केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया है. इन कानूनों के विरोध में किसान पिछले एक साल से प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने शुक्रवार सुबह देश के नाम संबोधन में कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने की घोषणा की. प्रधानमंत्री ने कहा,''मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहता हूं कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई होगी. उन्होंने कहा कि कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए. आज पूरे देश को यह बताने आया हूं कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है.'' उन्होंने कहा कि इस महीने के अंत में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर देंगे. संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरू हो रहा है. आइए जानते हैं कि मोदी सरकार के इस फैसले के पीछे की वजह क्या है.
पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव
शिरोमणि अकाली दल पंजाब में बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी थी. लेकिन इस कानून के सामने आने के बाद उसने बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ लिया था. इसके साथ ही उसने नरेंद्र मोदी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. इस कानून ने पंजाब की राजनीति को गर्मा दिया था. इन कानूनों का सबसे अधिक विरोध पंजाब में ही हुआ. पंजाब में लोग सार्वजनिक तौर पर बीजेपी के नेताओं का विरोध कर रहे थे. बीजेपी नेताओं को गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा था. यहां तक स्थानीय निकाय के चुनावों में कई जगह लोगों ने बीजेपी नेताओं को चुनाव प्रचार तक नहीं करने दिया. पंजाब में कोई बीजेपी से समझौता करने तक को तैयार नहीं था. पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी चिंतित थीं. बीजेपी के खिलाफ पंजाब के लोगों की नाराजगी को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर को खोलने का फैसला किया था. यह कॉरिडोर गुरुवार को ही खोला गया है. इसके अगले ही दिन नरेंद्र मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव
कृषि कानूनों का सबसे अधिक विरोध करने वालों में उत्तर प्रदेश के किसान भी शामिल थे. वहां भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ कृषि कानूनों का विरोध देखते ही देखते पूर्वी उत्तर प्रदेश तक फैल गया था. किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही भारतीय किसान यूनियन का प्रभाव क्षेत्र पश्चिम उत्तर प्रदेश ही है. इसके नेता राकेश टिकैत का घर भी पश्चिम उत्तर प्रदेश में ही है. यहां भी भी कई जगह बीजेपी नेताओं को गांवों में प्रवेश करने से रोका गया. कई जगह उनकी गाड़ियों पर पथराव हुआ. बीजेपी के बड़े नेता पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाने से कतराने लगे थे. उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत की सरकार चला रही बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन किया था. बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम यूपी की 110 में से 88 सीटें जीत ली थीं. उसे 2012 के चुनाव में 38 सीटें ही मिली थीं. लेकिन किसान आंदोलन को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि बीजेपी को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में घाटा उठाना पड़ेगा.
देश भर के किसानों में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी
नरेंद्र मोदी सरकार के 3 विवादित कृषि कानूनों के विरोध में देशभर के किसान लामबंद थे. इन कानूनों के विरोध में देश भर में रैलियां निकाली गईं और किसान महापंचायतों का आयोजन किया गया. इस किसान आंदोलन का असर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु तक देखा गया. नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही किसानों का आंदोलन शुरू हो गया था. सबसे पहले 2017 में तमिलनाडु के किसान दिल्ली आए और जंतर-मंतर पर कई दिनों तक धरना दिया. यहां तक उन्हें चूहे खाने तक के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके अगले ही साल महाराष्ट्र में किसान आंदोलन शुरू हो गया. हजारों किसानों ने भिवंडी से मुंबई तक मार्च किया. नरेंद्र मोदी की सरकार जब तीन कृषि कानून लेकर आई तो देशभर के किसान इसके खिलाफ लामबंद हो गए. पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आए हजारों किसानों ने दिल्ली की तीन सीमाओं पर पिछले एक साल से डेरा डाल रखा है.
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बिगड़ती मोदी सरकार की छवि
किसान आंदोलन के समर्थन में दुनिया की कई मशहूर हस्तियों ने बयान दिए. स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किया. उन्होंने कहा कि वो भारत के किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थन करती हैं. उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में एक टूल किट ट्वीट किया था. इसको लेकर सरकार ने मुकदमा दर्ज करा दिया था. यहां तक की बंगलुरु में रहने वाले एक छात्रा को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इसके अलावा अमेरिकी गायक और एक्ट्रेस रिहाना ने भी किसान आंदोलन का समर्थन किया. किसान आंदोलन का समर्थन करने वालों में अभी अमेरिका की उपराष्ट्रपति पद पर आसीन कमला हैरिस भी शामिल थीं. इसके अलावा कृषि कानूनों के विरोध में ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन आयोजित किए गए थे.
नरेंद्र मोदी सरकार की जनविरोधी छवि
नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही आंदोलनों का दौर शुरू हो गया. मोदी सरकार के खिलाफ विरोध की शुरूआत पुणे के फिल्म और टीवी संस्थान में निदेशक की नियुक्ति से शुरू हुई. पुणे से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन का यह सिलसिला दिल्ली के कैंपसों तक पहुंचा. दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कथित तौर पर देश विरोधी नारों के सवाल पर छात्रों की गिरफ्तारी हुई. वहीं सीएए-एनआरसी का विरोध कर जामिया मिल्लिया के छात्रों पर पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया. छात्रों पर अराजक तत्वों ने गोलीबारी की. जेएनयू परिसर में घुसकर नकाबबंद लोगों ने छात्रों के साथ मारपीट की और हास्टलों में तोड़फोड़ की. दिल्ली में बीते साल फरवरी में दंगे हुए. इसमें भी कई युवा गिरफ्तार किए गए. नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध करने वाले लोगों और कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह के मामले दर्ज किए गए. नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध करने वालों को बीजेपी के नेता देशविरोधी बताने लगे और ऐसे लोगों को पाकिस्तान चले जाने लगे. खाने के तेल और पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के विनिवेशीकरण ने नरेंद्र मोदी सरकार की छवि जनविरोधी सरकार की बनाई है.