प्रयागराज: कांग्रेस महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा रविवार को अपने पुरखों के शहर संगम नगरी प्रयागराज में थीं. यहां उन्होंने बसवार गांव में पुलिस ज़्यादती का शिकार हुए निषाद समुदाय के लोगों के बीच चौपाल लगाकर जहां उनके ज़ख्मों पर सियासी मलहम लगाते हुए उन्हें हर तरह से मदद करने का भरोसा दिलाया, तो साथ ही केंद्र और यूपी की सरकारों पर भी जमकर निशाना भी साधा. उन्होंने कहा यूपी की सरकार गरीब निषादों पर जुल्म करते हुए माफियाओं की मदद कर रही है.
एयरपोर्ट से बसवार गांव जाते वक़्त प्रियंका गांधी का कई जगहों पर फूल- मालाओं से ज़ोरदार स्वागत भी किया गया. हालांकि शहर के चकिया तिराहे पर हुआ उनका स्वागत ख़ास चर्चा का सबब बना हुआ है. इस जगह पर हुए प्रियंका के भव्य स्वागत ने कई सियासी सवाल खड़े कर दिए हैं. तो साथ ही यूपी की सियासत में कई संभावनाओं और अटकलों को भी जन्म दिया है. सवाल यह उठने लगे हैं कि अब तक साफ़-सुथरी राजनीति के ज़रिये अपनी अलग व ख़ास पहचान बनाने वाली प्रियंका भी क्या अब यूपी में कांग्रेस की मझधार में फंसी हुई सियासी नैया को पार लगाने में दागियों-माफियाओं और बाहुबलियों का सहारा लेंगी.
दरअसल, रविवार को प्रयागराज में तकरीबन 30 किलोमीटर की सड़क यात्रा में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर प्रियंका के स्वागत के इंतजाम किये थे, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा इनमे से सिर्फ चकिया तिराहे पर ही गाड़ी से उतरीं. इस जगह गाड़ी से उतरकर वह कार्यकर्ताओं के बीच गईं. उनकी मालाओं को पहना. फूलों का गुलदस्ता हाथ में लिया. हाथ हिलाकर अभिवादन किया और साथ ही कार्यकर्ताओं का हाल-चाल भी लिया. वह इस जगह तकरीबन सात से आठ मिनट तक रहीं. गाड़ी पर दोबारा बैठने के बाद भी वह लोगों का अभिवादन स्वीकार करती रहीं और सीट पर बैठकर ही लोगों के साथ बातचीत भी करती रहीं.
झलवा तिराहा-राजरूपपुर, बालसन चौराहा और नैनी चौराहे समेत कई दूसरी जगहों पर भी प्रियंका के स्वागत के इंतजाम किये गए थे, लेकिन चकिया को छोड़कर वह बाकी किसी भी जगह एक पल के लिए भी गाड़ी से नीचे नहीं उतरीं. बाकी जगहों पर उन्होंने गाड़ी धीमी कराई. लोगों का अभिवादन स्वीकार किया और कुछ ही पलों में आगे के लिए रवाना हो गईं.
चकिया तिराहे पर प्रियंका का स्वागत किया गया
शहर में चकिया तिराहे पर जिस जगह प्रियंका का स्वागत किया गया, जहां वह गाड़ी से उतरकर काफी देर तक कार्यकर्ताओं और समर्थकों का अभिवादन स्वीकार करती रहीं, वह इन दिनों गुजरात की साबरमती जेल में बंद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा माफिया घोषित किये गए पूर्व बाहुबली सांसद अतीक अहमद की पहचान से जुड़ी हुई है. प्रियंका का स्वागत अतीक अहमद के दफ्तर के ठीक बाहर किया गया था. योगी सरकार ने आपरेशन नेस्तनाबूत के तहत अतीक के दफ्तर के आधे हिस्से को पिछले साल सितम्बर महीने में सरकारी बुलडोजरों के ज़रिये ज़मींदोज़ कर दिया था. टूटे हुए दफ्तर के मलबे के ढेर पर ही कुछ कार्यकर्ताओं ने फूल-मालाएं रखी हुई थीं. मलबे के ढेर से सटाकर डीजे खड़ा किया गया था, जिससे लगातार नारेबाजी की जा रही थी.
अतीक के दफ्तर के ठीक बाहर ही प्रियंका की गाड़ी रुकी थी. इस जगह स्वागत का आयोजन एआईसीसी सदस्य और वरिष्ठ पार्षद तस्लीमुद्दीन ने किया था. यूपी कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता किशोर वार्ष्णेय समेत तमाम दूसरे नेता भी वहां मौजूद थे. आयोजन से जुड़े नेतागण न तो इस इलाके में रहते हैं और न ही इसके आस पास. यही इकलौती ऐसी जगह है, जहां पांच सौ के करीब कार्यकर्ता और समर्थक प्रियंका के स्वागत के लिए जुटे थे. पार्टी के तमाम नेताओं ने इसी जगह प्रियंका के स्वागत में होर्डिंग्स भी लगा रखी थी. मतलब साफ़ है कि पार्टी नेताओं को पता था कि यही इकलौती ऐसी जगह है, जहां प्रियंका को उनकी गाड़ी से नीचे से उतारकर उनका अभिवादन किया जाना है.
क्या अतीक ने सियासी संभावनाएं तलाशी हैं?
सवाल यह उठता है कि कांग्रेस नेताओं ने प्रियंका के स्वागत के लिए माफिया घोषित किये गए पूर्व बाहुबली सांसद अतीक अहमद के दफ्तर के बाहर की जगह को ही क्यों चुना. क्या इसके पीछे कोई ख़ास वजह है या फिर यह महज़ एक संयोग है. क्या प्रियंका को इस बारे में पता भी था या यह बात उनकी जानकारी में नहीं थी. कहीं कांग्रेस पार्टी प्रयागराज और आस पास के जिलों में अपना अलग सियासी रुतबा रखने वाले बाहुबली अतीक अहमद पर डोरे डालना चाहती है या फिर दागी छवि होने की वजह से अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से बाहर हो चुके अतीक ने नया सियासी ठिकाना तलाशने के लिए पर्दे के पीछे से कोई दांव खेलते हुए अपने लिए सियासी संभावनाएं तलाशी हैं.
वैसे कांग्रेस पार्टी के ज़िम्मेदार नेता इन सभी अटकलों को सिरे से खारिज कर रहे हैं. उनका कहना है कि प्रियंका के रुट में पड़ने की वजह से महज़ संयोगवश इस जगह को रखा. इस जगह सड़क मुड़ती है, काफिले में शामिल वाहनों की स्पीड धीमी हो जाती हैं, इसीलिये इस जगह को चुना गया था. आयोजन से जुड़े एआईसीसी सदस्य तस्लीमउद्दीन और किशोर वार्ष्णेय के मुताबिक़ इसके कोई अलग मायने नहीं तलाशे जाने चाहिए.
मुमकिन है कि अंदरखाने कोई खिचड़ी पक रही हो
हालांकि राजनीति के जानकार इसमें सियासी संभावनाएं तलाशने लगे हैं. उनका मानना है कि नेहरू गांधी परिवार की सदस्य प्रियंका का स्वागत अतीक के दफ्तर के बाहर से किया जाना महज़ संयोग नहीं हो सकता. मुमकिन है कि अंदरखाने कोई खिचड़ी पक रही हो. लोगों का रिएक्शन देखने के लिए यह टेस्टिंग की गई है और आने वाले दिनों में इसका कुछ असर भी देखने को मिल सकता है.
अतीक अहमद पांच बार के विधायक और एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू की सीट रही फूलपुर से सांसद रहे हैं. प्रयागराज और आसपास के जिलों के मुस्लिम वोटरों में अतीक के प्रभाव से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है. राजनीति में कभी कोई भी कदम नामुमकिन नहीं होता. अतीक के दफ्तर के बाहर कांग्रेस पार्टी की तरफ से प्रियंका का स्वागत महज़ इत्तेफाक भी हो सकता है और यह किसी सियासी खिचड़ी की शुरुआत भी. हकीकत क्या है, इसका पता तो आने वाले दिनों में चलेगा, लेकिन इस स्वागत ने यह सवाल तो खड़े ही कर दिए हैं कि क्या वाले दिनों में प्रियंका की पार्टी कांग्रेस अतीक या फिर उनके परिवार के सदस्यों के लिए अपने दरवाजे खोल पार्टी के हाथ का साथ देने की तैयारी में हैं. वैसे अगर ऐसा होता है तो फायदा तो दोनों का ही होगा. दोनों को एक दूसरे के हाथ और साथ की ज़रुरत भी है.
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