Corona Virus के डर के बीच 'फोमो' बीमारी का साया, क्या है इसके लक्षण;क्यों हो रही है इसकी चर्चा
Corona Virus के डर के बीच 'फोमो' बीमारी का साया, क्या है इसके लक्षण;क्यों हो रही है इसकी चर्चा। मनोचिकित्सकों ने फोमो बीमारी से जुड़ी अहम जानकारी बताई है।
आगरा, नितिन उपाध्याय। Corona Virus के खौफ से अभी लोग उभर भी नहीं पाए थे, कि 'फोमो' बीमारी की दस्तक ने उनके डर को और बढ़ा दिया है। आखिर ये फोमो बीमारी क्या बला है, ये कैसी होती है, इसके लक्षण क्या हैं। ये सब हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं। फोमो मतलब फियर ऑफ मिसिंग। आज के युवा किसी न किसी तरह से सोशल साइट पर हीरो बनने के चलते जाने अनजाने में इस 'फोमो' बीमारी के शिकार हो रहे हैं, ऐसा हम नहीं मनोचिकित्सकों का कहना है।
आइये आपको बताते हैं- क्या है ये 'फोमो' बीमारी और कैसे इससे बचें। व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर अपना ज्यादातक समय बीताना, इसके लिए हर वक्त मोबाइल में लगे रहना। ये एक एक तरह की बीमारी है। ये हमारा नहीं, बल्कि शहर के वरिष्ठ मनोचिकित्सकों का कहना है। इस बीमारी को लेकर उन्होंने खुलासा किया है। इस बीमारी का नाम है फोमो।
इन दिनों शहर के युवाओं के बीच ये समस्या आम होती जा रही है।यह समस्या बीमारी का रूप ले चुकी है। मनोचिकित्सक इसे 'फोमो' कहते हैं यानी फियर ऑफ मिसिंग, जी हां इस बीमारी से ग्रसित लोगों के वैसे तो सोशल साइट पर हजारों दोस्त होते हैं, लेकिन कही न कही ऐसे लोग अपनों के बीच ही अंजान हो जाते हैं।और वो मोवाइल को ही अपनी पूरी दुनिया समझ लेते हैं। पर वो ये नहीं जानते कि वो जाने अनजाने 'फोमो' नाम की बीमारी का शिकार हो रहे हैं और यही वजह है कि लोग डिप्रेशन की शिकायत के साथ शहर के मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं।
ये हैं फोमो बीमारी के लक्षण
फोमो के शिकार लोग हर समय सोशल मीडिया पर यह चेक करते रहते हैं कि दूसरे लोगों की जिंदगी में क्या हो रहा है,वह सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट कर रहे हैं, इस बीमारी से ग्रसित लोगों को यह भी चिंता रहती है कि उनकी फोटो या पोस्ट पर कितने लाइक या कॉमेंट मिल रहे हैं। इनके फेसबुक पर सैकड़ों दोस्त होते हैं, लेकिन असल जिंदगी में ये अपनो से दूर होते जाते हैं।
आइये जानते हैं आखिर क्या है फोमो
फोमो में इंसान की दूसरे लोगों की जिंदगी से हर समय जुड़े रहने की इच्छा होती है, खास तौर पर सोशल मीडिया के माध्यम से।
ऐसे लोगों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप के द्वारा दूसरे लोगों कीजिंदगी में अपनी अहमियत देखते रहना पसंद होता है। उन्हें उनकी जिंदगी से जुड़े रहना अच्छा लगता है, फोमो के शिकार लोगों को अपने जीवन में आई छोटी सी तकलीफ भी ऐसी लगती है कि जैसे कितना बड़ा हादसा हो गया है। उन्हें लगता है कि दुनिया में जितनी भी परेशानियां हैं, वह सिर्फ उनकी जिंदगी में ही है, मुख्य रूप से फोमो वह मानसिक स्थिति है, जो लोगों के मन में दूसरे लोगों की जिंदगी से बाहर होने या उनकी जिंदगी में अपनी अहमियत खोने के डर से जुड़ी है, यह लोगों में पीछे छूटने का डर पैदा करती है। जब हमने इस बारे में मानसिक चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. दिनेश राठौर से बात की तो उनका कहना था कि मेरे पास कई ऐसे युवा आते हैं जो सोशल मीडिया की जिंदगी में रहते हैं। असली जिंदगी में उनको कोई दोस्त नहीं हैं, क्योंकि वे अपना सारा समय सोशल मीडिया पर देते हैं। ऐसे में उनकी काउंसलिंग की जाती है और उन्हें रियल लाइफ में दोस्त बनाने की सलाह दी जाती है।
10 फीसदी तक बढ़ी फोमो के शिकार लोगों की संख्या
शहर के वरिष्ठ मनोचिकित्सक के.सी. गुरनानी इस बात को कहते हैं अगर पिछले कुछ सालों की बात की जाए, तो इस तरह की बीमारियों के शिकार लोगों की संख्या दस फीसदी ज्यादा हो चुकी है । और ये लगातर बढ़ती जा रही है ।
फोमो के बचाव
जब हमने उनसे इसके बचाव के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि सबसे पहले जरूरी है आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम से कम करें। वर्चुअल दुनिया में नहीं वास्तविक दुनिया में अपना दायरा और लोगों तक अपनी पहुंच बढ़ाएं। ऐसे बच्चे जो फोमो का शिकार हैं, उनके प्रति उनके माता-पिता का कर्तव्य बनता है कि वे उन्हें मोबाइल फोन और सोशल मीडिया कम से कम प्रयोग करने दें।जो आपने बच्चों को हाईटेक बनाने के चलते बचपन से ही मोबाइल की दुनिया में आगे बढ़ा रहे हैं।उनको चाहिए कि जब उनके बच्चे बड़े हो जाएं और समझदार बन जाएं, वो तब उनके हाथ में मोबाइल दें, ताकि जाने अनजाने मिलने वाली इस बीमारी से वो अपने बच्चों को बचा सकें।
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