प्रयागराज: सेना पर हो रही सियासत से आहत है कारगिल शहीद का परिवार
कारगिल की लड़ाई में शहीद हुये जवानों पर सेना को गर्व है। इस लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देनेवाले लालमणि यादव के परिवार को इस बात का मलाल है कि सेना के नाम पर सियासत क्यों हो रही है।
प्रयागराज, मोहम्मद मोइन। बीस साल पहले पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल में हुई लड़ाई में प्रयागराज के लालमणि यादव भी शहीद हुए थे। कुमाऊं रेजीमेंट में नायक रहे लालमणि ने तेरह पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। लालमणि की विधवा और चारों बच्चे अब भी एक पल के लिए लालमणि को भूल नहीं पाते हैं। शहीद लालमणि के परिवार को उनकी शहादत पर गर्व तो है लेकिन बीस साल पहले मिले सदमे से वह अभी तक उबर नहीं पाया है।
शहीद लालमणि के दोनों बेटे भी पिता की तरह फौज में जाकर देश की खातिर लड़ना चाहते थे, लेकिन अपना सुहाग खो चुकी उनकी मां डर की वजह से उन्हें सेना में भेजने को राजी नहीं हुई। परिवार को पिछले कुछ दिनों से सैनिकों की शहादत पर सियासत होने और सेना के पराक्रम पर सवाल उठाए जाने से काफी निराशा है। इनका मानना है कि यह लालमणि समेत उन सभी सैनिकों की शहादत का अपमान है, जिन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी। कारगिल शहीद लालमणि के परिवार का कहना है कि सेना व शहीदों के नाम पर सियासत बंद होनी चाहिए, क्योंकि इससे गम और बढ़ जाता है।
प्रयागराज के लालमणि यादव शहर से करीब चालीस किलोमीटर दूर करछना इलाके के रहने वाले थे। वह कुमाऊं रेजीमेंट में नायक के पद पर तैनात थे। कारगिल की लड़ाई से पहले वह दो महीने पत्नी संतोष देवी व चारों बच्चों के साथ बिताकर यहां से गए थे। उनके दो बेटे व दो बेटियां हैं। लालमणि यादव में देशभक्ति का जज़्बा कूट कूटकर भरा हुआ था। कारगिल की लड़ाई में उन्होंने अपनी बहादुरी व चालाकी से दुश्मन के तेरह सैनिकों को मौत के घाट उतारा था। पाकिस्तान की तरफ से की गई बमबारी में वह शहीद हो गए थे। शहादत के बाद सरकार ने परिवार वालों को आर्थिक मदद दी, जिसके चलते चारों बच्चे उच्च शिक्षा हासिल कर सके। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है, जबकि छोटी डॉक्टर है। दो बेटों में एक एमबीए कर रहा है तो दूसरा वकालत।
दोनों बेटे पिता की तरह ही सेना में शामिल होकर देश के लिए लड़ना चाहते थे, लेकिन महज़ बत्तीस साल की उम्र में ही पति को खो चुकीं संतोष देवी बेटों की जिंदगी को लेकर कोई खतरा नहीं लेना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने उन्हें साफ मना कर दिया। परिवार को लालमणि की शहादत पर गर्व तो है, लेकिन उन्हें सियासी पार्टियों से काफी शिकायत है और उनकी हरकतों पर मलाल भी। दरअसल पुलवामा हमले और बालाकोट की एयर स्ट्राइक के बाद जब इस पर सियासी पारा गर्म हुआ और इस पर सत्तापक्ष व विपक्ष ने एक दूसरे के खिलाफ ज़ुबानी जंग छेड़ दी तो शहीद लालमणि के परिवार वालों को काफी दुख हुआ। परिवार वालों का मानना है कि सेना और शहादत को लेकर न तो बेवजह के सवाल उठने चाहिए और न ही सियासत होनी चाहिए।