नई दिल्ली/अयोध्या एबीपी गंगा। अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट बीते चालीस दिन से चल रही सुनवाई बुधवार को खत्म हो गई। इस दौरान हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलें रखीं। इससे पहले मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने संकेत दे दिये थे कि बुधवार को सुनवाई का अंतिम दिन है। हालांकि आज सुनवाई पांच बजे खत्म होनी थी लेकिन एक घंटे पहले यानी चार बजे ही सुनवाई पूरी हो गई। सीजेआई की अगुवाई में पांच जजों की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। आपको बता दें कि 17 नवंबर को सीजेआई रंजन गोगोई का रिटायरमेंट है और ये तय माना जा रहा है कि फैसला उससे पहले आ जाएगा।


आखिर अयोध्या से जुड़ा विवाद क्या है, इसे जानने के लिये हमें पीछे जाना पड़ेगा। राम जन्मभूमि को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।


इस तरह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया था। जिसके खिलाफ देश के सर्वोच्च अदालत मे 14 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अदालत ने 2.77 एकड़ की भूमि को तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बांट दिया था। पिछले महीने सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथ ने कहा था कि भगवान राम के जन्मस्थान पर संयुक्त कब्जा नहीं हो सकता क्योंकि जन्मस्थान स्वयं देवता हैं। उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि संयुक्त कब्जे से देवता का विभाजन होगा जो संभव नहीं है।


ये था अयोध्या से जुड़ा विवाद
1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजों के शासन के दौरान विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई। फरवरी 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद के उप-जज के सामने याचिका दायर की कि यहां मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए। जज पंडित हरिकृष्ण ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया कि यह चबूतरा पहले से मौजूद मस्जिद के इतना करीब है कि इस पर मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं।


उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी. बी. पंत से इस मामले में फौरन कार्रवाई करने को कहा। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया लेकिन जिला मजिस्ट्रेट के. के. नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। हालांकि नायर के बारे में माना जाता है कि वह कट्टर हिंदू थे और मूर्तियां रखवाने में उनकी पत्नी शकुंतला नायर की भूमिका थी।