Uttarakhand: गर्मी बढ़ने के साथ ही धधक उठे जंगल, सैकड़ों हैक्टेयर में फैली आग से जानवरों की मौत
गर्मी आते ही जंगलों में आग की घटनाएं सामने आने लगी हैं. इनके पीछे की वजह चीड़ की सूखी पत्तियां हैं जो मीलों फैले जंगल की आग को खतरनाक रूप दे देते हैं.
पौड़ी: पौड़ी में गर्मियों का दौर शुरू ही हुआ है कि जंगल की आग ने जिले भर में अपना तांडव दिखाना शुरू कर दिया है. देखते ही देखते लाखों की वनसम्पदा जलकर स्वाहा हो गई. वहीं, पक्षियों के घोंसले और उसमें पल रहे पक्षियों के बच्चे और जंगल में रह रहे पक्षी तक वनाग्नि के इस तांडव की भेंट चढ़ गये और जिले की 217 वनाग्नि की घटनाओं में जिले भर में 323 हैक्टेयर जंगल किस तरह से जलकर खाक हो गया, पढ़ें ये रिपोर्ट.
इस वजह से लगी आग
धूं-धूं कर जल रहे जंगलों पौड़ी जिले की कहानी कह रहे हैं. कई जंगलों से घिरे पहाड़ को अपनी चपेट में ले लिया है, जिसकी गवाही पहाडों से उठ रहा धुंआ दे रहा है. वनाग्नि का ऐसा विकाराल रूप वन विभाग की उन तैयारियों की पोल भी बखूबी खोल रहा है, जिसमें वन विभाग को सर्दियों के दौर से और फरवरी माह तक करोडों रूपये के बजट को सडकों के इर्द-गिर्द और जंगलों में फायर कंट्रोलिंग के लिये फायर लाइन काटने और आस पास फैली चीड वृक्ष की पत्तीयों को साफ करने के लिये मिला था, लेकिन बजट किस तरह से खर्च हुआ होगा, इसका अंदाजा इन दिनों जमकर धधक रहे जंगलों को देखकर लगाया जा सकता है.
जंगली जानवर भी हुए शिकार
वनाग्नि का तांडव इस कदर छाया है कि, विकराल रूप में फैली जंगलों की आग अब सड़कों तक आने लगी है. ये आग एक तूफान की तरह उठ रही है. वहीं इंसान तो किसी तरह से इस वनाग्नि की तबाही से निपट रहे हो, लेकिन जंगलों में बसे पक्षी इस वनाग्नि के विकराल रूप से नहीं बच पा रहे हैं. जंगलों में जलकर मृत पड़े वनाग्नि की भेंट चढ़ चुके हैं. इस वनाग्नि ने पूरे सिस्टम की पोल खोल कर रख दी है. प्राकृतिक आपदा का इस प्रलय जिसमें वनाग्नि की वर्षा हो रही हो, इस वनागिन से पक्षियों के घोंसले तक तबाह हो चुके हैं. इन घोसलों में पल रहे पक्षियों के बच्चे तक जलकर खाक हो चुके हैं और जो पक्षी जान बचाकर उड़े भी वे भी वनागिन के तांडव से बच नहीं पाये.
ग्रामीण भी नहीं कर रहे मदद
वनाग्नि के इस विकराल रूप को देखकर वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ ने भी चिंता जाहिर की है. वहीं, वनाग्नि के पीछे एक वजह चीड़ से घिरे पूरे जंगलों को बताया है. जिसमें आग जल्दी लगती है. इसकी पत्तीयों से आग का सुलगना शुरू होता है, जो देखते ही देखते पूरे जंगल को अपनी चपेट में ले लेता है. वहीं, जिन ग्रामीणों से सहयोग की उम्मीद की जानी चाहिये उनके बार में विशेषज्ञ बताते हैं कि ग्रामीणों को पूर्व में वन विभाग से कुछ हक हुकक मिला करता है, जिसमें जंगलों की घास व कुछ सूख चुके पेड़ वन विभाग ग्रामीणों को दे दिया करता था, लेकिन अब इन हक हकूक का बंद होना वन विभाग को ग्रामीणों से वनाग्नि नियंत्रण पर मिलने वाली मद्द पर भारी पडा और कई ग्रामीण अब वन विभाग का सहयोग तक नहीं कर रहे हैं.
औसत वर्षा भी बड़ी वजह
वन विभाग के डीएफओ पौड़ी की माने तो पिछले साल भी वर्षा का औसत कम रहने के कारण जंगल इस बार अधिक धधक रहे हैं. लेकिन हजारों के हैक्टेयर में फैली आग पर सीमित कर्मचारियों से काबू पाना उनके लिये भी मुश्किल है. हालांकि, फायर वाचर का सहयोग अब लिया जा रहा है लेकिन आग की इन घटनाओं पर अब नियंत्रण पाना वन विभाग के लिये किसी बडी चुनौती से कम नहीं है.
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