सिफारिश करता है कि वह मुक़दमे के जल्द से जल्द निस्तारण के लिए मुल्जिम को जिले या नजदीक की किसी जेल में रखने और हर ज़रूरी सुनवाई पर कोर्ट में उसकी पेशी सुनिश्चित कराने का आदेश जारी करे. आम तौर पर अभियोजन की सिफारिश पर ही कोर्ट जेल से तलब किये जाने का आदेश करती है. इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में मुख्तार के खिलाफ दस मुक़दमे चल रहे हैं. कोर्ट से जुड़े वकीलों का दावा है कि मुख्तार से जुड़े मामलों में प्रयागराज के अभियोजन ने अभी तक किसी भी मामले में कोर्ट में तलबी रिपोर्ट दाखिल ही नहीं की है. यानी मुख्तार को पंजाब की रोपड़ जेल से प्रयागराज लाए जाने के लिए जो औपचारिकता सबसे ज़रूरी है, उसे अभी पूरा ही नहीं किया गया है.

इस बारे में जब प्रयागराज के जिला शासकीय अधिवक्ता गुलाब चंद अग्रहरि से पूछा गया तो उनसे जवाब देते नहीं बना. उन्होंने इस लापरवाही पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन यह दावा ज़रूर किया कि कोर्ट में जल्द ही तलबी रिपोर्ट पेश की जाएगी और मुख्तार को यूपी बुलाने की कवायद भी शुरू की जाएगी. उन्होंने यह ज़रूर स्वीकार किया कि मुख्तार के खिलाफ इलाहाबाद की स्पेशल कोर्ट में जो मुक़दमे चल रहे हैं, उन मुकदमों में चार्ज फ्रेम होने-फैसला सुनाए जाने व कुछ दूसरे अहम मौकों पर मुख्तार का कोर्ट में मौजूद रहना बेहद ज़रूरी है. मुख़्तार के कोर्ट में मौजूद न होने पर कानूनी प्रक्रियाएं रुकी रहेंगी. उन्होंने बार-बार यह सफाई ज़रूर दी कि स्पेशल कोर्ट में तलबी रिपोर्ट जल्द ही दाखिल कर दी जाएगी. दूसरी तरफ इस बारे में सवाल करने पर यूपी के क़ानून मंत्री बृजेश पाठक भी कोई जवाब नहीं दे सके. उन्होंने सिर्फ इतना भर कहा कि वह इस बारे में अभियोजन से बात कर यह पता लगाएंगे कि आखिर इसकी क्या वजह है.

मुकदमों की हकीकत के बारे में जानकारी छिपाई गई यह लापरवाही इसलिए भी बेहद अहम हो जाती है क्योंकि इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में मुख्तार के खिलाफ जो दस मुक़दमे चल रहे हैं, उनमे सरकारी पक्ष बहुत मजबूत नहीं है. इतना ही नहीं अभियोजन यानी सरकारी पक्ष ने इन दसों मुकदमों में भी सरकार को गुमराह कर रखा है. मुकदमों की हकीकत के बारे में जानकारी छिपाई गई है. जो मुक़दमे बहुत देर तक कोर्ट में स्टैंड ही नहीं कर पाएंगे, उन्हें लेकर भी बेवजह का दंभ भरा जा रहा है. मुकदमों का ट्रायल जल्द से जल्द पूरा कराने और पुख्ता सबूतों व गवाही के दम पर मुख्तार को सज़ा दिलाने और उसके सियासी करियर पर ब्रेक लगाने को लेकर भी कोई ठोस कवायद नहीं की जा रही है.

स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में हैं 10 मुकदमे मुख़्तार के खिलाफ इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में इन दिनों दस मुक़दमे हैं. इनमें से डबल मर्डर का एक मामला फाइनल स्टेज पर है. इसके अलावा बाकी नौ मुकदमों में छह में इन दिनों गवाही के साथ ट्रायल चल रहा है. बाकी तीन मुकदमों में अभी अदालत ने मुख्तार पर चार्ज फ्रेम यानी आरोप तक तय नहीं किये हैं. मुख़्तार के खिलाफ ज़्यादातर मुक़दमे साल 2005 के बाद के हैं. यानी मुख़्तार के जेल में रहते हुए उस पर साजिश रचकर आपराधिक घटनाएं कराने के आरोप हैं. ऐसे मामलों में अभियोजन आम तौर पर शुरुआती दिनों में भी आरोप साबित नहीं करा पाता, फिर लम्बे अरसे से लंबित मुकदमों में मुख्तार पर शिकंजा कस पाना इतना आसान नहीं होगा.

दस मुकदमों में से अकेले चार गैंगस्टर के हैं. गैंगस्टर के तीन मुक़दमे गाज़ीपुर जिले के हैं, जबकि एक मऊ जिले का. इसके अलावा मुख़्तार पर हत्या और जानलेवा हमले के भी मुक़दमे चल रहे हैं. एमपी एमएलए कोर्ट में मुख्तार के खिलाफ दस मुक़दमे चल रहे हैं तो एक मुकदमा खुद मुख्तार ने वारणासी जेल में बंद माफिया बृजेश सिंह के खिलाफ दाखिल कर रखा है. मुख़्तार ने इस मामले में गवाही शुरू कराने के लिए फरवरी महीने में कोर्ट से गुहार भी लगाई है. बीस साल पुराने इस मुक़दमे में ट्रायल फिलहाल रुका हुआ है. बाहुबली मुख्तार के खिलाफ एक चर्चित मुकदमा फर्जी तरीके से शस्त्र लाइसेंस हासिल करने का भी है.

मुख्तार के खिलाफ इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में जो दस मुक़दमे पेंडिंग हैं, उनमे अभियोजन को कमज़ोर क्यों माना जा रहा है. क़ानून के जानकार यह क्यों मान रहे हैं कि इनमे से ज़्यादातर मुकदमों में मुख्तार को कानूनी पेचीदगियों और अभियोजन की सुस्ती का फायदा मिलना और उसका बाइज़्ज़त बरी होना तय है. पेश है इलाहाबाद की स्पेशल कोर्ट में पेंडिंग मुख्तार अंसारी के एक -एक मुकदमों का डिटेल्स और उनके बारे में वह तथ्य, जिनके आधार पर बाहुबली को राहत मिलने की अटकलें लगाई जा रही हैं.

1- मुख्तार के खिलाफ सबसे बड़ा मुकदमा मऊ के दक्षिण टोला थाने में दर्ज डबल मर्डर केस का है. पूर्वांचल के मऊ जिले में साल 2009 में ए कैटेगरी के बड़े ठेकेदार अजय प्रकाश सिंह उर्फ़ मन्ना की दिन दहाड़े बाइक सवार हमलावरों ने एके 47 का इस्तेमाल कर हत्या कर दी थी. हत्या का आरोप बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी पर लगा था. इस मर्डर केस में मन्ना का मुनीम राम सिंह मौर्य चश्मदीद गवाह था. गवाह होने के चलते राम सिंह मौर्य को सतीश नाम का एक गनर भी दिया गया था. साल भर के अंदर ही आरटीओ ऑफिस के पास राम सिंह मौर्य और गनर सतीश को भी मौत के घाट उतार दिया गया था. इस मामले में भी मुख्तार अंसारी और उसके करीबियों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था. इस मामले में मुख़्तार पर जेल में रहते हुए हत्या की साजिश रचने का आरोप है.

मुक़दमे का कमज़ोर पक्ष क़ानून के जानकारों का कहना है कि मुख्तार अंसारी ठेकेदार अजय प्रकाश उर्फ़ मन्ना की हत्या के मामले में अदालत से बाइज़्ज़त बरी हो चुका है. बरी होने का सबसे बड़ा आधार मुख्तार का जेल में बंद होना था. जानकारों का कहना है कि जिस मुख्य मुक़दमे में मुख्तार पहले ही बरी हो चुका है, उससे जुड़े मुक़दमे में बाहुबली के खिलाफ सबूत जुटाना और गवाह खड़े करना इतना आसान नहीं होगा, वह भी उस हालात में, जहां अभियोजन को मुख्तार के जेल में रहते हुए डबल मर्डर कराने की साजिश रचने का आरोप साबित करना पड़े.

2- हत्या का एक और मुकदमा वाराणसी जिले का है यह मामला कांग्रेस के नेता अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या से जुड़ा हुआ है. इस मामले में चेतगंज थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी. यह मुकदमा इस वक़्त गवाही में चल रहा है. कांग्रेस नेता अजय राय इस मामले में वादी और गवाह दोनों हैं. इस मामले में सुनवाई हो रही है.

मुक़दमे का कमज़ोर पक्ष अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या साल 1991 में हुई थी. केस दर्ज हुए तकरीबन तीस साल का वक़्त बीत चुका है. पहले यह मुकदमा वाराणसी की जिला अदालत में चल रहा था. हाईकोर्ट के आदेश पर कई साल पहले मामला इलाहाबाद ट्रांसफर हुआ, लेकिन मुक़दमे की पूरी फ़ाइल अभी तक एमपी एमएलए कोर्ट ट्रांसफर नहीं हो सकी है. इसी वजह से मुक़दमे की सुनवाई लम्बे अरसे से ठप्प पडी है. इतने पुराने मुक़दमे में अकेले अजय राय ही मजबूत गवाह बचे हैं. वह खुद वादी भी हैं. इस मामले में भी मुख्तार पर आरोप साबित कर पाना कतई आसान नहीं होगा. समझा जा सकता है कि जब मुक़दमे की पूरी फाइलें ही नहीं मंगवाई जा सकीं हैं तो अभियोजन मुख्तार को सज़ा कैसे कराएगा.

3- तीसरा मुकदमा आजमगढ़ जिले में हुई सड़क ठेकेदार राजेश सिंह की हत्या से जुड़ा हुआ है. मुख्तार पर इस मामले में भी आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या और 120 B यानी साजिश रचने का है. इस मामले की एफआईआर आजमगढ़ के तरवा थाने में दर्ज हुई थी. मुकदमा यूपी सरकार बनाम राजेंद्र पासी व अन्य के नाम से चल रहा है. इस मामले में साल 2018 में मुख्तार समेत करीब दर्जन भर लोगों पर आरोप भी स्पेशल कोर्ट से तय कर दिए गए हैं. हत्या की यह वारदात 6 फरवरी 2014 को हुई थी. वारदात के वक़्त किये गए हमले में दो लोगों को गोली भी लगी थी.

मुक़दमे का कमज़ोर पक्ष इस मामले में मुख्तार समेत पंद्रह लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराई गई थी. वारदात से तकरीबन नौ साल पहले से मुख्तार जेल में है. मुख्तार पर सिर्फ साजिश रचने का ही आरोप है. ऐसे में अभियोजन के सामने सबसे पहले हत्या करने वालों के खिलाफ सबूत और गवाह जुटाकर उन्हें सज़ा दिलाना होगा. उसके बाद ही मुख्तार पर लगे साजिश रचने के आरोप साबित हो सकते हैं. सात साल बाद गवाहों को मुख्तार के खिलाफ बयान देने के लिए तैयार करना कतई आसान नहीं होगा. मुक़दमे की जो स्थिति है, उसमे मुख्तार को कानूनी पेचीदगियों का फायदा मिलने की पूरी उम्मीद है.

4- मुख्तार के खिलाफ चौथा मुकदमा हत्या के प्रयास से जुड़ा हुआ है. यह मामला गाज़ीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में आईपीसी की धारा 307 और 120 B के तहत दर्ज हुआ था. मुक़दमे की प्रक्रिया साल 2010 में ही शुरू हो गई थी. मुख्तार का मामला अभी ट्रायल की स्टेज पर है और काफी दिनों से सुनवाई ठप्प पड़ी हुई है.

मुक़दमे का कमज़ोर पक्ष इस मुक़दमे में मुख्तार अंसारी पर सिर्फ जेल से साजिश रचने भर का आरोप है. मुक़दमे में मुख्य आरोपी सोनू यादव नाम का शख्स था. अदालत पहले ही उसे बाइज़्ज़त बरी कर चुकी है. अलग फ़ाइल होने की वजह से मुख्तार अभी बरी नहीं हो पाया है. जब जानलेवा हमले का मुख्य आरोपी ही बरी हो चुका है तो मुख्तार को राहत मिलना सौ फीसदी तय है. सोनू यादव के दोषी साबित होने पर ही मुख्तार ज़रूर मुश्किल में पड़ सकता था.

5- मुख्तार के खिलाफ पांचवा मामला फर्जी शस्त्र लाइसेंस हासिल करने से जुड़ा हुआ है. यह मुकदमा गाज़ीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में दर्ज हुआ था. इसमें मुख्तार के खिलाफ दो केस दर्ज हुए हैं. पहला आईपीसी की धारा 419 - 420 और 467 यानी धोखाधड़ी व फर्जीवाड़े का है तो दूसरा आर्म्स एक्ट से जुड़ा हुआ है. इस मामले में अभी मुख्तार पर अदालत से आरोप तय होना बाकी है. आरोप तय होने के बाद ही ट्रायल यानी मुकदमा शुरू होगा.

मुक़दमे का कमज़ोर पक्ष मुक़दमे का कमज़ोर पक्ष यह है कि इससे जुड़े दो मुकदमों में एक बीस साल पुराना मामला है. एक मुक़दमे में खुद मुख्तार पर सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलीभगत कर गलत तरीके से शस्त्र लाइसेंस हासिल करने का आरोप है. इस मामले में मुख्तार के साथ ही पुलिस और प्रशासन के तमाम अधिकारी व कर्मचारी भी दोषी पाए जाएंगे, क्योंकि दस्तावेजों का परीक्षण करने की ज़िम्मेदारी उनकी होती है. पुलिस वेरिफिकेशन भी होता है. इसके अलावा बीस साल पहले चार दूसरे लोगों को लाइसेंस दिए जाने की सिफारिश मामले में भी मुख्तार से ज़्यादा सरकारी अमला दोषी साबित होगा. मुख्तार का परिवार पहले ही दस्तावेजों में बाद में हेराफेरी करने का आरोप लगाकर अपनी सफाई पेश कर चुका है.

6- मुख्तार के ख़िलाफ़ छठा मुकदमा वाराणसी के भेलूपुर थाने में धमकी देने से जुड़ा हुआ है. यह मुकदमा साल 2012 से शुरू हुआ है. इसमें आईपीसी की धारा 506 के तहत एफआईआर दर्ज है. इस मामले में अभी मुख्तार पर आरोप तय नहीं हुए हैं. मुक़दमे का केस नंबर 354/12 है.

मुक़दमे का कमज़ोर पक्ष धमकी के मामले में अधिकतम पांच साल तक की ही सज़ा होती है. मुख्तार अंसारी इस मुकदमे में भी नौ साल से जेल में बंद हैं. ऐसे में मुख्तार को आगे कोई सज़ा मिलने का कोई सवाल ही नहीं उठता.

मुख्तार के खिलाफ इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में गैंगस्टर के चार मुक़दमे चल रहे हैं. इन चारों में आरोप पत्र दाखिल हो चुके हैं. अदालत ने चारों मामलों में मुख्तार पर आरोप भी तय कर दिए हैं. चार में से तीन मामले गाज़ीपुर जिले के अलग-अलग थानों के हैं, जबकि चौथा मऊ जिले का है. पहला मामला गाज़ीपुर के कोतवाली थाने का है. इस मामले में आरोप पत्र दाखिल है और मामला साक्ष्य यानी ट्रायल के स्तर पर है. मुक़दमे का नंबर 7/12 है. मुख्तार के खिलाफ आठवां मामला भी गैंगस्टर का ही है. यह मामला गाज़ीपुर के करांडा थाने से जुड़ा हुआ है. इस मामले में आरोप तय हैं और मुक़दमे का ट्रायल पेंडिंग है. स्पेशल ट्रायल के इस मुक़दमे का नंबर 557/12 है. मुख्तार के खिलाफ नौवां मामला भी गैंगस्टर एक्ट के तहत की गई कार्रवाई का ही है. इस मामले में गाज़ीपुर के मोहम्मदाबाद कोतवाली में केस दर्ज किया गया था. यह मुकदमा भी ट्रायल के लेवल पर है. इसका केस नंबर 90/12 है. मुख्तार के खिलाफ दसवां और आख़िरी मुकदमा भी गैंगस्टर एक्ट का ही है. इस मामले में मऊ जिले के दक्षिण टोला थाने में केस दर्ज है. मुक़दमे का ट्रायल साल 2012 में शुरू हुआ था. इस मामले में अदालत से मुख्तार पर आरोप तय हो चुके हैं. इस मुक़दमे का नंबर 2/12 है.

गैंगस्टर मुकदमों का कमज़ोर पक्ष बाहुबली मुख्तार अंसारी पर गैंगस्टर के तहत कार्रवाई अलग-अलग आपराधिक मुकदमों के आधार पर की गई है. गैंगस्टर के मुकदमों में अधिकतम सज़ा दस साल की होती है. मुख्तार के खिलाफ गैंगस्टर के जो चार मुक़दमे चल रहे हैं, उनमे से एक में वह पिछले ग्यारह सालों से जेल में है. यानी मुक़दमे में आगे की सज़ा के रास्ते बंद हो चुके हैं. दो मुकदमों में दस साल की अवधि जल्द ही पूरी हो जाएगी. यानी उन मामलों में भी मुख्तार को अब आगे जेल में नहीं रखा जा सकता है. चौथे मुक़दमे में भी कई साल का वक़्त बीत चुका है. इतना ही नहीं अगर छह आपराधिक मुकदमों में मुख्तार बरी हो जाता है तो गैंगस्टर के आधार खुद ही ख़त्म भी हो जाएंगे, क्योंकि गैंगस्टर के तहत कार्रवाई आपराधिक मुकदमों के आधार पर ही गई है.

इन सबके अलावा इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में मुख्तार का एक और मामला विचाराधीन है. हालांकि इस मुक़दमे में मुख्तार आरोपी नहीं बल्कि वादी है. यह मामला 15 जुलाई साल 2001 का है. मुख्तार अंसारी ने ग़ाज़ीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में माफिया बृजेश सिंह और अन्य के खिलाफ जानलेवा हमला करने समेत कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज कराया था. इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट वाराणसी जेल में बंद बृजेश सिंह की जमानत की अर्जी को खारिज कर चुका है. जमानत की अर्जी पिछले साल नवम्बर महीने में खारिज की गई थी. इस मामले में ट्रायल रुका हुआ है. गवाही शुरू कराने की मांग को लेकर मुख्तार अंसारी की तरफ से स्पेशल कोर्ट में पिछले महीने ही एक अर्जी दाखिल की गई थी.

इस तरह इलाहाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में मुख्तार से जुड़े कुल ग्यारह मुक़दमे पेंडिंग हैं. इनमें से दस मुकदमों में वह खुद आरोपी है, जबकि एक में वादी है. यूपी सरकार की दिलचस्पी मुख़्तार के उन्ही दस मुकदमों में है, जो उसके खिलाफ चल रहे हैं. सरकार की मंशा इन मामलों में मजबूत पैरवी कर मुख्तार को सज़ा दिलाने की है. ऐसा करके सरकार जहां एक तरफ क़ानून का राज स्थापित होने का संदेश देना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ कुछ मामलों में बाहुबली को सज़ा दिलाकर उसके सियासी कैरियर का द एंड करने की भी तैयारी में है. अगर मुख्तार को किसी मामले में सज़ा हो जाती है तो चुनाव आयोग के नए नियमों के मुताबिक़ वह चुनाव नहीं लड़ सकेगा. हालांकि, सरकारी अमले की लापरवाही और मुकदमों के हालात कतई सरकार के पक्ष में नहीं हैं.

एमपी एमएलए कोर्ट में आए मुकदमों के एक्सपर्ट वकील सैयद अहमद नसीम के मुताबिक़ ज़्यादातर मुकदमों में मुख्तार को राहत मिलना तय है. अगर वह कानूनी पेचीदगियों का फायदा उठाने में कामयाब रहा तो सभी दस मुकदमों में भी बरी हो सकता है. उनके मुताबिक़ मुख्तार के मामलों को लेकर सरकार सिर्फ ढोल पीट रही है और हकीकत में उसे सज़ा दिलाने या मुकदमों की सुनवाई जल्द पूरी कराने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं कर रही है.

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