सहारनपुर. कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के आंदोलन को कई दिन बीत चुके हैं. किसान आंदोलन के जल्द खत्म होने की उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है. उधर, धरने पर बैठे किसानों को अब खेती की चिंता, गन्ना, लोन और बिजली बिल का भुगतान जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. घर के मुखिया के धरने पर जाने से परिवार के अन्य लोग खेती संभाल रहे हैं. एक महीने बाद गेहूं की फसल कटाई के लिये तैयार है. इससे किसान परिवारों की परेशानी और बढ़ती दिख रही है. एबीपी ने इसी सिलसिले में कुछ किसानों से बातचीत की.


किसान प्रदीप कुमार ने बताया कि कि उनके परिवार के सभी आदमी खेती में हैं, जबकि वह दिल्ली में चल रहे धरने पर बैठे हैं. वो कहते हैं कि उनकी गन्ने की फसल का पैसा रोक दिया गया है. पिछले साल भी राशि नहीं मिली थी, जिसके चलते समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, किरणवती ने बताया कि दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में उनके परिवार के सभी सदस्य शामिल हैं. इस कारण उन्हें सारा काम देखना पड़ रहा है. घर में खड़े जानवरों का चारा, दूध निकालना बीमारी के चलते वह यह सब नहीं कर पाती है. खेती-बाड़ी भी ठप पड़ी है और तो और घर के खर्चे चलाने में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा.


महिलाओं को देखना पड़ रहा खेती का काम
एक और किसान परिवार की महिला ममतेश ने बताया कि परिवार के सभी सदस्यों के आंदोलन में जाने के कारण उन्हें खेती देखनी पड़ रही है. इसके अलावा उन्हें घर का काम भी करना पड़ रहा है. घर का खर्चा चलाने के लिए भैंसों का दूध बेच कर एक-एक पाई जोड़ कर खर्च करना पड़ रहा है.


वहीं, कुमुद देवी बताती हैं, "सरकार ने गन्ने का पेमेंट तो दिया नहीं, उल्टा किसानों के खिलाफ यह तीन काले कानून बना दिए हैं. जो पढ़े-लिखे लोग हैं वह तो सब समझते हैं, लेकिन जो अनपढ़ हैं उनका क्या किया जाए. सरकार को यह कानून वापस लेने चाहिए."


"स्कूल फीस भरने के लिए पैसे नहीं"
नरेंद्र कुमार कहते हैं, "दिल्ली की सीमा पर चल रहे धरने में उनके परिवार के सदस्यों को शामिल होना पड़ रहा है. कभी वह खुद जाते हैं तो कभी उनके भाई. घर में खर्चा चलाने के लिए पैसे तक नहीं है. बच्चों को पढ़ाने के लिए फीस भी कहां से भरें."


ये भी पढ़ें:



श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद: श्रीकांत शर्मा बोले- हमें संविधान पर भरोसा, राम मंदिर पर रंग लाया धैर्य


मायावती का बड़ा हमला, कहा- यूपी में चुनाव से पहले शुरू हुआ नेताओं, वकीलों की हत्याओं का दौर