आखिर क्यों, रामानंद चोपड़ा ने अपना नाम बदलकर रामानंद सागर रख लिया- ये रही इसकी असल वजह
रामायण को पर्दे पर लाकर घर-घर तक पहुंचाने वाले रामानंद सागर का असली नाम रामानंद चोपड़ा था लेकिन ऐसा क्या हुआ जो उन्होंने अपना नाम बदलकर रामनंद सागर रख लिया
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि सबसे पहले भगवान शिवजी ने पार्वती माता को रामकथा सुनाई थी। फिर वाल्मिकी जी ने रामायण लिखी। लेकिन कलयुग में हर घर में रामायण पहुंचाने वाले रामानंद सागर थे। 80 और 90 का ये वो दौर था जब रामायण के पर्दे पर आते ही हर कोई अपने सब काम-काज भूलकर टीवी के सामने रामायण देखने के लिए बैठ जाया करता था। सड़कों और गलियों में सन्नाटा हो जाता था। लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता है कि रामायण को पर्दे पर उतारने वाले रामानंद सागर का नाम रामानंद चोपड़ा था।
यूं तो सन 1917 में जन्में रामानंद चोपड़ा को उनके नाना ने चंद्रमौली नाम दिया था। रामायण बनाने से पहले उन्होंने बहुत से उपन्यास लिखे, कहानियां लिखी और यहां तक की कई अखबारों के लिए भी लिखा। लेकिन उनके हर एक लेखन में उनका नाम अलग होता था कभी रामानंद सागर, कभी रामानंद चोपड़ा तो कभी रामानंद बेदी और कभी रामानंद कश्मीरी। लेकिन इन सभी नामों में से वो अमर हुए तो रामानंद सागर के नाम से। जिसके बाद उन्होंने अपना नाम सदा के लिए रामानंद सागर ही रख लिया इतना ही नहीं उन्होंने अपने 5 बेटों के सरनेम से चोपड़ा हटाकर सागर कर दिया।
लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर इतना आसान नहीं था। विभाजन के बाद उनका परिवार कश्मीर से दिल्ली और दिल्ली से मुंबई पहुंचा। उस वक्तरामानंद पर परिवार के 13 लोगों की जिम्मेदारी थी।परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए रामानंद ने सड़कों पर साबुन बेचा, चपरासी का काम किया और मुनीम की नौकरी भी की। लेकिन रामानंद साहित्यिक की तरफ रुझान रखते थे। देश के विभाजन से पहले रामानंद लाहौर फिल्म इंडस्ट्री में राइटर और एक्टर भी हुआ करते थे। इसीलिए फिल्मों में काम करने के लिए वो दिल्ली से मुंबई पहुंचे थे। रामानंद चोपड़ा से रामानंद सागर बनने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। मुंबई आने से पहले तक उन्होंने समुद्र कभी नहीं देखा था। एक सुबह वह चौपाटी गए और समुद्र को देखते ही रहे। समुद्र को देखते हुए उन्होने प्रार्थना की कि वो उन्हें अपनी इस सपनों की नगरी में स्वीकार करें। तभी अचानक समुद्र से तेज लहर उठी और उन्हें लगभग भिगोती हुई किनारे की तरफ बढ़ गई। रामानंद ने महसूस किया कि समुद्र भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया है और उसकी लहरों से ओम की तरंगें उठ रही है। उन्हें विश्वास हो गया कि समुद्र देवता के आशीर्वाद से मुंबई नगरी ने स्वीकार कर लिया है। वो बेहद खुश हो गए तभी उन्होंने तय किया कि वो अपना सरनेम चोपड़ा नहीं लिख कर सागर रख लेंगे। तब उन्होंने न केवल अपना नाम रामानंद सागर रखा बल्कि बेटों के नाम भी सुभाष सागर, शांति सागर, आनंद सागर, प्रेम सागर और मोती सागर कर दिए। नाम बदलने के बाद सफलता भी ज्यादा समय तक उनसे दूर नहीं रह सकी।